सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस की अंतिम रिपोर्ट में नाम न होने वाले अभियुक्तों को बुलाने में मजिस्ट्रेट की भूमिका को स्पष्ट किया

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 17 मार्च 2025 को दिए एक हालिया आदेश में स्पष्ट किया है कि यद्यपि मजिस्ट्रेट को यह अधिकार प्राप्त है कि वह पुलिस चार्जशीट में नामित न किए गए व्यक्ति को भी समन जारी कर सकता है, परंतु यह निर्देश पुलिस को चार्जशीट में नाम जोड़ने के रूप में नहीं होना चाहिए। अदालत ने कहा कि इस प्रकार के निर्देश जांच और न्यायिक प्रक्रिया के बीच की सीमाओं को धुंधला कर देते हैं।


न्यायमूर्ति एहसानुद्दीन अमानुल्लाह और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने यह आदेश गोपाल प्रधान बनाम छत्तीसगढ़ राज्य एवं अन्य, विशेष अनुमति याचिका (फौजदारी) संख्या 3649/2025 में पारित किया। यह मामला छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के फरवरी 2025 के आदेश से संबंधित है।

पृष्ठभूमि

Video thumbnail


याचिकाकर्ता गोपाल प्रधान, जो पेशे से पटवारी हैं, 13 अप्रैल 2018 को न्यायिक मजिस्ट्रेट, प्रथम श्रेणी, पिथौरा (जिला महासमुंद, छत्तीसगढ़) द्वारा पारित एक आदेश से आहत थे। फौजदारी मामला संख्या 454/2017 में मजिस्ट्रेट ने निर्देश दिया था कि गोपाल प्रधान और पूर्व भूमि अधिग्रहण अधिकारी के.डी. वैष्णव को चार्जशीट में आरोपी के रूप में शामिल किया जाए और उन्हें समन जारी किया जाए।

READ ALSO  अनुकंपा नियुक्ति: वैध गोद लेने की शर्तें अनिवार्य, बिना जांच लोक अदालत का आदेश अमान्य: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

यह निर्देश उस स्थिति में आया जब पुलिस ने जांच के बाद जो अंतिम रिपोर्ट सौंपी थी, उसमें प्रधान के खिलाफ कार्यवाही के लिए पर्याप्त आधार नहीं पाया गया था।

याचिकाकर्ता की दलीलें


याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता अभिनव श्रीवास्तव (ए.ओ.आर.), श्री बजरंग अग्रवाल एवं सुश्री उन्नति वैभव ने दलील दी कि मजिस्ट्रेट को यह अधिकार नहीं है कि वह पुलिस को किसी व्यक्ति को चार्जशीट में आरोपी के रूप में शामिल करने का निर्देश दे, विशेषकर जब जांच एजेंसी ने ऐसा करने की आवश्यकता नहीं मानी हो।

READ ALSO  पेंशन लाभ कोई इनाम या पुरस्कार नहीं है, यह एक कानूनी अधिकार है: हाईकोर्ट

अदालत का निष्कर्ष


सुप्रीम कोर्ट ने यह स्वीकार किया कि अदालतें उन व्यक्तियों के विरुद्ध भी संज्ञान ले सकती हैं, जिनका नाम पुलिस रिपोर्ट में नहीं है। परंतु ऐसा केवल न्यायिक मस्तिष्क का उचित उपयोग करके ही किया जा सकता है—चार्जशीट में नाम जोड़ने के निर्देश देकर नहीं।

पीठ ने कहा:


“कानून में कोई ऐसा प्रावधान नहीं है जिससे अदालत पुलिस को किसी व्यक्ति के विरुद्ध चार्जशीट दायर करने का निर्देश दे सके।”

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया:


“कोर्ट पुलिस की अंतिम रिपोर्ट से असहमति रखते हुए स्वयं संज्ञान ले सकता है… ऐसी स्थिति में अदालत को आरोपी को समन जारी करना चाहिए, न कि चार्जशीट में नाम जोड़ने के निर्देश देना।”

हालांकि, चूंकि मजिस्ट्रेट ने वास्तव में समन जारी किया था और आदेश का प्रभाव यही था कि याचिकाकर्ता को आरोपी के रूप में माना जाए, इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। अदालत ने कहा कि यद्यपि प्रक्रिया में त्रुटि हुई, लेकिन इससे अंतिम निष्कर्ष पर कोई विधिक प्रभाव नहीं पड़ा।

READ ALSO  'असंसदीय' भाषा का इस्तेमाल करने पर गुजरात के वकील के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू करें: हाई कोर्ट

अंतिम आदेश


विशेष अनुमति याचिका को खारिज कर दिया गया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण स्पष्टता दर्ज की:
अदालतें पुलिस रिपोर्ट से असहमति जताकर अतिरिक्त आरोपियों को समन कर सकती हैं, परंतु वे पुलिस को चार्जशीट में नाम जोड़ने का निर्देश नहीं दे सकतीं।

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles