मृत्युदंड के निर्धारण में केवल अपराध की प्रकृति नहीं, बल्कि प्रत्येक दोषी के पक्ष में एवं विरुद्ध परिस्थितियों पर विचार होना आवश्यक: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि मृत्युदंड जैसी गंभीर सजा के निर्धारण में अदालत को केवल अपराध की गंभीरता या प्रकृति पर नहीं, बल्कि प्रत्येक आरोपी से संबंधित प्रतिकूल और सहायक तथ्यों पर विचार करना आवश्यक है। यह आदेश मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बिभु दत्त गुरु की खंडपीठ ने राज्य बनाम संतराम मांझवार एवं अन्य [CRREF No. 1 of 2025] में दिया।

यह मामला विशेष न्यायालय द्वारा सुनाए गए मृत्यु दंड के निर्णय की पुष्टि हेतु भेजे गए संदर्भ तथा दो आपराधिक अपीलों [CRA Nos. 357/2025, 574/2025] से संबंधित था।

पृष्ठभूमि

29 जनवरी 2021 को मृतक ‘ए’, उसकी 16 वर्षीय बेटी ‘बी’ और 4 वर्षीय नातिन ‘सी’ को अभियुक्तों द्वारा मोटरसाइकिल से घर छोड़ने के बहाने साथ ले जाया गया। अभियोजन के अनुसार, नाबालिग ‘बी’ के साथ सामूहिक बलात्कार कर उसकी हत्या कर दी गई और शेष दो मृतकों को भी निर्ममता से मार डाला गया।

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विशेष न्यायाधीश (POCSO), कोरबा ने 15 जनवरी 2025 को आरोपी संतराम मांझवार, अब्दुल जब्बार @ विक्की, अनिल कुमार सारथी, परदेशी दास और आनंद दास को IPC की धारा 302/149 (तीन बार), 376(DA)/149, 376(A)/149, धारा 6 POCSO अधिनियम, धारा 120B, 148 IPC तथा एससी/एसटी एक्ट की धाराओं 3(2)(v) और 3(1)(w) के तहत दोषी पाते हुए मृत्युदंड से दंडित किया। आरोपी उमाशंकर यादव को शारीरिक अक्षमता के कारण शेष अपराधों में आजीवन कारावास (बिना क्षमा) की सजा दी गई।

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अभियुक्तों के तर्क

वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीमती शर्मिला सिंघई एवं अधिवक्ता श्री धीरेज कुमार वानखेडे ने कहा:

“पुलिस द्वारा की गई कार्रवाई अभियोजन के गवाहों के बयानों से सिद्ध नहीं होती है।”

“घटना का कोई प्रत्यक्षदर्शी गवाह नहीं है। परिस्थितिजन्य साक्ष्य की श्रृंखला पूर्ण नहीं है।”

“अपराधियों को केवल संदेह के आधार पर फंसाया गया है। अपराध सिद्ध नहीं हुआ है।”

मृत्युदंड को चुनौती देते हुए उन्होंने कहा:

“वर्तमान मामला ‘दुर्लभतम में दुर्लभ’ की श्रेणी में नहीं आता और ट्रायल कोर्ट द्वारा दिया गया मृत्युदंड असंगत है।”

उन्होंने Bachan Singh, Manoj, Machhi Singh जैसे सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों पर भरोसा किया।

राज्य का पक्ष

राज्य की ओर से अपर महाधिवक्ता श्री शशांक ठाकुर ने कहा:

“अभियुक्तों ने तीन व्यक्तियों की हत्या की है, जिनमें से एक 16 वर्षीया नाबालिग लड़की और एक 4 वर्ष की बालिका है।”

“मृतका ‘बी’ की हत्या से पूर्व उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया और 4 वर्ष की बालिका को पत्थर पर पटक कर मार डाला गया।”

कोर्ट का विश्लेषण

अदालत ने मृत्यु को हत्यात्मक (homicidal) बताते हुए कहा:

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“पोस्टमार्टम रिपोर्ट स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि मृत्यु हत्यात्मक थी।”

नाबालिग की उम्र के संबंध में अदालत ने कहा:

“पीड़िता की जन्मतिथि 11.04.2005 है… घटना की तिथि 29.01.2021 को उसकी आयु 15 वर्ष 9 माह और 18 दिन थी।”

जातिगत स्थिति पर अदालत ने कहा:

“यह एक स्वीकृत तथ्य है कि मृतक ‘हिल कोरवा’ अनुसूचित जनजाति वर्ग से संबंधित थे, जो कि Ex.P-8, P-9 और P-10 से स्पष्ट है।”

अदालत ने यह भी कहा:

“अभियुक्तों द्वारा दिए गए मेमोरेंडम (Ex.P-13 से P-18) अभियोजन की कहानी से मेल खाते हैं और इनके आधार पर आपराधिक साक्ष्य प्राप्त हुए।”

“अभियुक्त संतराम मांझवार के DNA का प्रोफ़ाइल पीड़िता की अंडरगारमेंट में पाया गया है जो बलात्कार का निर्णायक प्रमाण है।”

सजा पर न्यायालय की टिप्पणी

कोर्ट ने धारा 354(3) CrPC को उद्धृत करते हुए कहा:

“मृत्युदंड दिए जाने की स्थिति में, न्यायालय को विशेष कारणों का उल्लेख करना अनिवार्य है।”

Manoj v. State of MP निर्णय का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा:

“सजा केवल अपराध की प्रकृति के आधार पर नहीं, बल्कि आरोपी की व्यक्तिगत विशेषताओं के आधार पर तय की जानी चाहिए।”

कोर्ट ने आगे कहा:

“सुधार की संभावना आदर्श है और वही समाज का लक्ष्य भी होना चाहिए… लेकिन इस सुधार को मापने हेतु कोई ठोस व्यवस्था अब तक नहीं है।”

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“ट्रायल कोर्ट को सजा सुनाने से पूर्व अभियुक्तों के सामाजिक-आर्थिक, मानसिक, और नैतिक पक्षों की जानकारी एकत्र कर अलग से सुनवाई करनी चाहिए थी। यह प्रक्रिया पूरी नहीं हुई।”

निर्णय

कोर्ट ने सभी अभियुक्तों की दोषसिद्धि की पुष्टि करते हुए कहा:

“हम दोषसिद्धि की पुष्टि करते हैं… अब प्रश्न यह है कि क्या यह मामला ‘दुर्लभतम में दुर्लभ’ श्रेणी में आता है और क्या मृत्युदंड उचित है।”

कोर्ट ने निर्देश दिया कि ट्रायल कोर्ट Manoj निर्णय में दिए गए दिशानिर्देशों के अनुरूप प्रत्येक अभियुक्त के संदर्भ में मानसिक, सामाजिक, आर्थिक तथा जेल आचरण आदि से संबंधित रिपोर्ट एकत्र करे। रिपोर्ट मिलने के बाद ही मृत्युदंड की पुष्टि अथवा संशोधन पर विचार किया जाएगा।

मामले का नाम: राज्य बनाम संतराम मांझवार एवं अन्य
मामला संख्या: CRREF No. 1 of 2025; CRA Nos. 357/2025, 574/2025

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