देश भर में तेजी से बढ़ रहे “डिजिटल अरेस्ट” घोटाले पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया है। यह एक ऐसा साइबर अपराध है जिसमें धोखेबाज निर्दोष नागरिकों से पैसे ऐंठने के लिए फर्जी अदालती आदेशों का इस्तेमाल करते हैं। इस गंभीर मुद्दे पर गहरी चिंता जताते हुए, सर्वोच्च न्यायालय ने शुक्रवार को स्वतः संज्ञान लेते हुए एक मामला शुरू किया और केंद्र सरकार व केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) से जवाब मांगा है।
यह कदम एक वरिष्ठ नागरिक दंपति की दर्दनाक शिकायत के बाद उठाया गया, जिनसे धोखाधड़ी करके उनकी जीवन भर की जमापूंजी, यानी 1.5 करोड़ रुपये, ठग लिए गए थे। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जयमाल्य बागची की बेंच ने इस बात पर हैरानी जताई कि अपराधी अपने मंसूबों को अंजाम देने के लिए खुलेआम सुप्रीम कोर्ट के नाम पर जाली दस्तावेज, जजों के फर्जी हस्ताक्षर और नकली मुहरों का इस्तेमाल कर रहे हैं।
बेंच ने कहा, “इस अदालत और हाईकोर्ट के नाम, मुहर और न्यायिक अधिकार का जालसाजी और आपराधिक दुरुपयोग एक गंभीर चिंता का विषय है। जजों के फर्जी हस्ताक्षर वाले न्यायिक आदेश न्यायपालिका में जनता के विश्वास की नींव पर सीधा प्रहार करते हैं।”

यह पूरा मामला तब सामने आया जब एक दंपति को 1 से 16 सितंबर के बीच वीडियो कॉल पर खुद को CBI और खुफिया ब्यूरो के अधिकारी बताने वाले अपराधियों ने आतंकित किया। धोखेबाजों ने सुप्रीम कोर्ट के नकली आदेश दिखाकर, जिसमें मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (PMLA) के तहत संपत्ति फ्रीज करने का एक फर्जी आदेश भी शामिल था, दंपति को पैसे ट्रांसफर करने के लिए मजबूर किया।
कैसे काम करता है ‘डिजिटल अरेस्ट’ घोटाला?
‘डिजिटल अरेस्ट’ ऑनलाइन धोखाधड़ी का एक तरीका है जिसमें अपराधी खुद को पुलिस या अन्य सरकारी अधिकारी बताते हैं। वे पीड़ित से संपर्क करते हैं, जो अक्सर एक वरिष्ठ नागरिक होता है, और उन्हें यकीन दिलाते हैं कि वे किसी गंभीर अपराध में फंस गए हैं। तत्काल गिरफ्तारी की धमकी देकर और वीडियो कॉल पर फर्जी कानूनी कार्यवाही में उलझाकर, पीड़ितों पर नकली मामले को “रफा-दफा” करने के लिए बड़ी रकम ट्रांसफर करने का दबाव बनाया जाता है।
अदालत ने कहा कि यह कोई अकेली घटना नहीं है, और मीडिया में देश के विभिन्न हिस्सों में ऐसी ही कई घटनाओं की खबरें आई हैं। हरियाणा के अंबाला में दर्ज दो FIR संगठित आपराधिक गतिविधियों की ओर इशारा करती हैं जो विशेष रूप से बुजुर्गों को निशाना बना रही हैं।
स्थिति की गंभीरता को समझते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने इन घोटालों से निपटने के लिए एक समन्वित, देशव्यापी प्रयास का आह्वान किया है। अदालत ने भारत के अटॉर्नी जनरल से सहायता मांगी है और हरियाणा के साइबर क्राइम विभाग को भी वरिष्ठ नागरिकों द्वारा दायर शिकायत पर अब तक की जांच की स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने जोर देकर कहा कि इन अपराधों को केवल धोखाधड़ी का सामान्य मामला नहीं माना जा सकता, बल्कि यह देश की न्यायिक प्रणाली पर सीधा हमला है।