किशोरियों की निजता की रक्षा हेतु गर्भपात मामलों पर दिशा-निर्देश तीन सप्ताह में जारी करें: बॉम्बे हाईकोर्ट का महाराष्ट्र सरकार को आदेश

बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार को महाराष्ट्र सरकार को निर्देश दिया कि अवांछित गर्भधारण के मामलों में पंजीकृत चिकित्सकों से संपर्क करने वाली किशोरियों की निजता की रक्षा के लिए तीन सप्ताह के भीतर दिशा-निर्देश तैयार कर अधिसूचित किए जाएं।

न्यायमूर्ति रेवती मोहिते-डेरे और न्यायमूर्ति संदीश पाटिल की खंडपीठ ने यह आदेश उस याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया, जिसे कुछ चिकित्सकों, जिनमें मुंबई के स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. निखिल दातार भी शामिल हैं, ने दायर किया था। डॉक्टरों ने शिकायत की थी कि पुलिस अपनी सीमा से बाहर जाकर ऐसे मामलों में गर्भपात के लिए आने वाली किशोरियों के नाम उजागर करने का दबाव डालती है।

डॉ. दातार ने दलील दी कि 2012 के लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम (पॉक्सो) के कठोर अनुपालन से सहमति आधारित किशोर संबंधों में कठिनाइयां उत्पन्न होती हैं। उन्होंने कहा कि चिकित्सक रोगी की गोपनीयता और धारा 19 के तहत अनिवार्य पुलिस रिपोर्टिंग, दोनों जिम्मेदारियों के बीच फंस जाते हैं।

Video thumbnail

अपने हलफनामे में डॉ. दातार ने सुझाव दिया कि यदि 15 से 18 वर्ष के किशोर-किशोरी स्पष्ट रूप से सहमति आधारित संबंध होने की बात कहें और उनके साथी की आयु भी नज़दीकी हो, तो पुलिस कार्रवाई शुरू करने से पहले “कूल-ऑफ पीरियड” (अवधि) का प्रावधान किया जाए। उन्होंने कहा कि यह छूट केवल उन्हीं मामलों में सीमित हो, जहां आयु अंतर पांच वर्ष से कम हो और अभिभावक भी पुलिस कार्रवाई न करने के लिए सहमत हों। यह छूट शिक्षकों या रिश्तेदारों जैसे भरोसेमंद व जिम्मेदारी वाले वयस्कों के मामलों में लागू न हो।

READ ALSO  7 साल से अधिक सेवा वाले दैनिक वेतनभोगी कर्मचारी एसआरओ नीति के तहत नियमितीकरण लाभ के पात्र हैं: फैसला

डॉ. दातार ने सुझाव दिया कि राज्य सरकार एक मानक प्रपत्र जारी करे, जिसके आधार पर चिकित्सक अभिभावकों से लिखित सहमति ले सकें, यदि वे पुलिस को रिपोर्ट नहीं करना चाहते। उन्होंने यह स्पष्ट करने की भी मांग की कि किन परिस्थितियों में अभिभावक की परिभाषा लागू होगी और अभिभावक की अनुपस्थिति में क्या नाबालिग स्वयं वैध सहमति दे सकता है।

सुनिश्चित करने के लिए कि निर्णय स्वतंत्र और बिना दबाव के हों, उन्होंने “थर्ड-पार्टी ऑथेंटिकेशन” (तृतीय पक्ष प्रमाणीकरण) की भी सिफारिश की। इसमें अभिभावक का नोटरीकृत शपथपत्र, सिविल सर्जन की पुष्टि या फिर यदि मामला “कूल-ऑफ पीरियड” श्रेणी में आता हो तो पुलिस की प्रमाणिकता भी शामिल की जा सकती है।

READ ALSO  उत्तराखंड में अधीनस्थ को परेशान करने के आरोप में जिला जज निलंबित

डॉ. दातार ने कहा कि पॉक्सो के तहत अनिवार्य रिपोर्टिंग बनी रहनी चाहिए, लेकिन रिपोर्ट को गुमनाम बनाया जाए। उन्होंने प्रस्ताव दिया कि चिकित्सक नाम उजागर किए बिना केवल एक निर्दिष्ट सरकारी चैनल पर जानकारी भेजें और पुलिस इस डेटा को केवल सांख्यिकीय उद्देश्यों के लिए रखे, आपराधिक कार्यवाही शुरू न करे।

बॉम्बे हाईकोर्ट पहले भी पुलिस को इस बात पर फटकार लगा चुका है कि डॉक्टरों से किशोरियों की पहचान उजागर करने का दबाव डाला गया, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने 2022 में स्पष्ट किया था कि ऐसी जानकारी साझा करना अनिवार्य नहीं है।

READ ALSO  दिल्ली की अदालत ने व्यक्ति को पत्नी की हत्या का दोषी ठहराया

राज्य सरकार को अब तीन सप्ताह में निजता संरक्षण से जुड़े दिशा-निर्देश जारी करने का आदेश दिया गया है।

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles