आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने निर्णय दिया है कि भले ही ‘डिक्री होल्डर’ (Decree Holder) समझौते की शर्तों के अनुसार किसी तीसरे पक्ष के खिलाफ दायर एक अलग मुकदमे को वापस लेने में विफल रहता है, तब भी लोक अदालत का अवार्ड मान्य और निष्पादन योग्य (executable) रहेगा। जस्टिस रवि नाथ तिलहरी की पीठ ने एक सिविल रिवीजन याचिका को खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि विशिष्ट पक्षों के बीच लोक अदालत का अवार्ड किसी अन्य मुकदमे की कार्यवाही से प्रभावित नहीं होता, जिसमें अलग प्रतिवादी और वाद के कारण शामिल हों।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला सिविल रिवीजन याचिका संख्या 2928/2025 से संबंधित है, जिसे नेतिपदि स्वर्णलता (याचिकाकर्ता/जजमेंट डेटर) ने मरदाना शेषगिरी राव (प्रतिवादी/डिक्री होल्डर) के खिलाफ दायर किया था।
प्रतिवादी ने मूल रूप से विशाखापत्तनम के VI अतिरिक्त सिविल जज (सीनियर डिवीजन) की अदालत में O.S.No.215 of 2021 दायर किया था। पक्षों के बीच हुए समझौते के आधार पर 12.11.2022 को एक लोक अदालत अवार्ड पारित किया गया। इसके बाद, प्रतिवादी ने अवार्ड को कोर्ट की डिक्री के रूप में निष्पादित कराने के लिए सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) के आदेश XXI, नियम 54, 64 से 66 के तहत E.P.No.226 of 2023 दायर की। निष्पादन न्यायालय (Execution Court) के आदेश को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
पक्षों की दलीलें
याचिकाकर्ता के वकील, श्री टी.एस.बी.वी. रामा रेड्डी ने तर्क दिया कि समझौते की शर्तों के उल्लंघन के कारण निष्पादन याचिका सुनवाई योग्य नहीं है।
याचिकाकर्ता का मुख्य तर्क लोक अदालत अवार्ड में दर्ज समझौता समझौते के क्लॉज (3) पर आधारित था। याचिकाकर्ता के अनुसार, प्रतिवादी ने याचिकाकर्ता के भाई के खिलाफ III अतिरिक्त जूनियर सिविल जज, विशाखापत्तनम के समक्ष लंबित एक अन्य मुकदमे, O.S.No.220 of 2022 को “not press” (वापस लेने/आगे न बढ़ाने) पर सहमति व्यक्त की थी। मुकदमा वापस लेने की तिथि 03.11.2022 तय की गई थी।
वकील ने दलील दी कि समझौते के विपरीत, प्रतिवादी ने O.S.No.220 of 2022 को वापस नहीं लिया, और वह मुकदमा “not pressed” होने के बजाय गुणों (merits) के आधार पर खारिज हो गया। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि क्लॉज (3) का पालन करने में यह विफलता O.S.No.215 of 2021 में पारित लोक अदालत अवार्ड को निष्पादन के अयोग्य बनाती है।
कोर्ट का विश्लेषण और अवलोकन
जस्टिस रवि नाथ तिलहरी ने दलीलों को सुना और दोनों मुकदमों के बीच के संबंध की जांच की। कोर्ट ने नोट किया कि O.S.No.215 of 2021 (जो लोक अदालत अवार्ड का विषय है) और O.S.No.220 of 2022 अलग-अलग कार्यवाहियां थीं।
कोर्ट द्वारा पूछे गए एक विशिष्ट प्रश्न पर, याचिकाकर्ता के वकील ने स्वीकार किया कि O.S.No.220 of 2022 याचिकाकर्ता के खिलाफ नहीं, बल्कि उसके भाई के खिलाफ दायर किया गया था और यह “अलग प्रॉमिसरी नोट्स” पर आधारित था।
हाईकोर्ट ने पाया कि दोनों मुकदमों का विषय और प्रतिवादी अलग-अलग थे। नतीजतन, कोर्ट ने माना कि वर्तमान मुकदमे के संबंध में किया गया समझौता याचिकाकर्ता और प्रतिवादी के बीच बाध्यकारी है, चाहे दूसरे मुकदमे का परिणाम या प्रक्रियात्मक इतिहास कुछ भी हो।
अवार्ड की प्रवर्तनीयता (enforceability) के संबंध में एक महत्वपूर्ण अवलोकन करते हुए, जस्टिस तिलहरी ने कहा:
“समझौते पर आधारित लोक अदालत अवार्ड वादी/प्रतिवादी और वर्तमान याचिकाकर्ता/प्रतिवादी के बीच अंतिम और बाध्यकारी है, जिसे निष्पादन अयोग्य नहीं कहा जा सकता।”
दूसरे मुकदमे को वापस न लेने के विशिष्ट तर्क को संबोधित करते हुए, कोर्ट ने कहा:
“इस न्यायालय का विचार है कि भले ही O.S.No.225 of 2021 (मूल पाठ में त्रुटिवश 225 उल्लेखित, संदर्भ 215 का है) के वादी/डिक्री होल्डर ने लोक अदालत अवार्ड के समझौते के क्लॉज (3) के संदर्भ में दूसरे मुकदमे यानी O.S.No.220 of 2022 को ‘not press’ नहीं किया, तब भी यह उसे O.S.No.215 of 2021 में पारित अवार्ड के निष्पादन के लिए अयोग्य नहीं ठहराएगा।”
निर्णय
हाईकोर्ट ने निष्पादन न्यायालय के आदेश में कोई अवैधता नहीं पाई। सिविल रिवीजन याचिका को खारिज कर दिया गया, और कोर्ट ने खर्चों (costs) के संबंध में कोई आदेश नहीं दिया। आदेश के परिणामस्वरूप सभी लंबित अंतरिम आवेदनों को बंद कर दिया गया।
केस विवरण:
- केस शीर्षक: नेतिपदि स्वर्णलता बनाम मरदाना शेषगिरी राव
- केस संख्या: सिविल रिवीजन याचिका संख्या 2928/2025
- कोर्ट: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट
- जज: जस्टिस रवि नाथ तिलहरी




