सिर्फ 30 डॉलर मुआवज़े की पेशकश पर यात्री ने एयरलाइन के खिलाफ केस जीता, उपभोक्ता आयोग ने 2.74 लाख रुपये का मुआवज़ा दिलाया

दिल्ली के एक अंतरराष्ट्रीय यात्री को उपभोक्ता आयोग से बड़ी राहत मिली है। चीन की एयरलाइन से सफर करने के बाद जब वह सितंबर 2019 में दिल्ली पहुंचे तो उनका चेक-इन बैग टूटा हुआ और टेप से लिपटा हुआ मिला, और उसमें से लगभग 2 लाख रुपये के कीमती सामान गायब थे। एयरलाइन ने उन्हें केवल 30 अमेरिकी डॉलर (लगभग 2,560 रुपये) मुआवज़ा देने की पेशकश की, जिसे यात्री ने ठुकरा दिया और उपभोक्ता अदालत का दरवाज़ा खटखटाया।

यह मामला चाइना ईस्टर्न एयरलाइंस की फ्लाइट MU582 से जुड़ा है, जिसमें यात्री ने वैंकूवर से शंघाई होते हुए दिल्ली तक यात्रा की थी। दिल्ली एयरपोर्ट पर उन्होंने पाया कि उनका बैग क्षतिग्रस्त था और उसमें से सामान गायब था। उन्होंने तुरंत प्रॉपर्टी इर्रेगुलैरिटी रिपोर्ट (PIR) दर्ज कराई, जिसमें 1.5 किलोग्राम सामान के कम होने की पुष्टि हुई।

यात्री ने शिकायत में बताया कि राडो घड़ी, अर्मानी जैकेट और पुलओवर, 25 ग्राम की सोने की चेन, चैनल परफ्यूम और अन्य कीमती वस्तुएं गायब थीं।

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कानूनी कार्यवाही और आयोग के आदेश

शिकायतकर्ता ने जिला उपभोक्ता आयोग में शिकायत दर्ज कराई, जिसने 11 नवंबर 2020 को आदेश देते हुए एयरलाइन को 1.75 लाख रुपये का मुआवज़ा 8% वार्षिक ब्याज सहित और 15,000 रुपये मानसिक पीड़ा व वाद व्यय के रूप में देने को कहा।

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एयरलाइन ने इस आदेश के खिलाफ हरियाणा राज्य उपभोक्ता आयोग में अपील की, लेकिन 20 मई 2025 को आयोग ने निचली अदालत के फैसले को सही ठहराया और कहा:

“बैग के वज़न में कमी से स्पष्ट है कि सामान चोरी हुआ है, और यह एयरलाइन की ज़िम्मेदारी है कि वह यात्री को क्षतिपूर्ति प्रदान करे।”

राज्य आयोग ने PIR और फोटोग्राफिक साक्ष्यों को स्वीकार्य मानते हुए कहा कि बिल नहीं होने का मतलब यह नहीं कि नुकसान हुआ ही नहीं।

एयरलाइन की दलीलें और खारिजी

एयरलाइन ने तर्क दिया कि:

  • यात्री ने PIR में केवल 7,000 रुपये के नुकसान की बात स्वीकार की थी।
  • चोरी गए सामानों के कोई बिल प्रस्तुत नहीं किए गए।
  • अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार प्रति किलो 20 डॉलर का मुआवज़ा दिया जाता है और 1.5 किलोग्राम के हिसाब से 30 डॉलर पर्याप्त था।
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परंतु आयोग ने इन सभी दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि यह मामला सेवा में कमी (Deficiency in Service) का है और यात्री को वास्तविक नुकसान के लिए उचित मुआवज़ा मिलना चाहिए।

विशेषज्ञों की राय: यात्रियों के लिए एक नज़ीर

इस फैसले को कानूनी विशेषज्ञ उपभोक्ता अधिकारों की बड़ी जीत मान रहे हैं:

  • प्राची दुबे (अधिवक्ता, दिल्ली हाईकोर्ट): उपभोक्ता कानून विदेशों की एयरलाइनों पर भी लागू होते हैं यदि सेवा भारत में दी गई हो।
  • अलय रज़वी (मैनेजिंग पार्टनर, अकोर्ड ज्यूरिस): PIR और फोटो जैसे साक्ष्य उपभोक्ताओं के पक्ष में निर्णायक साबित हो सकते हैं, भले ही बिल न हों।
  • तुषार कुमार (अधिवक्ता, सुप्रीम कोर्ट): एयरलाइनों को मोंट्रियल कन्वेंशन का हवाला देकर भारतीय उपभोक्ताओं से नहीं बचा जा सकता, खासकर जब ठोस साक्ष्य मौजूद हों।
  • हर्ष पंड्या (अधिवक्ता, दिल्ली हाईकोर्ट): एयरलाइनों को अपने ग्राहक सेवा तंत्र को मज़बूत करना होगा; तकनीकी बहाने अब नहीं चलेंगे।
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अंतिम मुआवज़ा 

दोनों उपभोक्ता आयोगों के आदेशों के अनुसार, कुमार को अब लगभग 2.74 लाख रुपये का मुआवज़ा मिलेगा, जिसमें 1.75 लाख रुपये क्षतिपूर्ति, करीब 6 वर्षों के लिए 8% ब्याज, और 15,000 रुपये मानसिक उत्पीड़न व मुकदमेबाज़ी के लिए शामिल हैं। साथ ही, एयरलाइन द्वारा अपील के समय जमा किए गए 95,000 रुपये भी यात्री को लौटाने के आदेश दिए गए हैं।

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