सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को देशभर में एक्सप्रेसवे और राष्ट्रीय राजमार्गों पर होने वाले सड़क हादसों को रोकने के लिए पैन-इंडिया दिशानिर्देश तैयार करने पर विचार किया। शीर्ष अदालत ने राजस्थान के फलोदी में हाल ही में हुए भीषण सड़क हादसे का उल्लेख करते हुए कहा कि ऐसे हादसों की पुनरावृत्ति रोकने के लिए मौजूदा कानूनी प्रावधानों में मौजूद खामियों को भरना आवश्यक है।
न्यायमूर्ति जे.के. महेश्वरी और न्यायमूर्ति विजय बिश्नोई की पीठ ने राष्ट्रीय राजमार्गों और एक्सप्रेसवे के दोनों ओर अवैध रूप से बने ढाबों और छोटी खाने-पीने की दुकानों को सड़क दुर्घटनाओं का एक प्रमुख कारण बताया। पीठ ने राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से ऐसे अवैध ढाबों के खिलाफ कार्रवाई के लिए लागू वैधानिक नियमों और प्रावधानों को रिकॉर्ड पर रखने को कहा।
अदालत ने यह भी जानना चाहा कि अब तक क्या कार्रवाई की गई है, किस प्राधिकरण पर कार्रवाई शुरू करने की जिम्मेदारी है और किन संस्थाओं द्वारा प्रावधानों का पालन नहीं किया जा रहा है।
पीठ ने अपने आदेश में कहा,
“एमिकस और सॉलिसिटर जनरल के बीच चर्चा के बाद जो मुद्दे सुलझाए गए हैं, जो दिशानिर्देश जारी करने में सहायक हो सकते हैं, उन्हें भी प्रस्तुत किया जाए। इस बीच, पक्षकार गूगल इमेज का आदान-प्रदान कर सकते हैं, जो वास्तविक समस्या के समाधान में सहायक हो सकती हैं।”
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को बताया कि NHAI के पास अवैध ढाबों और खाने-पीने की दुकानों को हटाने की शक्ति है, लेकिन आम तौर पर इसका अधिकार स्थानीय जिलाधिकारी को सौंपा गया है।
उन्होंने कहा, “स्थानीय पुलिस और अन्य प्रशासनिक अधिकारी जिलाधिकारी के अधीन होते हैं, जिन पर NHAI का नियंत्रण नहीं है। इसलिए हमें इसका कोई व्यावहारिक समाधान खोजना होगा।”
इस मुद्दे को गैर-विवादात्मक बताते हुए मेहता ने कहा कि सामान्यतः हर एक्सप्रेसवे और राष्ट्रीय राजमार्ग पर कुछ किलोमीटर के बाद सर्विस रोड होती है, जहां खराब वाहन खड़े किए जाते हैं।
हालांकि, न्यायमूर्ति विजय बिश्नोई ने इस दलील से आंशिक असहमति जताते हुए कहा कि हर एक्सप्रेसवे और राष्ट्रीय राजमार्ग पर सर्विस रोड नहीं होती। उन्होंने कहा कि बीच-बीच में अवैध ढाबे और छोटी दुकानें बन जाती हैं, “जहां अधिकांश दुर्घटनाएं होती हैं।”
पीठ ने यह भी कहा कि NHAI की रिपोर्ट में अवैध कब्जों के लिए स्थानीय ठेकेदारों या प्रशासन को जिम्मेदार ठहराया गया है, लेकिन अदालत यह जानना चाहती है कि कानून के तहत वह कौन-सा प्राधिकरण है, जिस पर यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी है कि ऐसे ढाबे और दुकानें राजमार्गों पर पनपें ही नहीं।
न्यायमूर्ति जे.के. महेश्वरी ने स्पष्ट किया कि अदालत मौजूदा कानूनी प्रावधानों में मौजूद कमियों को भरने और उनके प्रभावी क्रियान्वयन के लिए दिशानिर्देश बनाना चाहती है, ताकि फलोदी जैसे हादसों की पुनरावृत्ति रोकी जा सके।
हस्तक्षेपकर्ता की ओर से पेश हुए अधिवक्ता प्रणव सचदेवा ने दलील दी कि सुप्रीम कोर्ट पहले भी इस तरह के मुद्दों पर विचार कर चुका है और कुछ निर्देश जारी किए गए थे, जिनका पालन नहीं हुआ। उन्होंने गोवा का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां कुछ राजमार्ग गांवों या मेडिकल कॉलेजों से होकर गुजरते हैं, जिससे दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ जाता है।
सचदेवा ने कहा, “मैंने सुप्रीम कोर्ट का हालिया फैसला दाखिल किया है, जिसमें NHAI को अतिक्रमण हटाने के लिए एक एसओपी (Standard Operating Procedure) तैयार करने का निर्देश दिया गया था।”
इस पर न्यायमूर्ति महेश्वरी ने कहा कि यह समस्या केवल किसी एक राज्य तक सीमित नहीं है। उन्होंने कहा, “यह मुद्दा केवल एक राज्य का नहीं, बल्कि पूरे देश का है,” और अदालत व्यापक राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में दिशानिर्देश तैयार करने पर विचार कर रही है।
मामले में नियुक्त एमिकस क्यूरी वरिष्ठ अधिवक्ता ए.एन.एस. नाडकर्णी ने अदालत को बताया कि उन्होंने देशभर के राजमार्गों पर बड़े पैमाने पर हुए अतिक्रमण को दर्शाने वाली गूगल इमेज रिकॉर्ड पर दाखिल की हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने 10 नवंबर को इस मामले में NHAI और सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय से जवाब तलब किया था। अदालत ने अधिकारियों को फलोदी से गुजरने वाले राजमार्ग पर मौजूद ढाबों की संख्या का सर्वे कराने और उसकी रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया था। साथ ही, सड़क की स्थिति और रखरखाव के लिए ठेकेदार द्वारा अपनाए गए मानकों पर भी एक विशिष्ट रिपोर्ट मांगी गई थी।
शीर्ष अदालत ने 2 नवंबर को राजस्थान के फलोदी के पास माटोड़ा गांव में हुए हादसे का स्वतः संज्ञान लिया था। इस दुर्घटना में बीकानेर के कोलायत मंदिर से जोधपुर जा रहा एक टेम्पो ट्रैवलर खड़े ट्रेलर ट्रक से टकरा गया था, जिसमें 15 लोगों की मौत हो गई थी। मृतकों में 10 महिलाएं और चार बच्चे शामिल थे।
मामले में आगे की सुनवाई NHAI और अन्य संबंधित प्राधिकरणों द्वारा आवश्यक रिपोर्ट और वैधानिक प्रावधान प्रस्तुत किए जाने के बाद होगी, जिसके आधार पर सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रीय स्तर पर सड़क सुरक्षा से जुड़े दिशानिर्देशों पर निर्णय लेगा।

