बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक अहम आदेश में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के ज़रिए तैयार किए गए और असल में मौजूद न रहने वाले केस लॉ का हवाला देकर पास किए गए आयकर विभाग के आकलन आदेश को रद्द कर दिया है।
मुख्य न्यायाधीश बी. पी. कोलाबावाला और न्यायमूर्ति अमित जामसंदेकर की पीठ ने कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के दौर में भी अधिकारियों को बिना जांचे-परखे AI से प्राप्त जानकारी पर आँख मूंदकर भरोसा नहीं करना चाहिए, खासकर जब वे अर्ध-न्यायिक (quasi-judicial) कार्य कर रहे हों।
अदालत ने कहा, “आज के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के युग में लोग सिस्टम द्वारा दिखाए गए परिणामों पर बहुत भरोसा करने लगते हैं। परंतु जब कोई अधिकारी अर्ध-न्यायिक दायित्व निभा रहा हो, तो ऐसे परिणामों पर अंधाधुंध भरोसा नहीं किया जा सकता। उन्हें उपयोग करने से पहले उचित रूप से सत्यापित करना आवश्यक है, अन्यथा ऐसी गलतियाँ हो जाती हैं जैसी इस मामले में हुई हैं।”
यह आदेश मार्च 2025 में केएमजी वायर्स प्राइवेट लिमिटेड के खिलाफ नेशनल फेसलेस असेसमेंट सेंटर (NFAC) द्वारा जारी आकलन आदेश और डिमांड नोटिस को लेकर पारित हुआ।
NFAC ने कंपनी की कुल आय ₹27.91 करोड़ आंकी थी, जबकि कंपनी ने अपने रिटर्न में ₹3.09 करोड़ दर्शाए थे।
कंपनी ने इस आदेश और नोटिस को चुनौती दी थी। अदालत ने पाया कि आकलन आदेश प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करते हुए पारित किया गया, क्योंकि विभाग ने कंपनी द्वारा नोटिस के जवाब में दी गई विस्तृत दलीलों पर विचार ही नहीं किया।
अदालत ने यह भी पाया कि अधिकारी ने पीक बैलेंस की गणना करते समय जिन न्यायिक फैसलों का हवाला दिया, वे असल में अस्तित्व में ही नहीं थे और AI द्वारा जनरेट किए गए थे।
हाईकोर्ट ने यह कहते हुए आदेश रद्द किया कि ऐसे AI-जनित संदर्भों पर भरोसा नहीं किया जा सकता और मामले को नए सिरे से सुनवाई के लिए आकलन अधिकारी को वापस भेज दिया।
यह फैसला सरकारी और अर्ध-न्यायिक अधिकारियों के लिए एक सख्त चेतावनी है कि वे AI टूल्स का इस्तेमाल तो करें, परंतु हर जानकारी और उद्धृत केस लॉ की प्रामाणिकता की पुष्टि अवश्य करें।




