भारत बहुसंख्यकों की मान्यताओं के अनुसार चलेगा: इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस शेखर कुमार यादव ने विहिप के कार्यक्रम में कहा

इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस शेखर कुमार यादव ने विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के एक कार्यक्रम में बड़ा बयान देते हुए कहा कि भारत को बहुसंख्यक की इच्छाओं के अनुसार चलना चाहिए। यह बयान उन्होंने यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) के क्रियान्वयन पर चर्चा के दौरान दिया, जिसमें उन्होंने देश में एक समान कानून प्रणाली की आवश्यकता पर जोर दिया।

जस्टिस यादव ने बहुविवाह, ट्रिपल तलाक और हलाला जैसी प्रथाओं की आलोचना करते हुए कहा कि ये पुरानी और आधुनिक मूल्यों के विपरीत हैं। उन्होंने कहा कि हिंदू समुदाय अपनी धार्मिक परंपराओं को दूसरों पर थोपता नहीं है, लेकिन बदले में अपनी संस्कृति और परंपराओं के प्रति सम्मान की अपेक्षा करता है।

READ ALSO  जेलों में शारीरिक दंड के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर

अपने भाषण में जस्टिस यादव ने सहिष्णुता और दयालुता सिखाने की जरूरत पर बल दिया और सवाल उठाया कि जो बच्चे जानवरों की हत्या का दृश्य देखते हैं, वे दया और सहिष्णुता कैसे सीख सकते हैं। उनके बयान महिलाओं के प्रति सम्मान तक भी पहुंचे, जहां उन्होंने हिंदू शास्त्रों में महिलाओं को देवी के रूप में पूजने का उल्लेख किया और महिलाओं के प्रति अपमानजनक प्रथाओं की निंदा की।

जस्टिस यादव ने शाहबानो केस को याद किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने तलाकशुदा मुस्लिम महिला को भरण-पोषण का अधिकार देने का फैसला सुनाया था, लेकिन उस समय की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ एक नया कानून बना दिया। उन्होंने कहा कि UCC का समर्थन केवल हिंदू संगठनों तक सीमित नहीं है, बल्कि देश की सर्वोच्च अदालत भी इसका समर्थन करती है।

जस्टिस यादव ने हिंदू समाज में सती प्रथा और बाल विवाह जैसी कुप्रथाओं के समाप्त होने की सराहना की और अन्य समुदायों से भी ऐसी बुरी प्रथाओं को समाप्त करने की अपील की। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि ये प्रथाएं स्वेच्छा से समाप्त नहीं होती हैं, तो देश के सभी नागरिकों के लिए समान कानून लागू किया जा सकता है।

READ ALSO  नवाजुद्दीन सिद्दीकी के भाई मुजफ्फरनगर में धोखाधड़ी के आरोप में गिरफ्तार

इस कार्यक्रम में जस्टिस दिनेश पाठक भी शामिल हुए, जिन्होंने इसका उद्घाटन किया, लेकिन कोई वक्तव्य नहीं दिया।

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles