भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) जस्टिस बी.आर. गवई ने सेवानिवृत्त जजों द्वारा सरकार से जुड़े पद स्वीकार करने या राजनीति में उतरने की प्रवृत्ति पर गंभीर नैतिक सवाल उठाए हैं। यूके सुप्रीम कोर्ट में आयोजित एक राउंडटेबल चर्चा के दौरान उन्होंने कहा कि इस तरह की गतिविधियां न केवल न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर प्रश्नचिह्न लगाती हैं, बल्कि आम जनता के भरोसे को भी कमजोर करती हैं।
“नैतिक चिंता और सार्वजनिक संदेह की स्थिति”: मुख्य न्यायाधीश गवई
मुख्य न्यायाधीश गवई ने कहा:
“यदि कोई जज सेवानिवृत्त होने के तुरंत बाद सरकार में कोई पद स्वीकार करता है, या न्यायालय से इस्तीफा देकर चुनाव लड़ता है, तो यह गंभीर नैतिक चिंता पैदा करता है और सार्वजनिक संदेह को आमंत्रित करता है। किसी जज द्वारा राजनीतिक पद के लिए चुनाव लड़ना न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर संदेह उत्पन्न कर सकता है, क्योंकि यह हितों के टकराव या सरकार के प्रति कृपा अर्जित करने के प्रयास के रूप में देखा जा सकता है।”
“भविष्य की पदस्थापनाओं की उम्मीद से प्रभावित हो सकते हैं निर्णय”
मुख्य न्यायाधीश गवई ने आगाह किया कि इस प्रकार की नियुक्तियों की समय-सीमा और प्रकृति ऐसी सार्वजनिक धारणा बना सकती है कि न्यायिक निर्णय भविष्य में किसी सरकारी या राजनीतिक पद की संभावना को ध्यान में रखते हुए लिए गए हैं।
उन्होंने कहा:
“ऐसी सेवानिवृत्ति-उत्तर नियुक्तियों की समय-संवेदनशीलता और स्वरूप न्यायपालिका की साख को कमजोर कर सकते हैं, क्योंकि इससे यह धारणा बन सकती है कि जजों के फैसले भावी सरकारी पदों या राजनीतिक संलिप्तता की संभावना से प्रभावित थे।”
“हमने सार्वजनिक रूप से लिया है संकल्प”
मुख्य न्यायाधीश गवई ने यह भी कहा कि उन्होंने और उनके कई सहयोगी न्यायाधीशों ने सेवानिवृत्ति के बाद कोई सरकारी पद स्वीकार न करने का सार्वजनिक संकल्प लिया है।
उन्होंने कहा,
“यह न्यायपालिका की विश्वसनीयता और स्वतंत्रता बनाए रखने का एक प्रयास है।”
लंबे समय से जारी है बहस
भारत में जजों के सेवानिवृत्ति के तुरंत बाद सरकारी आयोगों, ट्रिब्यूनल्स या संवैधानिक पदों पर नियुक्तियों को लेकर लंबे समय से बहस चल रही है। हाल के वर्षों में सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के कई पूर्व न्यायाधीशों को ऐसे पदों पर नियुक्त किया गया है, जिससे न्यायपालिका की निष्पक्षता को लेकर सवाल उठे हैं।
कई विधि विशेषज्ञ और नागरिक समाज समूह ‘कूलिंग-ऑफ पीरियड’ की मांग कर चुके हैं, ताकि सेवानिवृत्त जजों द्वारा सरकारी पद स्वीकार करने की प्रक्रिया अधिक पारदर्शी और निष्पक्ष हो सके।
मुख्य न्यायाधीश गवई के बयान को इस बहस में एक महत्वपूर्ण हस्तक्षेप माना जा रहा है, जो न्यायपालिका की आंतरिक आत्मनिरीक्षण और संस्थागत नैतिकता को उजागर करता है।