इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महिला के स्पष्ट बयान के बावजूद अपहरण के मामले में जांच जारी रखने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार पर नाराज़गी जताई है और ₹75,000 का हर्जाना लगाया है। अदालत ने कहा कि जब महिला ने मजिस्ट्रेट के सामने यह स्वीकार किया कि वह अपनी इच्छा से घर छोड़कर दिल्ली गई थी, तब जांच को जारी रखना अनुचित था।
न्यायमूर्ति अब्दुल मोइन और न्यायमूर्ति बबीता रानी की खंडपीठ ने यह आदेश 30 अक्टूबर को पारित किया। यह आदेश उमेद उर्फ उबैद ख़ान और अन्य की याचिका पर दिया गया, जिन्होंने बहरेच ज़िले में उनके ख़िलाफ़ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने की मांग की थी। यह प्राथमिकी भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 140 के तहत दर्ज की गई थी, जो हत्या के इरादे से अपहरण से संबंधित है।
अदालत के अनुसार, जांच के दौरान महिला को ढूंढ लिया गया और 19 सितंबर को उसे न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत किया गया। उसने अपने बयान में कहा कि वह अपनी मर्ज़ी से दिल्ली अपनी बेटी से मिलने गई थी, क्योंकि उसका पति उसे पीटता था। उसने किसी अपहरण या जबरन धर्म परिवर्तन का आरोप नहीं लगाया।
हाईकोर्ट ने कहा कि जब महिला का बयान स्पष्ट था, तब भी पुलिस ने जांच जारी रखी और याचिकाकर्ता उमेद को 18 सितंबर से जेल में रखा, जो पूरी तरह अनुचित है।
खंडपीठ ने कहा कि “जब पीड़िता ने स्वयं अभियोजन पक्ष के आरोपों का समर्थन नहीं किया, तब जांच जारी रखने का कोई औचित्य नहीं था।”
अदालत ने 13 सितंबर को दर्ज एफआईआर को रद्द करते हुए उमेद की तत्काल रिहाई का आदेश दिया, यदि वह किसी अन्य मामले में वांछित न हो।
अदालत ने राज्य सरकार को ₹75,000 का जुर्माना अदा करने का निर्देश दिया। इसमें से ₹50,000 याचिकाकर्ता उमेद को दिए जाएंगे, जबकि ₹25,000 हाईकोर्ट विधिक सेवा समिति को जमा किए जाएंगे।
यह आदेश मंगलवार को उपलब्ध हुआ और अदालत ने कहा कि पुलिस ने “झूठी प्राथमिकी” के आधार पर उमेद को हिरासत में रखा, जो संविधान के तहत व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है।




