जस्टिस यशवंत वर्मा ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज के रूप में ली शपथ

प्रयागराज, 5 अप्रैल 2025 – जस्टिस यशवंत वर्मा ने आज इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश के रूप में शपथ ली। यह शपथ ग्रहण उनके मूल न्यायालय में वापसी का प्रतीक है, जो एक हाई-प्रोफाइल नकद घोटाले और उनके तबादले के विरोध के बीच हुआ। इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली ने उन्हें शपथ दिलाई।

जस्टिस वर्मा का जन्म 6 जनवरी 1969 को इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में हुआ था। उन्होंने हंसराज कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय से बी.कॉम (ऑनर्स) और रीवा विश्वविद्यालय से एलएलबी की डिग्री प्राप्त की। वर्ष 1992 में उन्होंने वकील के रूप में नामांकन लिया और इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपने करियर की शुरुआत की। वे 2014 में अतिरिक्त न्यायाधीश और 2016 में स्थायी न्यायाधीश बने। वर्ष 2021 में उनका तबादला दिल्ली हाईकोर्ट में हो गया। उन्होंने कई चर्चित फैसले दिए, जिनमें 2018 में डॉ. कफील खान को जमानत और 2024 में कांग्रेस पार्टी की टैक्स पुनर्मूल्यांकन याचिका को खारिज करना शामिल है।

विवादों के बीच वापसी

जस्टिस वर्मा की इलाहाबाद हाईकोर्ट में वापसी 14 मार्च 2025 को होली के दिन एक नाटकीय घटनाक्रम से शुरू हुई। दिल्ली के लुटियंस ज़ोन में स्थित उनके आधिकारिक बंगले (30 तुगलक क्रेसेंट) में आग लग गई। जब दमकलकर्मी आग बुझाने पहुंचे, तो गार्ड क्वार्टर से सटे स्टोर रूम में लगभग 15 करोड़ रुपये नकद मिलने की खबर सामने आई। उस समय जस्टिस वर्मा भोपाल में थे और घटना की सूचना मिलने पर अगले दिन दिल्ली लौटे।

दिल्ली फायर सर्विस के शुरुआती बयान पर भी विवाद हुआ। चीफ अतुल गर्ग ने पहले नकद मिलने की बात से इनकार किया, लेकिन बाद में अपना बयान बदल लिया। जली हुई मुद्रा की तस्वीरें और वीडियो सामने आने से मामला और गंभीर हो गया। दिल्ली पुलिस ने तत्काल मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना को सूचना दी, जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की आपात बैठक बुलाई।

जस्टिस वर्मा ने सभी आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए इसे “षड्यंत्र” करार दिया। उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डी.के. उपाध्याय को पत्र लिखकर कहा, “मैं स्पष्ट रूप से कहता हूं कि मेरे या मेरे किसी परिवारजन द्वारा उस स्टोररूम में कोई नकद नहीं रखा गया। यह दावा कि यह नकद हमारा है, हास्यास्पद है।” उन्होंने यह भी कहा कि स्टोररूम खुला और स्टाफ की पहुंच में था, जिससे संकेत मिलता है कि नकद किसी और द्वारा रखा गया हो सकता है।

तबादले का विरोध

READ ALSO  यदि कोई व्यक्ति किसी समझौते के तहत अपनी प्रतिबद्धता का सम्मान करने में विफल रहता है, तो यह धोखाधड़ी या आपराधिक विश्वासघात नहीं होगा: हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने जस्टिस वर्मा की वापसी का जोरदार विरोध किया। 24 मार्च को अध्यक्ष अनिल तिवारी के नेतृत्व में गेट नंबर 3 पर प्रदर्शन हुआ। उन्होंने कहा, “बिना आरोपों की जांच के वर्मा का तबादला न्यायपालिका की विश्वसनीयता को ठेस पहुंचाता है। हमारा संघर्ष भ्रष्टाचार और पारदर्शिता की कमी के खिलाफ है।”

बार एसोसिएशन की अनिश्चितकालीन हड़ताल 25 मार्च से शुरू हुई, जिसे वाराणसी और अन्य राज्यों की बार एसोसिएशनों का समर्थन मिला। उन्होंने आपराधिक जांच की मांग की और कहा, “जस्टिस वर्मा द्वारा दिए गए सभी फैसलों की समीक्षा होनी चाहिए ताकि जनता का विश्वास बहाल हो सके।” सुप्रीम कोर्ट द्वारा यह स्पष्ट करने के बावजूद कि तबादला जांच से अलग है, विरोध थमता नहीं दिखा।

READ ALSO  बॉम्बे हाई कोर्ट ने हिंदुस्तान कोका-कोला बेवरेजेज के खिलाफ ₹2,500 करोड़ की जीएसटी मांग पर रोक लगाई

2 अप्रैल को स्थानीय वकीलों द्वारा एक जनहित याचिका दाखिल की गई जिसमें वर्मा के शपथ ग्रहण पर रोक लगाने की मांग की गई थी। याचिका में कहा गया कि उनकी नियुक्ति से न्यायपालिका में जनता का भरोसा कम होगा। हालांकि तमाम विवादों के बीच शपथ ग्रहण समारोह संपन्न हुआ, लेकिन जांच समिति की रिपोर्ट अब तक सामने नहीं आई है, जिससे स्थिति असमंजसपूर्ण बनी हुई है।

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles