तकनीक से टूटेंगी क्षेत्रीय बाधाएँ, बनेगा ‘राष्ट्रीय न्यायिक पारिस्थितिकी तंत्र’: मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत

“एकीकृत न्यायिक नीति” की वकालत करते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने शनिवार को कहा कि तकनीक अदालतों के बीच मानकों और प्रक्रियाओं को एकरूप बनाने में मदद कर सकती है और देश के किसी भी हिस्से में रहने वाले नागरिकों को न्याय का एक समान अनुभव दे सकती है।

राजस्थान के जैसलमेर में आयोजित वेस्ट ज़ोन रीजनल कॉन्फ्रेंस में मुख्य भाषण देते हुए मुख्य न्यायाधीश ने “राष्ट्रीय न्यायिक पारिस्थितिकी तंत्र” की अवधारणा प्रस्तुत की और तकनीक के समावेशन के साथ भारत की न्यायिक व्यवस्था में व्यापक सुधार का आह्वान किया।

उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है जब न्याय को समानांतर रूप से संचालित क्षेत्रीय प्रणालियों के रूप में नहीं, बल्कि साझा मानकों, सहज इंटरफेस और समन्वित लक्ष्यों वाले एक राष्ट्रीय तंत्र के रूप में देखा जाए।

“आज, जब तकनीक भौगोलिक बाधाओं को कम कर रही है और समन्वय को संभव बना रही है, तो यह हमें न्याय को क्षेत्रीय प्रणालियों के बजाय साझा मानकों और लक्ष्यों वाले एक राष्ट्रीय पारिस्थितिकी तंत्र के रूप में देखने के लिए प्रेरित करती है,” मुख्य न्यायाधीश ने कहा।

संवैधानिक साधन के रूप में तकनीक

न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि न्यायपालिका में तकनीक की भूमिका अब केवल प्रशासनिक सुविधा तक सीमित नहीं रही है।

“तकनीक अब केवल प्रशासनिक सुविधा नहीं रही। यह एक संवैधानिक साधन बन चुकी है, जो कानून के समक्ष समानता को मजबूत करती है, न्याय तक पहुंच का विस्तार करती है और संस्थागत दक्षता को बढ़ाती है,” उन्होंने कहा।

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उन्होंने कहा कि डिजिटल उपकरण न्यायपालिका को भौतिक दूरी और नौकरशाही जटिलताओं से ऊपर उठने में सक्षम बनाते हैं, जिससे समयबद्ध, पारदर्शी और सिद्धांत आधारित न्याय सुनिश्चित किया जा सकता है।

एकीकृत न्यायिक नीति की जरूरत

मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि भारत की संघीय संरचना के कारण उच्च न्यायालयों में अलग-अलग प्रक्रियाएं और तकनीकी क्षमताएं विकसित हुई हैं, जिससे देशभर में वादकारियों को असमान अनुभव मिलते हैं।

“भारत की विशाल विविधता के चलते अलग-अलग उच्च न्यायालयों ने अपनी-अपनी प्रक्रियाएं, प्रशासनिक प्राथमिकताएं और तकनीकी क्षमताएं विकसित की हैं। यह स्वाभाविक है, लेकिन इससे वादकारियों के अनुभव में असमानता आई है,” उन्होंने कहा।

उन्होंने कहा कि न्यायिक व्यवस्था में भरोसा कायम रखने के लिए पूर्वानुमेयता बेहद आवश्यक है।

“नागरिकों की अदालतों से एक मूल अपेक्षा पूर्वानुमेयता की होती है,” उन्होंने कहा, यह जोड़ते हुए कि लोगों को न केवल निष्पक्षता, बल्कि देशभर में मामलों के निपटारे में समानता भी दिखनी चाहिए।

डेटा आधारित सुधार और त्वरित सुनवाई

न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि तकनीक से प्रणालीगत देरी और अड़चनों की पहचान की जा सकती है, खासकर जमानत मामलों या विशिष्ट श्रेणी के विवादों में।

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“तकनीक हमें प्रणालीगत देरी को ट्रैक करने और समस्याओं को छिपाने के बजाय उजागर करने में सक्षम बनाती है,” उन्होंने कहा।

उन्होंने बताया कि डेटा आधारित उपकरणों से देरी के कारणों की पहचान कर लक्षित समाधान किए जा सकते हैं।

मुख्य न्यायाधीश ने यह भी कहा कि तकनीक संवेदनशील और तात्कालिक मामलों को प्राथमिकता देने में मदद कर सकती है।

“तकनीक संवेदनशील मामलों की पहचान, लंबित मामलों की रियल-टाइम निगरानी और पारदर्शी लिस्टिंग प्रोटोकॉल सुनिश्चित करने में सहायक है,” उन्होंने कहा।

उन्होंने अपने हालिया प्रशासनिक आदेश का उल्लेख किया, जिसके तहत जमानत याचिकाओं और बंदी प्रत्यक्षीकरण (हैबियस कॉर्पस) जैसे तात्कालिक मामलों को खामियां दूर होने के दो दिनों के भीतर सूचीबद्ध किया जाता है।

“जहां देरी से गंभीर नुकसान होता है, वहां प्रणाली को त्वरित प्रतिक्रिया देनी चाहिए,” उन्होंने कहा।

फैसलों की भाषा में स्पष्टता पर जोर

मुख्य न्यायाधीश ने न्यायिक आदेशों की भाषा को लेकर भी चिंता जताई। उन्होंने कहा कि कई बार वादकारी मामला जीतने के बावजूद यह नहीं समझ पाते कि उन्हें वास्तव में क्या राहत मिली है।

“कई बार आदेश उनके पक्ष में होने के बावजूद वे यह समझ नहीं पाते कि उन्हें क्या राहत मिली, क्योंकि भाषा अत्यधिक तकनीकी, अस्पष्ट या समझ से परे होती है,” उन्होंने कहा।

उन्होंने फैसलों की भाषा और प्रस्तुति में अधिक एकरूपता की आवश्यकता पर जोर दिया।

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“एकीकृत न्यायिक दृष्टिकोण का विस्तार इस बात तक भी होना चाहिए कि हम अपने निर्णयों को कैसे संप्रेषित करते हैं,” उन्होंने कहा।

एआई और डिजिटल टूल्स की भूमिका

न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और डिजिटल टूल्स की बढ़ती भूमिका पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि एआई आधारित शोध सहायक और डिजिटल केस मैनेजमेंट सिस्टम न्यायिक प्रक्रियाओं को अधिक प्रभावी बना सकते हैं।

“उभरते तकनीकी उपकरण अब ऐसे कार्य कर सकते हैं, जो पहले अकल्पनीय थे। वे मिसिंग प्रिसिडेंट्स को चिन्हित कर सकते हैं, समान कानूनी प्रश्नों को समूहबद्ध कर सकते हैं और तथ्यों की प्रस्तुति को सरल बना सकते हैं,” उन्होंने कहा।

उन्होंने नेशनल ज्यूडिशियल डेटा ग्रिड और ई-कोर्ट्स जैसी पहलों का भी उल्लेख किया, जो पहले से ही केस फाइलिंग और ट्रैकिंग जैसी प्रक्रियाओं को मानकीकृत करने में मदद कर रही हैं।

अपने संबोधन के अंत में मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि तकनीकी नवाचार का असली उद्देश्य नागरिकों का विश्वास मजबूत करना होना चाहिए।

“नवाचार का पैमाना सॉफ्टवेयर की जटिलता नहीं, बल्कि वह सरलता है, जिससे कोई नागरिक अपने मामले के परिणाम को समझ सके और यह महसूस कर सके कि उसके साथ न्याय हुआ है,” उन्होंने कहा।

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