NDPS मामलों में छोटी प्रक्रियात्मक खामियां या नमूने के वजन में मामूली अंतर बरी होने का आधार नहीं: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने मादक पदार्थ (NDPS) अधिनियम के तहत एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया है कि मानवीय आधार कानून द्वारा निर्धारित अनिवार्य न्यूनतम सजा (Minimum Mandatory Sentence) को दरकिनार नहीं कर सकते। शीर्ष अदालत ने कहा कि यदि अपराध व्यावसायिक मात्रा (Commercial Quantity) से जुड़ा है, तो कोर्ट के पास वैधानिक न्यूनतम सजा से कम दंड देने का कोई विवेकाधिकार नहीं है।

जस्टिस संजय करोल और जस्टिस विपुल एम. पंचोली की पीठ ने यह भी निर्धारित किया कि केवल नमूने (Sampling) लेने की प्रक्रिया में हुई मामूली अनियमितताएं, अभियोजन पक्ष के मामले को तब तक कमजोर नहीं करतीं, जब तक कि जब्त सामग्री की अखंडता (Integrity) पर संदेह न हो।

सुप्रीम कोर्ट ने 11 दिसंबर, 2025 को सुनाए गए अपने फैसले में मद्रास हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली ज्योति नागज्योति की अपील को खारिज कर दिया और उसकी 10 साल की सजा को बरकरार रखा।

मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला 21 सितंबर, 2019 का है, जब पुलिस को गुप्त सूचना मिली थी कि एक दोपहिया वाहन पर गांजा ले जाया जा रहा है। इस सूचना के आधार पर पुलिस टीम ने अपीलकर्ता (A-2) और उसके पति (A-1) को रोका।

NDPS एक्ट की धारा 50 के तहत तलाशी लेने पर उनके पास से 23.500 किलोग्राम गांजा और 21,140 रुपये नकद बरामद हुए। पुलिस ने मौके पर ही लगभग 50-50 ग्राम के दो नमूने निकाले, जिन्हें सील करके ‘S-1’ और ‘S-2’ के रूप में चिह्नित किया गया।

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ट्रायल कोर्ट ने 1 फरवरी, 2021 को दोनों आरोपियों को NDPS एक्ट की धाराओं के तहत दोषी ठहराते हुए 10 साल के सश्रम कारावास और 1-1 लाख रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई थी। मद्रास हाईकोर्ट ने भी 27 जून, 2024 को इस सजा को सही ठहराया था, जिसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।

पक्षकारों की दलीलें

सुप्रीम कोर्ट में अपीलकर्ता ने अभियोजन पक्ष के मामले में कई खामियां गिनाईं:

  1. स्वतंत्र गवाहों का अभाव: बचाव पक्ष का तर्क था कि जब्ती एक रिहायशी इलाके में हुई जहां 50-60 घर थे, फिर भी पुलिस ने किसी स्वतंत्र गवाह को शामिल नहीं किया।
  2. धारा 52-A का उल्लंघन: वकील ने दलील दी कि मजिस्ट्रेट की अनुपस्थिति में मौके पर ही नमूने (Samples) लिए गए, जो NDPS एक्ट की धारा 52-A का उल्लंघन है। उन्होंने सिमरनजीत सिंह बनाम पंजाब राज्य और यूसुफ @ आसिफ बनाम राज्य के फैसलों का हवाला दिया।
  3. नमूने की अखंडता: यह भी कहा गया कि जब्ती के समय नमूने का वजन 50 ग्राम था, लेकिन लैब में जांच के समय यह 40.6 ग्राम पाया गया, जिससे छेड़छाड़ का संदेह पैदा होता है।
  4. सजा में रियायत: अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि घटना के समय उसकी उम्र मात्र 24 वर्ष थी, उसका कोई आपराधिक इतिहास नहीं है और वह एक छोटे बच्चे की एकमात्र देखभालकर्ता है। इसलिए, मानवीय आधार पर सजा कम की जानी चाहिए।
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सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण और निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने अपीलकर्ता की सभी दलीलों को खारिज कर दिया।

स्वतंत्र गवाहों पर: पीठ ने कहा कि केवल स्वतंत्र गवाहों की अनुपस्थिति अभियोजन पक्ष के मामले को खारिज करने का आधार नहीं हो सकती, विशेषकर जब सरकारी गवाहों (पुलिसकर्मियों) के बयानों में एकरूपता हो। कोर्ट ने सुरिंदर कुमार बनाम पंजाब राज्य (2020) का हवाला देते हुए कहा कि केवल पुलिसकर्मी होने के कारण किसी गवाह की गवाही को नकारा नहीं जा सकता।

सैंपलिंग प्रक्रिया और धारा 52-A: मौके पर सैंपल लेने के तर्क पर कोर्ट ने भरत आंबले बनाम छत्तीसगढ़ राज्य (2025) के फैसले का संदर्भ दिया। कोर्ट ने कहा:

“धारा 52-A के अनुपालन में देरी या मामूली चूक तब तक घातक नहीं है, जब तक कि यह अनियमितता जब्त पदार्थ की अखंडता को प्रभावित न करे या अभियोजन के मामले को संदिग्ध न बना दे।”

कोर्ट ने पाया कि इस मामले में सैंपलिंग प्रक्रिया विश्वसनीय थी और मजिस्ट्रेट के आदेश के बाद ही सैंपल जांच के लिए भेजे गए थे।

वजन में अंतर: नमूने का वजन 50 ग्राम से घटकर 40.6 ग्राम होने पर कोर्ट ने इसे प्राकृतिक प्रक्रिया माना। कोर्ट ने स्वीकार किया कि जब्ती और जांच के बीच 40 दिनों के अंतराल में नमी सूखने (Moisture Loss) के कारण वजन कम होना स्वाभाविक है। नूर आगा बनाम पंजाब राज्य (2008) का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा कि वजन में मामूली अंतर साक्ष्यों को खारिज करने के लिए पर्याप्त नहीं है।

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सजा और मानवीय आधार: युवा उम्र और बच्चे की देखभाल की दलील पर कोर्ट ने स्पष्ट और कड़े शब्दों में कहा कि NDPS एक्ट की धारा 20(b)(ii)(C) के तहत व्यावसायिक मात्रा के लिए न्यूनतम सजा तय है।

“मानवीय विचार, यद्यपि कार्यपालिका द्वारा सजा में छूट (Remission) के लिए प्रासंगिक हो सकते हैं, लेकिन वे विधायिका द्वारा अनिवार्य की गई वैधानिक न्यूनतम सजा (Statutory Minimum Punishment) को दरकिनार नहीं कर सकते।”

निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट ने माना कि अभियोजन पक्ष ने बिना किसी उचित संदेह के यह साबित कर दिया है कि अपीलकर्ता के पास व्यावसायिक मात्रा में गांजा था। कोर्ट ने अपील खारिज करते हुए 10 साल की सजा और जुर्माने को बरकरार रखा। हालांकि, कोर्ट ने अपीलकर्ता को वैधानिक छूट (Statutory Remission) के लिए सक्षम प्राधिकारी के पास जाने की छूट दी है।

केस डीटेल्स:

  • केस टाइटल: ज्योति नागज्योति बनाम द स्टेट
  • केस नंबर: क्रिमिनल अपील नंबर 259 ऑफ 2025 (SLP (Crl.) No. 52102 of 2024 से उद्भूत)
  • कोर्ट: भारत का सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court of India)
  • कोरम: जस्टिस संजय करोल और जस्टिस विपुल एम. पंचोली
  • फैसले की तारीख: 11 दिसंबर, 2025
  • साइटेशन: 2025 INSC 1417

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