राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने गाजियाबाद में सड़क के किनारे कंक्रीटीकरण तथा पार्कों में निर्माण कार्य को लेकर दायर याचिका पर केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय तथा अन्य से जवाब मांगा है।
एनजीटी एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें दावा किया गया था कि “बड़े पैमाने पर, बिना सोचे-समझे तथा अंधाधुंध तरीके से कंक्रीटीकरण या सड़क का निर्माण किया जा रहा है, जो शहरों तथा कस्बों में जलभराव, शहरी बाढ़ तथा जैव विविधता के नुकसान का सबसे बड़ा कारण है।”
हाल ही में एक आदेश में एनजीटी अध्यक्ष न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव की पीठ ने कहा कि याचिका में “पर्यावरणीय मानदंडों के अनुपालन से संबंधित एक महत्वपूर्ण मुद्दा उठाया गया है।”
न्यायिक सदस्य न्यायमूर्ति अरुण कुमार त्यागी तथा विशेषज्ञ सदस्य ए सेंथिल वेल की पीठ ने प्रतिवादियों को नोटिस जारी किया तथा मामले को आगे की कार्यवाही के लिए 21 अक्टूबर के लिए सूचीबद्ध किया।
मामले में प्रतिवादी या पक्षकारों में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी), उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी), गाजियाबाद विकास प्राधिकरण (जीडीए), गाजियाबाद नगर निगम और अन्य शामिल हैं।
अधिवक्ता आकाश वशिष्ठ द्वारा दायर याचिका में रेखांकित किया गया है कि हरित क्षेत्रों में इस तरह के कंक्रीटीकरण और निर्माण पर्यावरण नियमों, सरकारी दिशा-निर्देशों और न्यायाधिकरण के आदेशों और निर्णयों का “घोर उल्लंघन” है।
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याचिकाकर्ता के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता संजय उपाध्याय ने कहा कि वर्तमान में कंक्रीटीकरण और नरम खुले क्षेत्रों, सड़कों के किनारे, सड़क के किनारे और पार्कों के अंदर निर्माण का खतरा सभी शहरों और कस्बों के लिए खतरा बन गया है।