मथुरा की सिविल कोर्ट ने एक वाद को स्वीकार करने से इनकार कर दिया है जिसमें ईदगाह मस्जिद को इस आधार पर हटाने की मांग की गई थी कि इसे कृष्ण जन्म भूमि यानी भगवान कृष्ण की जन्मभूमि के ऊपर बनाया गया था।
इससे पहले कृष्ण जन्म भूमि को पुनः प्राप्त करने के लिए एक वाद दायर किया गया था। यहां पढ़ें
कोर्ट ने सबसे पहले वाद करे दाखिल करने के अधिकार पर बहस सुनी, जिस पर वादी के वकील ने कहा कि वाम में, भगवान श्री कृष्ण विराजमान प्रथम वादी और श्री कृष्ण जन्मभूमि हैं, अर्थात भगवान ष्ण का जन्म स्थान दूसरी वादी है। वादी ने प्रस्तुत किया कि हिंदू कानून में इस स्थान का अत्यधिक महत्व है।
वादी ने आगे कहा कि श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट ठीक से काम नहीं कर रहा है और वास्तव में, यह लगभग गैर-कार्यात्मक है; इसलिए, वादी ने जन्मभूमि के उचित रखरखाव और सुरक्षा के लिए मुकदमा दायर किया है। वादी ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 25 का भी उल्लेख किया और कहा कि वादी द्वारा दाखिल किया गया वाद पूर्णतया न्यायर्पूण है।
साथ ही साथ वादी ने सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न निर्णयों पर भरोसा किया, जोकि निम्नवत हैः
- पीवी गुरु राज रेड्डी एवं अन्य बनाम पी।नीरधा रेड्डी एवं अन्य (2015) 8 एससीसी 331,
- सलीम भाई और अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य, (2003) 1 एससीसी 557,
- केएस पठानिया बनाम।बीके सिंह जरयाल (2017) 5 एससीसी 345
- शुकथुसैन मोहम्मद पटेल बनाम खतुनबेन मोहम्मदेभाई पोलारा (2019) 10 एससीसी 226
- ग्राम नौलखा की ग्राम पंचायत बनाम उजागर सिंह और अन्य
- देवी और वते बनाम भारत और वते के संघ।
वादी की सुनवाई के बाद, न्यायालय ने पाया कि वादी वास्तव में मूलवाद संख्या 43/1967 में पारित दिनंाक 20.07.1973 एवं दिनांक 07.07.1973 केे निर्णय व अज्ञाप्ति का निरस्तीकरण, उदघोषणा, आदेशात्मक व प्रतिषोधात्मक निषेधाज्ञा की आज्ञप्ति चाहता है।
न्यायालय का विश्लेषण
न्यायालय ने माना कि ट्रस्ट के निर्णयों को केवल ट्रस्टी द्वारा चुनौती दी जा सकती है, और वादियों ने स्वयं कहा है कि वे ट्रस्टी नहीं हैं।
इसके अलावा, अदालत ने कहा कि वादी को पहले मुकदमा करने का अधिकार दिखाना होगा, तभी आगे कदम उठाया जा सकता है। यह कहा गया है कि वर्तमान सूट को भक्त द्वारा दायर नहीं किया जा सकता है, क्योंकि भगवान कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार हैं और इसलिए दुनिया भर में उनके असंख्य है, और यदि इसी प्रकार प्रत्येक भक्त व श्रद्वालू को वाद प्रस्तुत करने की अनुमति प्रदान की गयी तो न्यायिक एवं सामाजिक व्यवस्था चरमरा जायेगी।
उपर्युक्त विशलेषण के आधार पर, न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि वादी द्वारा दायर किया गया वाद बनाए रखने योग्य नहीं है और वादी को मुकदमा करने का कोई अधिकार नहीं है; इसलिए, वद को खारिज किया जाता है।
Case Details
Title: Bhagwan Shri Krishna Virajman and Others vs U.P. Sunni Central Waqf Board and Others
Case No. Misc. Suit No. 176/2020
Date of Order: 30.09.2020
Quorum: Ms. Chhaya Sharma, Incharge Civil Judge (Senior Division) Mathura