सुप्रीम कोर्ट ने 2 मई 2025 को एक महत्त्वपूर्ण निर्णय में राजस्थान हाईकोर्ट द्वारा दो आरोपियों की जमानत रद्द करने के आदेश को रद्द कर दिया। ये मामला एक भूखंड के फर्जीवाड़े और धोखाधड़ी से संबंधित है। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि जमानत एक बार दी जाने के बाद केवल नई परिस्थितियों के आधार पर ही रद्द की जा सकती है, और इसे यंत्रवत या सामान्य प्रक्रिया के रूप में नहीं किया जा सकता।
पृष्ठभूमि
यह मामला एफआईआर संख्या 854/2021 से संबंधित है, जो 15 नवंबर 2021 को पुलिस थाना मानसरोवर, जयपुर शहर में दर्ज की गई थी। यह प्राथमिकी भारतीय दंड संहिता की धारा 420, 406, 467, 468, 471, 447 और 120-बी के अंतर्गत दर्ज हुई थी। शिकायतकर्ता मुकेश कुमार अग्रवाल ने आरोप लगाया था कि पदम विहार नामक आवासीय योजना में उन्हें आवंटित प्लॉट संख्या A-56 को फर्जी दस्तावेजों के माध्यम से एक अन्य व्यक्ति के नाम कर दिया गया।
एफआईआर के अनुसार, राजरानी मित्तल, दीपक जांगिड़, राहुल जांगिड़ और डोंटेश जांगिड़ (अपीलकर्ता संख्यांक 2) समेत अन्य व्यक्तियों ने फर्जी दस्तावेज तैयार कर जयपुर विकास प्राधिकरण के रिकॉर्ड में हेरफेर किया और भूखंड को दीपक जांगिड़ के नाम करवाया। अपीलकर्ता इस फर्जीवाड़े के दौरान जीपीए (जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी) दस्तावेजों के साक्षी के रूप में मौजूद थे, और आरोप है कि उन्होंने इस षड्यंत्र में सक्रिय भूमिका निभाई।
उक्त अपीलकर्ताओं को 3 फरवरी 2022 को गिरफ्तार किया गया और 22 मार्च 2022 को राजस्थान हाईकोर्ट ने यह कहते हुए नियमित जमानत दे दी कि मुकदमे की अवधि लंबी हो सकती है और इस दौरान आरोपियों को जमानत पर छोड़ा जाना उचित होगा।
हाईकोर्ट की कार्यवाही
जमानत मिलने के बाद शिकायतकर्ता ने सीआरपीसी की धारा 439(2) के अंतर्गत जमानत रद्द करने हेतु आवेदन संख्या 73/2022 दाखिल किया। पहले यह आवेदन 29 मार्च 2023 को खारिज हो गया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उस आदेश को ‘संक्षिप्त और बिना कारणों वाला’ बताते हुए रद्द कर दिया और मामले को पुनर्विचार हेतु हाईकोर्ट भेज दिया।
पुनः विचार के उपरांत, राजस्थान हाईकोर्ट ने 3 दिसंबर 2024 को आदेश पारित कर अपीलकर्ताओं की जमानत रद्द कर दी। अदालत ने यह माना कि जमानत की शर्तों का दुरुपयोग हुआ है और अपीलकर्ताओं का व्यवहार अनुशासनहीन रहा है। कोर्ट ने कहा कि आरोपियों को कोर्ट में उपस्थित करवाना भी मुश्किल हो गया है, और पुलिस पार्टी पर हमले का मामला भी उनके खिलाफ दर्ज हुआ है।
सुप्रीम कोर्ट का अवलोकन
सुप्रीम कोर्ट ने अपील को स्वीकार करते हुए स्पष्ट किया कि जमानत को रद्द करने की प्रक्रिया कठोर होती है और उसे हल्के में नहीं अपनाया जा सकता। कोर्ट ने रघुबीर सिंह बनाम बिहार राज्य [(1986) 4 SCC 481], अस्लम बाबालाल देसाई बनाम महाराष्ट्र राज्य [(1992) 4 SCC 272], तथा दौलत राम बनाम हरियाणा राज्य [(1995) 1 SCC 349] मामलों का हवाला दिया, जिनमें जमानत रद्द करने के लिए निम्नलिखित आधार बताए गए हैं:
- आरोपी का स्वतंत्रता का दुरुपयोग और समान अपराधों में संलिप्तता,
- जांच में हस्तक्षेप,
- गवाहों या सबूतों से छेड़छाड़,
- गवाहों को धमकाना,
- विदेश भागने की संभावना या जांच एजेंसी से बचने के प्रयास।
पीठ ने कहा, “ये आधार केवल उदाहरण के रूप में हैं और सीमित नहीं हैं। साथ ही, जमानत अस्वीकृति और जमानत रद्द करने की प्रक्रिया अलग-अलग स्तर की होती है।”
कोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि जमानत मिलने के बाद दर्ज अधिकांश एफआईआर में अपीलकर्ताओं का नाम नहीं था और एकमात्र एफआईआर (संख्या 11/2023) जिसमें उनका नाम था, उसमें जांच के बाद उन्हें आरोपपत्र में शामिल नहीं किया गया। अतः, इस आधार पर उनकी जमानत रद्द करना न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता।
अंतिम निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान हाईकोर्ट का 3 दिसंबर 2024 का आदेश रद्द करते हुए अपीलकर्ताओं की जमानत बहाल कर दी। साथ ही, कोर्ट ने संबंधित मजिस्ट्रेट को निर्देश दिया कि एफआईआर संख्या 854/2021 से संबंधित मुकदमे की सुनवाई आठ माह के भीतर पूरी की जाए।
मामले का विवरण:
मामला शीर्षक: संजय कुमार जांगिड़ एवं अन्य बनाम मुकेश कुमार अग्रवाल एवं अन्य
क्रिमिनल अपील संख्या: 2381 / 2025 (SLP (Crl.) No. 1632 / 2025 से उत्पन्न)
चुनौती आदेश: राजस्थान हाईकोर्ट का आदेश दिनांक 03.12.2024, जमानत रद्द आवेदन संख्या 73/2022