कोर्ट के साथ चालबाज़ी की अनुमति नहीं दी जा सकती: सुप्रीम कोर्ट ने ज़मानत शर्तों के तहत स्वैच्छिक धनराशि जमा करने की प्रथा पर जताई आपत्ति

सुप्रीम कोर्ट ने उन मामलों पर सख्त आपत्ति जताई है जिनमें अभियुक्त ज़मानत याचिका के दौरान बड़ी धनराशि जमा करने की स्वैच्छिक पेशकश करते हैं और बाद में उन्हीं शर्तों में ढील या संशोधन की मांग करते हैं। कुंदन सिंह बनाम अधीक्षक, सीजीएसटी एवं केंद्रीय उत्पाद शुल्क [एसएलपी (क्रिमिनल) संख्या 9111/2025] में कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट द्वारा पारित ज़मानत और संशोधन आदेशों को रद्द कर दिया और मामले को पुनः विचार हेतु हाईकोर्ट को भेज दिया।

न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन और न्यायमूर्ति नोंगमीकपम कोटिश्वर सिंह की पीठ इस विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जो 14 मई 2025 को मद्रास हाईकोर्ट द्वारा पारित आदेश को चुनौती देती है, जिसमें ज़मानत की शर्तों में संशोधन किया गया था।

मामले की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता कुंदन सिंह को 27 मार्च 2025 को वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम, 2017 की धारा 132(1)(a), 132(1)(i) और 132(5) के तहत गिरफ्तार किया गया था। अभियोजन का आरोप था कि याचिकाकर्ता ने लगभग ₹13.73 करोड़ की कर चोरी की है।

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जब ज़मानत याचिका पर मद्रास हाईकोर्ट में सुनवाई हुई, तो याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि वह पहले ही ₹2.86 करोड़ जमा कर चुके हैं और बिना अपने बचाव को प्रभावित किए अतिरिक्त ₹2.5 करोड़ की राशि जमा करने को भी तैयार हैं। इस स्वैच्छिक पेशकश के आधार पर, हाईकोर्ट ने 8 मई 2025 को याचिकाकर्ता को ₹50 लाख की जमा राशि के पश्चात ज़मानत देने का आदेश पारित किया और शेष ₹2 करोड़ की राशि 10 दिन के भीतर जमा करने का निर्देश दिया।

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बाद में, याचिकाकर्ता ने अपने पिता की अस्वस्थता और पत्नी की गर्भावस्था का हवाला देते हुए ₹50 लाख की पूर्व जमा शर्त को संशोधित करने की याचिका दायर की। हाईकोर्ट ने 14 मई 2025 को उक्त याचिका स्वीकार कर पूरी राशि (₹2.5 करोड़) को रिहाई के बाद 10 दिनों में जमा करने की अनुमति दे दी।

सुप्रीम कोर्ट के विचार और टिप्पणियाँ

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसी स्वैच्छिक धनराशि की पेशकश, जब बाद में वापस ली जाती है या उसमें संशोधन की मांग की जाती है, तो इससे न्यायिक प्रक्रिया की पवित्रता पर आंच आती है। पीठ ने कहा:

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“जब पक्षकार अग्रिम ज़मानत या नियमित ज़मानत के लिए आवेदन करते हैं, तो उनके वकील स्वैच्छिक रूप से बड़ी राशि जमा करने की पेशकश करते हैं ताकि उनकी नीयत दिखाई दे और वे रिहा हो सकें। इससे न्यायालय का ध्यान मामले के गुण-दोष पर विचार करने से हट जाता है।”

न्यायालय ने आगे कहा:

“हम इस प्रथा की कड़ी निंदा करते हैं… आज याचिकाकर्ता एक ही समय में दो विपरीत बातें कर रहे हैं… हम यह अनुमति नहीं दे सकते कि पक्षकार कोर्ट के साथ ‘डक एंड ड्रेक्स’ खेलें।”

कोर्ट ने कहा कि अगर शुरुआत में यह पेशकश नहीं की गई होती, तो हाईकोर्ट मामला गुण-दोष के आधार पर तय कर सकता था, न कि केवल जमा राशि के आधार पर।

अंतिम निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट द्वारा पारित दिनांक 08.05.2025 का ज़मानत आदेश और 14.05.2025 का संशोधन आदेश दोनों को निरस्त कर दिया और मामले को नए सिरे से विचार हेतु मद्रास हाईकोर्ट को वापस भेज दिया।

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कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि:

  • Crl.O.P. No. 14718/2025 को मद्रास हाईकोर्ट के रिकॉर्ड पर पुनः बहाल किया जाए।
  • मद्रास हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश इस मामले को 30 जून 2025 या उससे पहले उपयुक्त पीठ के समक्ष प्रस्तुत करें।
  • हाईकोर्ट इस मामले का शीघ्र निपटारा करे और इस निर्णय में की गई टिप्पणियों से प्रभावित न हो।

कोर्ट ने याचिकाकर्ता को अंतरिम संरक्षण भी प्रदान किया, जिससे वह हाईकोर्ट में अगली सुनवाई तक पहले से जमा बॉन्ड के आधार पर रिहा रह सकेंगे।

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