सुप्रीम कोर्ट ने 70 वर्षीय दृष्टिबाधित व्यक्ति को जमानत दी, हाईकोर्ट  के दृष्टिकोण की आलोचना की

एक महत्वपूर्ण निर्णय में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 70 वर्षीय दृष्टिबाधित व्यक्ति को जमानत दी, साथ ही मामले को संभालने में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट  के “लापरवाह दृष्टिकोण” की आलोचना की। यह निर्णय विशेष अनुमति याचिका (आपराधिक) संख्या 8388/2024 में लिया गया, जिसका शीर्षक “भेरूलाल बनाम मध्य प्रदेश राज्य” था।

मामले की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता भेरूलाल को मध्य प्रदेश के मंदसौर के प्रथम अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने भारतीय दंड संहिता की धारा 420, 467, 468, 471, 120-बी और 201 के तहत अपराधों के लिए दोषी ठहराया था। उसे चार साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई और 5,000 रुपये का जुर्माना लगाया गया। अपनी सजा के बाद, भेरूलाल ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट  में एक अपील (आपराधिक अपील संख्या 5480/2023) दायर की, साथ ही अपील के अंतिम निपटारे तक अपनी सजा को निलंबित करने और जमानत पर रिहा करने के लिए आवेदन भी दायर किए। हाईकोर्ट  ने इन आवेदनों को खारिज कर दिया।

मुख्य कानूनी मुद्दे और न्यायालय का निर्णय

न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति उज्जल भुयान की सदस्यता वाली सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में कई महत्वपूर्ण कानूनी बिंदुओं पर विचार किया:

1. निश्चित अवधि की सजा का निलंबन: न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि “यदि ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई सजा निश्चित अवधि के लिए है, तो आमतौर पर अपीलीय न्यायालय को सजा के निलंबन की याचिका पर उदारतापूर्वक विचार करना चाहिए, जब तक कि कोई असाधारण परिस्थितियाँ न हों”। पीठ ने सजा के निलंबन को अस्वीकार करने के लिए कोई कारण न बताने के लिए हाईकोर्ट  की आलोचना की।

2. आयु और स्वास्थ्य संबंधी विचार: न्यायालय ने भेरूलाल की बढ़ती उम्र (70 वर्ष) और उनकी बिगड़ती स्वास्थ्य स्थिति, विशेष रूप से उनकी 90% दृष्टि हानि को ध्यान में रखा।

3. सजा काट चुका समय: पीठ ने माना कि भेरूलाल ने अपनी चार साल की सजा में से दो साल पहले ही काट लिए हैं।

4. हाईकोर्ट  का दृष्टिकोण: सर्वोच्च न्यायालय ने मामले को संभालने के हाईकोर्ट  के तरीके की कड़ी आलोचना करते हुए कहा, “हम इस तथ्य पर ध्यान देते हैं कि हाईकोर्ट ों द्वारा बिना किसी विचार के स्टीरियोटाइप आदेश पारित किए जाते हैं”। न्यायालय ने आगे कहा कि “हाईकोर्ट  के इस तरह के लापरवाह दृष्टिकोण के कारण देश की सर्वोच्च अदालत के समक्ष यह विशेष अनुमति याचिका दायर की गई है।”

न्यायालय का निर्णय और अवलोकन

हाईकोर्ट  ने विशेष अनुमति याचिका पर नोटिस जारी किया और निचली अदालत द्वारा लगाई गई शर्तों के अधीन भेरूलाल को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया। पीठ ने कई उल्लेखनीय अवलोकन किए:

1. हाईकोर्ट  के दृष्टिकोण पर: “हाईकोर्ट  पहले ही सजा के निलंबन की याचिका पर आसानी से विचार कर सकता था”।

2. अनावश्यक मुकदमे पर: “यदि हाईकोर्ट  ने कारावास की निश्चित अवधि की सजा के निलंबन को नियंत्रित करने वाले कानून के सही सिद्धांतों को लागू किया होता तो इस मुकदमेबाजी को आसानी से टाला जा सकता था”।

3. याचिकाकर्ता की स्थिति पर: “ऐसा कोई भी साक्ष्य रिकॉर्ड में नहीं है जिससे यह संकेत मिले कि अपील लंबित रहने तक जमानत पर रिहा होने से न्याय की प्रक्रिया बाधित होगी”।

Also Read

इस मामले में अधिवक्ता श्री अनूप कुमार, श्रीमती नेहा जायसवाल, श्री शिवम कुमार, सुश्री प्रज्ञा चौधरी और सुश्री श्रुति सिंह ने याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व करते हुए बहस की।

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles