इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों को यौन उत्पीड़न और एससी-एसटी मामले में मिली राहत

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय के रिटायर प्रोफेसर सहित तीन प्रोफेसरों को यौन उत्पीड़न, एससी-एसटी मामले में दर्ज प्राथमिकी पर राहत देते हुए उनकी गिरफ्तारी पर अगली सुनवाई की तिथि तक रोक लगा दी है।

कोर्ट अब इस मामले में छह जुलाई को सुनवाई करेगी। यह आदेश न्यायमूर्ति विपिन चंद्र दीक्षित ने मनमोहन कृष्णा सहित दो अन्य प्रोफेसरों की ओर से दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है।

इससे पहले तीनों प्रोफेसरों की ओर से उनके अधिवक्ताओं ने पक्ष रखा। कहाकि इस मामले में पूर्व की पीठों ने सुनवाई कर आपराधिक प्रक्रिया पर रोक लगा दी थी। उसे आगे बढ़ाया जाए। क्योंकि, निचली अदालत ने इस मामले में उनके खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी कर दिया है।

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तीनों प्रोफेसरों ने आरोप पत्र दाखिल होने के बाद प्राथमिकी को रद्द करने के लिए 2016 में ही याचिका दाखिल कर रखी थी। जिस पर कोर्ट ने सुनवाई करते हुए कार्रवाई सहित गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी। बीच में कोरोना काल के दौरान इस मामले में सुनवाई नहीं हो सकी थी। इसी के बाद निचली अदालत ने गैर जमानती वारंट जारी कर दिया था।

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याचियों की ओर से आठ मई को अर्जी दाखिल कर स्थगन आदेश को आगे बढ़ाने की मांग की गई थी। कोर्ट ने 12 मई को इस मामले की सुनवाई करने के लिए कहा था। शुक्रवार को सुनवाई के बाद कोर्ट ने अगली सुनवाई तक गिरफ्तारी पर रोक लगा दी। तीनों प्रोफेसरों पर इलाहाबाद विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग की ही एक महिला असिस्टेंट प्रोफेसर ने 2016 में कर्नलगंज थाने में एससी-एसटी, यौन उत्पीड़न सहित आईपीसी की विभिन्न धाराओं में प्राथमिकी दर्ज कराई थी। मामला जिला न्यायालय में विचाराधीन है। निचली कोर्ट ने तीनों प्रोफेसरों के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किया है। इसी के खिलाफ तीनों ने हाईकोर्ट में शरण ली थी।

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