केरल हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से यह स्पष्ट करने को कहा है कि वह काला जादू और तंत्र-मंत्र जैसी प्रथाओं पर रोक लगाने के लिए कानून बनाने की दिशा में अब भी अग्रसर है या नहीं। अदालत ने यह निर्देश 3 जून को एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान दिया, जिसे केरल युक्तिवादी संघम ने दाखिल किया था।
मुख्य न्यायाधीश नितिन जमदार और न्यायमूर्ति बसंत बालाजी की खंडपीठ ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह एक हलफनामा दायर कर यह स्पष्ट करे कि क्या वह पहले की तरह अब भी प्रस्तावित कानून को लागू करने की योजना बना रही है। अगली सुनवाई के लिए मामला 24 जून को सूचीबद्ध किया गया है।
यह याचिका 2022 में दायर की गई थी, लेकिन जून 2023 में याचिकाकर्ता की अनुपस्थिति के कारण खारिज कर दी गई थी। बाद में इसे बहाल कर लिया गया और अब यह पुनः विचाराधीन है।

इस याचिका को उस समय विशेष महत्व मिला जब केरल के पठानमथिट्टा जिले में कथित रूप से काला जादू के तहत दो महिलाओं की बलि दिए जाने का मामला सामने आया था। इस मामले में एक दंपति सहित तीन लोगों को आरोपी बनाया गया था।
याचिका में उल्लेख किया गया है कि केरल विधि सुधार आयोग, जिसकी अध्यक्षता सेवानिवृत्त सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीश न्यायमूर्ति के.टी. थॉमस ने की थी, ने 2019 में एक मसौदा विधेयक “केरल अमानवीय कुप्रथाओं, तंत्र-मंत्र और काले जादू की रोकथाम और उन्मूलन विधेयक” का सुझाव दिया था। यह विधेयक बदलते सामाजिक संदर्भ में अंधविश्वास पर प्रभावी रोक लगाने के उद्देश्य से तैयार किया गया था।
याचिकाकर्ता ने महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे राज्यों में पहले से लागू ऐसे कानूनों का भी हवाला दिया है और केरल सरकार से भी वैसा ही कानून बनाने की मांग की है। इसके अलावा याचिका में यह मांग भी की गई है कि ऐसी फिल्में, धारावाहिक और ओटीटी सामग्री जो अंधविश्वास को बढ़ावा देती हैं (कलात्मक या सद्भावनापूर्ण अपवादों को छोड़कर), उन्हें अवैध घोषित किया जाए।
यह मामला व्यापक रूप से उस प्रश्न को उठाता है कि सरकार का क्या दायित्व है जब समाज में धार्मिक या तांत्रिक अंधविश्वासों के नाम पर शोषणकारी कृत्य सामने आते हैं।