सहमति देने वाले वयस्कों को जीवनसाथी चुनने और साथ रहने का अधिकार अनुच्छेद 21 के तहत संरक्षित: दिल्ली हाईकोर्ट ने दंपति को पुलिस सुरक्षा देने का आदेश

दिल्ली हाईकोर्ट ने एक विवाहित दंपति को कथित पारिवारिक धमकियों और हस्तक्षेप से सुरक्षा देने का आदेश देते हुए कहा कि सहमति देने वाले वयस्कों को जीवनसाथी चुनने और शांति से साथ रहने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत संरक्षित है।

न्यायमूर्ति संजीव नरूला ने संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत दायर याचिका, जिसे भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 528 के साथ पढ़ा गया, पर सुनवाई करते हुए दंपति की सुरक्षा और शांतिपूर्ण सहजीवन सुनिश्चित करने के लिए एहतियाती निर्देश जारी किए।

मामले की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता, दोनों वयस्क, ने 23 जुलाई 2025 को दिल्ली स्थित आर्य समाज सनातन वैदिक संस्कार ट्रस्ट, तिस हजारी कोर्ट में हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार विवाह किया। विवाह प्रमाणपत्र और आयु के प्रमाण दस्तावेज अदालत में प्रस्तुत किए गए।

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आरोप है कि महिला के विधिक अभिभावक और माता ने इस संबंध का विरोध किया और बार-बार शारीरिक नुकसान की धमकी दी। महिला के अनुसार, उसने 18 जुलाई 2025 को अपनी मां को विवाह के निर्णय की जानकारी देकर पैतृक घर छोड़ दिया। विवाह के बाद भी दंपति ने लगातार धमकियों, कॉल और संदेशों का सामना करने का दावा किया, जिनमें से कुछ कथित तौर पर पुलिस अधिकारियों की ओर से या उनके निर्देश पर की गईं। साथ ही उन्हें आशंका है कि उन्हें परेशान करने के लिए झूठी शिकायतें दर्ज कराई जा सकती हैं।

पुलिस की स्थिति रिपोर्ट

राज्य की ओर से दाखिल स्थिति रिपोर्ट के अनुसार महिला की कथित गुमशुदगी की शिकायत दर्ज की गई, जिसके तहत 19 जुलाई 2025 को थाना नेब सराय में डीडी एंट्री संख्या 55ए बनाई गई। प्रारंभिक जांच के दौरान पुरुष ने विवाह प्रमाणपत्र प्रस्तुत किया और महिला ने जांच अधिकारी को फोन पर बताया कि उसने अपनी मर्जी से विवाह किया है और स्वेच्छा से घर छोड़ा है।

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इस पुष्टि के बाद गुमशुदगी की जांच बंद कर दी गई और इसका निर्णय उसके परिवार को भी सूचित किया गया।

अदालत के अवलोकन

अदालत ने कहा, “सहमति देने वाले दो वयस्कों को एक-दूसरे को जीवनसाथी के रूप में चुनने और शांति से साथ रहने का अधिकार उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता, गोपनीयता और गरिमा का हिस्सा है, जो अनुच्छेद 21 के तहत संरक्षित है।” अदालत ने स्पष्ट किया कि पारिवारिक असहमति इस स्वायत्तता को सीमित नहीं कर सकती और सुप्रीम कोर्ट के उन निर्णयों का हवाला दिया जिनमें ऐसे दंपतियों को सुरक्षा देने के निर्देश दिए गए हैं।

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जारी निर्देश

दंपति की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अदालत ने निर्देश दिया कि—

  • संबंधित थाने का SHO एक बीट अधिकारी नियुक्त करे, उसे आदेश की जानकारी दे और दंपति को बीट अधिकारी का मोबाइल नंबर तथा थाने का 24×7 संपर्क उपलब्ध कराए।
  • किसी भी धमकी की शिकायत मिलने पर पुलिस डीडी एंट्री दर्ज करे और तुरंत सहायता प्रदान करे।
  • याचिकाकर्ताओं के वकील उसी दिन उनका वर्तमान पता और संपर्क विवरण जांच अधिकारी को उपलब्ध कराएं।
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अदालत ने स्पष्ट किया कि वह आरोपों की सच्चाई पर कोई राय व्यक्त नहीं कर रही है और चूंकि इस चरण में प्रतिवादियों को सुना नहीं गया है, उनके सभी अधिकार विधि के अनुसार उपयुक्त मंच पर विवादित करने के लिए खुले रहेंगे।

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