वह अशिक्षित था और आदिवासी पृष्ठभूमि से आता था: 4 साल की बच्ची से दुष्कर्म व हत्या के प्रयास के दोषी की फांसी की सजा एमपी हाईकोर्ट ने घटाई, 25 साल की सजा में बदली

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की जबलपुर खंडपीठ ने 4 साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म और हत्या के प्रयास के मामले में दोषी एक 20 वर्षीय आदिवासी युवक की फांसी की सजा को कम कर दिया है। न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल और न्यायमूर्ति देवनारायण मिश्रा की खंडपीठ ने दोषी की सामाजिक–शैक्षणिक पृष्ठभूमि को ध्यान में रखते हुए मृत्युदंड को 25 वर्ष के कठोर कारावास में परिवर्तित कर दिया।

पृष्ठभूमि

खण्डवा की विशेष (POCSO) अदालत ने आरोपी राजाराम @ राजकुमार को 21 अप्रैल 2023 को बाल यौन अपराध संरक्षण अधिनियम (POCSO) की धारा 6 सहित आईपीसी की धारा 363, 376AB, 307, 450 व 201 के तहत दोषी ठहराया था और मृत्युदंड की सजा सुनाई थी।

अभियोजन के अनुसार, 30-31 अक्टूबर 2022 की रात को आरोपी ने 4 वर्षीय बच्ची को सोते समय उठाया, उसके साथ दुष्कर्म किया और उसे आम के बाग में अचेत अवस्था में यह सोचकर छोड़ दिया कि वह मर चुकी है। बच्ची को बाद में गंभीर रूप से घायल और अर्धचेतन अवस्था में पाया गया।

पक्षों की दलीलें

अभियुक्त की ओर से:
वरिष्ठ अधिवक्ता संजय के. अग्रवाल ने एमिकस क्यूरी के रूप में प्रस्तुत होकर दलील दी कि अभियोजन का पूरा मामला केवल परिस्थितिजन्य साक्ष्यों और डीएनए रिपोर्ट पर आधारित था। उन्होंने कहा कि आरोपी केवल 20 वर्ष का है, अनुसूचित जनजाति से आता है, अशिक्षित है और बचपन से ही वंचित जीवन जी रहा था। पीड़िता का बयान भी दर्ज नहीं किया गया, जिससे अभियोजन पक्ष का मामला कमजोर हो जाता है।

राज्य की ओर से:
उप महाधिवक्ता यश सोनी ने राज्य का पक्ष रखते हुए ट्रायल कोर्ट के फैसले को उचित ठहराया और कहा कि डीएनए साक्ष्य एवं आरोपी से बरामद सामग्री से साफ होता है कि उसी ने अपराध किया था। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न निर्णयों का हवाला देते हुए मृत्युदंड की पुष्टि की मांग की।

न्यायालय के विचार

न्यायमूर्ति देवनारायण मिश्रा द्वारा लिखे गए निर्णय में पीठ ने परिस्थितिजन्य साक्ष्य एवं डीएनए जांच के आधार पर दोष सिद्धि को सही ठहराया। कोर्ट ने कहा:

READ ALSO  जिला न्यायालय के कर्मचारी ने मैजिस्ट्रेट पर चाकू से वार किया- जानिए विस्तार से

“…यह स्थापित होता है कि आरोपी ने अपराध किया क्योंकि उसने स्वयं उस स्थान का खुलासा किया जहाँ दुष्कर्म किया गया और फिर पीड़िता को फेंक दिया गया।”

पीठ ने यह भी उल्लेख किया कि पीड़िता से लिए गए स्लाइड्स में आरोपी का डीएनए मिला और आरोपी तथा पीड़िता के कपड़ों पर मानव रक्त पाया गया।

हालांकि, कोर्ट ने मृत्युदंड दिए जाने से असहमति जताई। आरोपी की सामाजिक स्थिति का उल्लेख करते हुए कोर्ट ने कहा:

“आरोपी अशिक्षित, 20 वर्षीय युवा है, जो आदिवासी समुदाय से आता है। उसके माता-पिता ने कभी उसे शिक्षा नहीं दी और न ही ठीक से देखभाल की, जिससे वह घर छोड़कर ढाबे में काम करता हुआ अपना जीवन यापन कर रहा था।”

कोर्ट ने बचन सिंह और मच्छी सिंह के सिद्धांतों को लागू करते हुए कहा:

“उस रात आरोपी का कृत्य ‘brutal’ नहीं कहा जा सकता, यद्यपि वह ‘barbaric’ अवश्य था।”

READ ALSO  सुप्रीम कोर्ट ने यूपी के पूर्व प्रधान सचिव को गुमराह करने वाली गवाही के लिए फटकार लगाई, अवमानना ​​नोटिस जारी किया

इसके अतिरिक्त, कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि ट्रायल कोर्ट द्वारा मानी गई पीड़िता की स्थायी शारीरिक विकलांगता के संबंध में कोई स्पष्ट चिकित्सा साक्ष्य नहीं मिला।

निर्णय

न्यायालय ने दोषसिद्धि को बरकरार रखते हुए सजा में आंशिक संशोधन किया:

  • POCSO अधिनियम की धारा 6 के तहत मृत्युदंड को घटाकर 25 वर्ष का कठोर कारावास और ₹10,000 का जुर्माना किया गया। जुर्माना न देने की स्थिति में एक वर्ष का अतिरिक्त कठोर कारावास भुगतना होगा।
  • आईपीसी की धारा 363, 307, 450 और 201 के अंतर्गत सजा को यथावत रखा गया।

इस प्रकार अपील आंशिक रूप से स्वीकृत की गई और मृत्युदंड की पुष्टि हेतु दायर आपराधिक संदर्भ को तदनुसार निस्तारित कर दिया गया।

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles