सुप्रीम कोर्ट: बीएनएसएस लागू होने के बाद दायर ईडी शिकायत पर पीएमएलए आरोपी को संज्ञान से पहले सुनवाई का अधिकार

सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) की व्याख्या करते हुए एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि यदि पीएमएलए के तहत प्रवर्तन निदेशालय (ED) की शिकायत BNSS लागू होने के बाद दायर की गई हो, तो विशेष न्यायालय संज्ञान लेने से पहले आरोपी को अनिवार्य रूप से सुनवाई का अवसर देना होगा। अदालत ने विशेष न्यायालय द्वारा 20 नवंबर 2024 को लिया गया संज्ञान रद्द कर दिया।

जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस उज्जल भुयां की पीठ ने कहा कि BNSS की धारा 223(1) के प्रावधान के अनुसार — जो 1 जुलाई 2024 से प्रभावी है — मजिस्ट्रेट या विशेष न्यायाधीश को पीएमएलए की धारा 44(1)(b) के तहत अपराध का संज्ञान लेने से पहले आरोपी को सुनवाई का अवसर देना आवश्यक है।

पृष्ठभूमि

यह अपील 20 नवंबर 2024 को विशेष अदालत द्वारा पीएमएलए की धारा 44(1)(b) के तहत प्रवर्तन निदेशालय की शिकायत पर संज्ञान लेने के आदेश के विरुद्ध दायर की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि विशेष न्यायालय ने संज्ञान लेने से पहले आरोपी को सुनवाई का अवसर नहीं दिया, जबकि BNSS की धारा 223(1) में यह अधिकार पहली बार शामिल किया गया है।

इससे पहले, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 के तहत ऐसा कोई प्रावधान नहीं था, किंतु अब BNSS के लागू होने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह प्रक्रिया-संबंधी सुरक्षा का पालन अनिवार्य है।

कोर्ट ने कहा, “इस मामले में स्पष्ट है कि विशेष न्यायाधीश द्वारा शिकायत में वर्णित अपराध पर संज्ञान लेने से पहले आरोपी को कोई अवसर नहीं दिया गया। केवल इसी आधार पर, 20 नवंबर 2024 का आदेश रद्द किया जाना होगा।”

विधिक विश्लेषण

पीठ ने अपने पूर्व निर्णय तर्सेम लाल बनाम प्रवर्तन निदेशालय का उल्लेख किया, जिसमें स्पष्ट किया गया था कि पीएमएलए की धारा 44(1)(b) के तहत दायर शिकायतें सीआरपीसी की धारा 200 से 204 द्वारा शासित होती हैं और अब BNSS के अध्याय XVI (धारा 223 से 226) के समकक्ष प्रावधानों द्वारा।

BNSS की धारा 223(1) के उपबंध में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि आरोपी को सुनवाई का अवसर दिए बिना किसी अपराध का संज्ञान नहीं लिया जाएगा।

READ ALSO  जब हम कोर्ट में बैठते हैं, तब किसी धर्म के नहीं होतें: जाने क्यों CJI संजीव खन्ना ने की ऐसी टिप्पणी?

पक्षों की दलीलें और न्यायालय की राय

अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस.वी. राजू ने दो मुख्य दलीलें प्रस्तुत कीं:

  1. धारा 223(1) के तहत सुनवाई केवल यह निर्धारित करने तक सीमित होनी चाहिए कि शिकायत और प्रस्तुत दस्तावेजों के आधार पर मामला बनता है या नहीं।
  2. संज्ञान अपराध का लिया जाता है, न कि आरोपी का; एक बार धारा 223(1) का पालन करके संज्ञान ले लिया जाए तो पूरक शिकायतों पर दोबारा सुनवाई आवश्यक नहीं।

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इन दलीलों पर विचार नहीं किया और कहा,
“इन दलीलों पर इस अपील में इस चरण पर विचार करने की आवश्यकता नहीं है। ये मुद्दे विचार के लिए खुले रखे जाते हैं।”

READ ALSO  COVID में नौकरी जाने के बाद YouTube से नकली नोट बनाना सीखा- कोर्ट ने सुनाई आजीवन कारावास कि सजा

प्रवर्तन निदेशालय की ओर से यह भी तर्क दिया गया था कि चूंकि जांच BNSS के लागू होने से पहले पूरी हो चुकी थी, इसलिए संज्ञान से पूर्व सुनवाई का प्रावधान लागू नहीं होता। लेकिन पीठ ने स्पष्ट किया कि वर्तमान सुनवाई में यह तर्क प्रस्तुत नहीं किया गया।

निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने अपीलकर्ता को निर्देश दिया कि वह 14 जुलाई 2025 को विशेष अदालत के समक्ष उपस्थित हो ताकि BNSS की धारा 223(1) के उपबंध के तहत आवश्यक सुनवाई की प्रक्रिया पूरी की जा सके।

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles