पूर्व संज्ञान चरण में आरोपी को सुनवाई का अवसर न देना समन आदेश को अवैध बनाता है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भारतीय दंड संहिता की धाराओं 498ए, 406, 323, 504, 506 और दहेज निषेध अधिनियम, 1961 की धारा 3/4 के तहत दर्ज आपराधिक मामले में पाँच व्यक्तियों के विरुद्ध जारी समन आदेश को इस आधार पर रद्द कर दिया कि आरोपियों को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) के तहत पूर्व संज्ञान चरण में अनिवार्य रूप से सुनवाई का अवसर नहीं दिया गया था।

यह आदेश न्यायमूर्ति विकास बुधवार ने 27 मई, 2025 को पारित किया। यह निर्णय बीएनएसएस की धारा 528 के तहत दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया गया, जिसमें चित्रकूट के न्यायिक मजिस्ट्रेट/सिविल जज (जूनियर डिवीजन) द्वारा पारित समन आदेश को चुनौती दी गई थी।

पृष्ठभूमि

एक शिकायत दर्ज की गई थी जिसमें घरेलू हिंसा और दहेज से संबंधित आरोप लगाए गए थे। शिकायत और बीएनएसएस के तहत दर्ज बयानों के आधार पर मजिस्ट्रेट ने 19 अप्रैल, 2025 को आरोपियों को तलब करने का आदेश पारित किया।

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आवेदकों ने इस आदेश को बीएनएसएस की धारा 528 के तहत चुनौती दी और कहा कि यह आदेश बीएनएसएस की धारा 223 के तहत निर्धारित अनिवार्य प्रक्रिया का पालन किए बिना पारित किया गया है।

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पक्षकारों की दलीलें

आवेदकों के अधिवक्ता ने इस चरण पर आरोपों को चुनौती नहीं दी, बल्कि इस आधार पर समन आदेश को गलत बताया कि यह प्रक्रिया संबंधी खामियों के कारण अवैध है। उन्होंने तर्क दिया कि बीएनएसएस की धारा 223 की पहली व्याख्या, जो 1 जुलाई, 2024 से लागू है, स्पष्ट रूप से यह अनिवार्य करती है कि मजिस्ट्रेट द्वारा संज्ञान लेने से पहले आरोपी को सुनवाई का अवसर दिया जाना चाहिए।

राज्य पक्ष ने इस तथ्य को नहीं नकारा कि शिकायत 24 अक्टूबर, 2024 को दर्ज की गई थी और समन आदेश 19 अप्रैल, 2025 को पारित किया गया था। राज्य ने यह भी स्वीकार किया कि बीएनएसएस का प्रावधान इस मामले में लागू होता है।

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न्यायालय का विश्लेषण

न्यायालय ने बीएनएसएस की धारा 223(1) का उल्लेख किया, जिसमें स्पष्ट कहा गया है:

“परंतु मजिस्ट्रेट द्वारा किसी अपराध का संज्ञान लिए जाने से पूर्व आरोपी को सुनवाई का अवसर प्रदान किया जाना अनिवार्य होगा।”

न्यायमूर्ति बुधवार ने इस प्रक्रिया को एक आवश्यक कानूनी शर्त बताते हुए कहा कि मजिस्ट्रेट को इस सुरक्षा उपाय का पालन करना चाहिए था। न्यायालय ने प्रतीक अग्रवाल बनाम राज्य उत्तर प्रदेश तथा बसनगौड़ा आर. पाटिल बनाम शिवानंद एस. पाटिल (कर्नाटक हाईकोर्ट) के निर्णयों का हवाला दिया, जिनमें यह स्पष्ट किया गया कि शिकायतकर्ता एवं गवाहों के शपथबद्ध बयान दर्ज किए जाने के बाद आरोपी को नोटिस जारी कर सुनवाई का अवसर देना आवश्यक है।

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न्यायालय ने पाया कि मजिस्ट्रेट ने यह अनिवार्य अवसर प्रदान नहीं किया, जिससे समन आदेश टिकाऊ नहीं रह गया।

निर्णय

न्यायालय ने निम्नलिखित निर्देश जारी किए:

  • दिनांक 19.04.2025 का समन आदेश रद्द किया जाता है।
  • मामला मजिस्ट्रेट के पास धारा 223 बीएनएसएस के अनुरूप पुनर्विचार हेतु वापस भेजा जाता है।
  • इस आदेश की प्रमाणित प्रति 13 जून, 2025 तक मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत की जाए।

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