Uttarakhand High Court के माननीय न्यायमूर्ति रवींद्र मैथानी ने गबन के एक मामले में अपना फैसला सुनाया है।
हाईकोर्ट ने कहा है कि धारा 319 सीआरपीसी के तहत कार्रवाई करने के लिए प्रथम दृष्टया से अधिक का मामला बनना चाहिए।
मामले के संक्षिप्त तथ्यों –
याचिकाकर्ता और अन्य आरोपियों के खिलाफ धारा 120बी, 409, 420, 467, 468, 471 के तहत एक प्राथमिकी नई टिहरी में पुलिस स्टेशन में दर्ज की गई थी। प्राथमिकी के अनुसार, वर्तमान मामले में याचिकाकर्ता प्रथमिक शिक्षा वेटनभोगी सहकारी समिति लिमिटेड के अध्यक्ष हैं।
याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप है कि उन्होंने 61 लाख रुपये की राशि का गबन किया है। अभियुक्त के खिलाफ एक मामला दायर किया गया था, और अंतिम सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष ने धारा 319 सीआरपीसी के तहत एक आवेदन दिया और प्रस्तुत किया कि गवाहों के बयानों के आधार पर याचिकाकर्ता के खिलाफ एक प्रथम दृष्टया मामला बनता है।
अदालत ने आवेदन को अनुमति दी और तदनुसार, याचिकाकर्ता को तलब किया गया। याचिकाकर्ता ने आदेश को रद्द करने के लिए आवेदन किया था लेकिन इसे 12.06.2014 को खारिज कर दिया गया था।
ट्रायल जज के आदेश से क्षुब्ध होकर याचिकाकर्ता ने उच्च न्यायालय उत्तराखंड का रुख किया।
न्यायालय के समक्ष कार्यवाही
याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि-
समिति ने 41 चेक जारी किए, जिसमें से याचिकाकर्ता ने केवल दो चेक पर हस्ताक्षर किए। यह भी कहा गया कि चेक एक ऋण थे और उस ऋण को भी चुका दिया गया है।
वकील ने आगे कहा कि चेक सुशीला मेवाड़ और बालेन्द्र के नाम से जारी किए गए थे और उन्हें सूरि भारती और बालक राम ने भुनाया था। चूंकि अपील में सूरी भारती और बालक राम दोनों को बरी कर दिया गया है, इसलिए याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई मामला नहीं बनाया जा सकता है।
यह भी कहा गया था कि दिनांक 19.12.2013 के आदेश में याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई संज्ञान नहीं लिया गया और उनकी फाइल को वर्तमान मामले से अलग कर दिया गया।
वकील ने आगे कहा कि चूंकि धारा 409 आईपीसी के तहत सूरी भारती और बालक राम के खिलाफ कोई चार्जशीट दायर नहीं की गई है, इसलिए याचिकाकर्ता को धारा 409 आईपीसी के तहत समन करने का कोई सवाल ही नहीं है।
राज्य सरकार का तर्क
सरकारी वकील ने कहा कि क्योंकि याचिकाकर्ता के खिलाफ एक प्रथम दृष्टया मामला पाया गया है, इसलिए आदेश में हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।
हाईकोर्ट का विशलेषण-
माननीय न्यायाधीश ने धारा 319 सीआरपीसी के प्रावधानों पर विचार किया और कहा कि भले ही यह कहा जाए कि प्रथम दृष्टया मामलें में उक्त प्राविधान में एक व्यक्ति को न्यायालय द्वारा बुलाया जा सकता है, परन्तु ऐसे मामलों में अदालत के संतोष का स्तर क्या होना चाहिए, ये स्पष्ट रूप से नहीं कहा गया है।
इसके अलावा, अदालत ने हरदीप सिंह बनाम पंजाब राज्य और अन्य 2014 (3) एससीसी 92 पर भरोसा किया, जहां सर्वाेच्च न्यायालय ने कहा कि धारा 319 सीआरपीसी के तहल किसी को सम्मन करने के लिए प्रथम दृष्टया से अधिक का मामला बनना चाहिए।
न्यायाधीश ने कहा कि इस मामले में याचिकाकर्ता को ट्रायल के अन्त में बुलाया गया है। साथ ही यह भी कहा गया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ मामला पूरी तरह से दो गवाहों का बयान पर आधारित था।
कोर्ट का निर्णय
कोर्ट ने माना कि अभियुक्त के खिलाफ कोई भी प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनता है और इसलिए, उसे धारा 319 सीआरपीसी के तहत नहीं बुलाया जा सकता है और तदनुसार, अदालत ने याचिका की अनुमति दी।
Case Details
Title: Vinod Uniyal vs State of Uttrakhand and Another
Case No.: Criminal Misc. Application No. 638 of 2014
Date of Order: 29.09.2020
Quorum: Hon’ble Justice Ravindra Maithani
Advocates: Mr. R. P. Nautiyal, Senior Advocate for the petitioner and Mr. P. C. Bisht, Brief Holder for the State of Uttarakhand.