न्यायिक अधिकारी पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली मध्य प्रदेश की सिविल जज ने हाईकोर्ट में उनके पदोन्नयन के विरोध में दिया इस्तीफा

मध्य प्रदेश के शहडोल में पदस्थ सिविल जज अदिति कुमार शर्मा ने एक न्यायिक अधिकारी के उच्च न्यायालय में पदोन्नत किए जाने के विरोध में न्यायिक सेवा से इस्तीफा दे दिया है, जिस पर उन्होंने पहले यौन उत्पीड़न के गंभीर आरोप लगाए थे। उनका इस्तीफा उस दिन आया जब केंद्र सरकार ने संबंधित जिला जज को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का जज नियुक्त करने की मंजूरी दी।

हालांकि संबंधित जज ने अब तक शपथ नहीं ली है, लेकिन उनकी पदोन्नति ने न्यायपालिका के भीतर आंतरिक शिकायतों के निपटारे के तौर-तरीकों पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

मुख्य न्यायाधीश को संबोधित अपने इस्तीफे में जज शर्मा ने कहा कि यह निर्णय उनके व्यक्तिगत दर्द से नहीं, बल्कि संस्थागत असफलता के खिलाफ एक विरोध है। उन्होंने लिखा कि उन्होंने न्याय से भरोसा नहीं खोया है, बल्कि उस प्रणाली से टूट चुकी हैं जो न्याय की सबसे बड़ी संरक्षक होने का दावा करती है। उन्होंने यह भी कहा कि उनका इस्तीफा इस बात की स्थायी गवाही के रूप में दर्ज हो कि कभी मध्य प्रदेश में एक महिला जज थी जो न्याय के लिए पूरी तरह समर्पित थी, लेकिन उसी संस्था ने उसका साथ नहीं दिया।

Video thumbnail

शर्मा उन छह महिला न्यायिक अधिकारियों में शामिल थीं जिन्हें जून 2023 में प्रोबेशन पीरियड के दौरान “असंतोषजनक प्रदर्शन” के आधार पर सेवा से हटा दिया गया था। यह निर्णय हाईकोर्ट की प्रशासनिक और पूर्ण पीठ की बैठकों के आधार पर लिया गया था।

READ ALSO  पति के लापता होने पर पत्नी की निष्क्रियता और दूसरे व्यक्ति के साथ रहना आपराधिक साजिश नहीं: उड़ीसा हाईकोर्ट

बाद में सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप करते हुए सभी छह जजों की बहाली का आदेश दिया। अदालत ने इस दौरान यह भी कहा कि न्यायिक संस्थानों को महिला अधिकारियों के प्रति अधिक संवेदनशीलता दिखानी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि न्याय केवल दिया ही न जाए, बल्कि न्यायपालिका के भीतर भी दिखे। इसके बाद शर्मा ने मार्च 2024 में शहडोल में दोबारा कार्यभार संभाला था।

जुलाई 2025 में शर्मा ने भारत के राष्ट्रपति और सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम को पत्र लिखकर उस अधिकारी की पदोन्नति पर पुनर्विचार की मांग की थी। उन्होंने कहा था कि जिनके खिलाफ गंभीर आरोप लगे हैं, उन्हें बिना किसी जांच के पदोन्नत करना न्यायपालिका की जवाबदेही और संवेदनशीलता पर सवाल खड़ा करता है। शर्मा ने यह भी स्पष्ट किया कि यह सिर्फ उनका व्यक्तिगत मुद्दा नहीं है, बल्कि न्यायिक संस्थान की चुप्पी और उदासीनता का मामला है।

शर्मा की शिकायत के अलावा दो अन्य न्यायिक अधिकारियों ने भी उसी अधिकारी के खिलाफ शिकायतें दर्ज कराई थीं, जिससे यह सवाल उठ रहा है कि पदोन्नति प्रक्रिया में पर्याप्त जांच की गई या नहीं। लिखित शिकायतों के बावजूद यह संकेत नहीं मिलता कि हाईकोर्ट ने कोई जांच की या संबंधित अधिकारी से जवाब-तलब किया। सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने जुलाई के प्रारंभ में उनके नाम की सिफारिश की और केंद्र ने 28 जुलाई को उसे मंजूरी दी।

READ ALSO  धारा 25D आईडी एक्ट: मुआवजा स्वीकार करने वाले कामगारों को छंटनी को चुनौती देने से रोका नहीं जा सकट: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

पदोन्नति को मंजूरी दिए जाने से पहले संबंधित अधिकारी ने सभी आरोपों से इनकार करते हुए सार्वजनिक रूप से कहा था कि उन्होंने तीन दशकों से अधिक सेवा की है और उनके खिलाफ कोई शिकायत नहीं रही। उन्होंने यह भी दावा किया था कि उन्हें किसी शिकायत के बारे में कोई आधिकारिक जानकारी नहीं मिली है।

अपने इस्तीफे में शर्मा ने लिखा कि उन्होंने पूरी प्रक्रिया के दौरान बार-बार शिकायतें दर्ज कराईं, लेकिन न तो कभी कोई सुनवाई हुई और न ही कोई जांच बैठाई गई। उन्होंने कहा कि सिस्टम ने कार्रवाई करने के बजाय उस अधिकारी को पदोन्नत कर सम्मानित कर दिया, जिसने जवाबदेह ठहराए जाने योग्य था। उन्होंने अपने इस्तीफे को उस पीड़ा और हताशा की अभिव्यक्ति बताया जो एक महिला अधिकारी को तब होती है जब संस्थान ही उसका साथ छोड़ दे।

READ ALSO   हाईकोर्ट ने चंडीगढ़ जिला न्यायालय में सरकारी वकीलों की कमी पर जनहित याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा

अपने पत्र के अंत में उन्होंने न्यायपालिका को संबोधित करते हुए कहा कि संस्था उस समय अपने ही एक सदस्य के साथ खड़ी नहीं हो सकी, जब उसे सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी।

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles