जीरो FIR क्या होती है? ये FIR से अलग कैसे है? जानिए यहाँ

एफआईआर या प्रथम सूचना रिपोर्ट किसी आपराधिक घटना के सम्बन्ध में एक पुलिस अधिकारी को किसी व्यक्ति द्वारा दी गई जानकारी है जिसे पुलिस ने आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 154 के प्रावधानों के अनुसार लिखित रूप में दर्ज किया है। 

एफआईआर को सीआरपीसी के तहत परिभाषित नहीं किया गया है, लेकिन इसे धारा 154 के तहत प्रावधानों के संदर्भ में समझा जा सकता है। ।

यह एक संज्ञेय अपराध के होने के संबंध में प्रदान की गई जानकारी के आधार पर पुलिस द्वारा तैयार किया गया एक दस्तावेज है।

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कोई भी व्यक्ति जिसे संज्ञेय अपराध के होने की जानकारी है, वह प्राथमिकी दर्ज करा सकता है। प्राथमिकी दर्ज करने वाला व्यक्ति पीड़ित या गवाह या अपराध के बारे में जानकारी रखने वाला कोई भी व्यक्ति हो सकता है।

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जीरो एफआईआर: 

जीरो FIR की अवधारणा साल 2012 में दिल्ली में निर्भया के क्रूर सामूहिक बलात्कार के कारण सबके सामने में आई थी। निर्भया के क्रूर सामूहिक बलात्कार मामले के बाद जस्टिस वर्मा कमेटी का गठन किया गया था। समिति ने आपराधिक कानून में संशोधन की सिफारिश की ताकि महिलाओं के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोपी अपराधियों के लिए त्वरित सुनवाई और बढ़ी हुई सजा का प्रावधान किया जा सके। जस्टिस वर्मा कमेटी की ओर से सौंपी गई रिपोर्ट में जीरो एफआईआर पर बहुत बल दिया गया था।

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जीरो FIR में  पुलिस थाने के अधिकार क्षेत्र को नजरंदाज कर किसी भी पुलिस स्टेशन में शून्य प्राथमिकी दर्ज की जा सकती है। प्राथमिक जांच के बाद इस प्राथमिकी को उचित क्षेत्राधिकार के पुलिस थाने में स्थानांतरित कर दिया जाएगा।

जीरो एफआईआर का उद्देश्य: 

जीरो FIR का मुख्य उद्देश्य पुलिस पर कानूनी दायित्व डालना था कि वह त्वरित कार्यवाई कर जांच शुरू करे और अधिकार क्षेत्र की अनुपस्थिति के बहाने न बनाये और साथ ही अपराधी की जल्द से जल्द पकड़ा जा सके जिससे पीड़ित को न्याय मिल सके।

महत्वपूर्ण निर्णय:

सुप्रीम कोर्ट ने ललिता कुमारी बनाम यूपी सरकार के मामले पाया था कि संज्ञेय अपराध की सूचना मिलने पर पुलिस  धारा 154 के तहत एक  प्राथमिकी दर्ज करने के लिए  कर्तव्यबद्ध है।

हाल ही में अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत आत्महत्या के मामले में  जीरो एफआईआर का मुद्दा उठा था। सुशांत सिंह राजपूत ने मुंबई में आत्महत्या कर ली थी इसलिए मुंबई पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज की और उन्होंने मामले की जांच शुरू की। इसी बीच सुशांत सिंह राजपूत के पिता ने बिहार पुलिस में लिखित शिकायत दर्ज कर आरोप लगाया कि रिया चक्रवर्ती ने उनके बेटे की हत्या की है, जिस पर बिहार पुलिस ने नियमित प्राथमिकी दर्ज कर जांच शुरू कर दी है.

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रिया ने बिहार पुलिस द्वारा दर्ज प्राथमिकी को चुनौती दी थी। उसने तर्क दिया कि मामले में जांच करने के लिए बिहार पुलिस का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं था। बिहार पुलिस जो सबसे ज्यादा कर सकती थी, वह थी जीरो एफआईआर दर्ज करना और उसे मुंबई पुलिस को ट्रांसफर करना। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने प्राथमिकी को जीरो एफआईआर में बदलने और इसे मुंबई पुलिस को हस्तांतरित करने की रिया की याचिका को खारिज कर दिया।

आंध्र प्रदेश राज्य बनाम Punati Ramulu के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस कांस्टेबल को दोषी पाया जिसने क्षेत्राधिकार की सीमाओं का हवाला देते हुए FIR दर्ज करने से मन कर दिया था ।

यह FIR से कैसे अलग है?

एफआईआर जीरो एफआईआर से अलग है। सक्षम क्षेत्रीय क्षेत्राधिकार के पुलिस स्टेशन द्वारा दर्ज/पंजीकृत होने पर एक शून्य प्राथमिकी प्राथमिकी बन जाती है। एफआईआर के आधार पर ट्रायल आगे बढ़ता है। एफआईआर को जीरो एफआईआर में नहीं बदला जा सकता है, लेकिन इसके विपरीत अनुमति है।

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निष्कर्ष:

इस प्रकार यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि शून्य प्राथमिकी का मुख्य उद्देश्य भारत में आपराधिक कृत्यों को रोकने के लिए पुलिस की अधिकार क्षेत्र शक्ति को बढ़ाना है। एक तरफ यह पुलिस को सशक्त बनाता है तो दूसरी तरफ यह उनके कर्तव्यों को भी बढ़ाता है!

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