इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महिला सुशीला यादव को ट्रांजिट एंटीसिपेटरी बेल प्रदान की है, जिसे दिल्ली पुलिस ने एफआईआर में नामित न होने के बावजूद रात 9:00 बजे थाने में उपस्थित होने का नोटिस भेजा था। न्यायालय ने इसे प्रक्रियागत रूप से गलत ठहराया और विशेष रूप से महिलाओं के मामलों में कानूनी प्रक्रियाओं के पालन की आवश्यकता को रेखांकित किया।
पृष्ठभूमि
सुशीला यादव, जो उत्तर प्रदेश के सीतापुर जनपद के कासिमपुर क्षेत्र स्थित महेशपुर चिलवारा की निवासी हैं, ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में अग्रिम जमानत याचिका दायर की थी। यह याचिका दिल्ली के थाना मायापुरी, जिला पश्चिम में दर्ज केस क्राइम संख्या 0392/2024 से संबंधित थी, जिसमें भारतीय दंड संहिता की धारा 420 और 120 के तहत मामला दर्ज किया गया था।
एफआईआर में याची का नाम नहीं था, फिर भी उपनिरीक्षक शिवपाल सिंह द्वारा उनके व्हाट्सएप नंबर पर 13 जून 2025 को रात 9:00 बजे थाने में उपस्थित होने के लिए नोटिस भेजा गया।
पक्षकारों की दलीलें
याची की ओर से अधिवक्ता श्री अमन ठाकुर और श्री विनीत त्रिपाठी ने पक्ष रखा। उन्होंने तर्क दिया कि एक महिला को रात के समय थाने बुलाना, विशेषकर जब वह एफआईआर में आरोपी नहीं है, कानून की प्रक्रिया के विरुद्ध है और इससे गिरफ्तारी का वास्तविक भय उत्पन्न होता है। उन्होंने Priya Indoria बनाम कर्नाटक राज्य व अन्य [(2024) 4 SCC 746] मामले में उच्चतम न्यायालय के निर्णय का हवाला दिया, जिसमें महिला आरोपियों के प्रति कानूनी सुरक्षा की पुष्टि की गई है।
संघ सरकार की ओर से श्री राज कुमार सिंह उपस्थित हुए। उत्तर प्रदेश राज्य की ओर से अपर सरकारी अधिवक्ता (A.G.A.) ने यह विवाद नहीं किया कि याची एफआईआर में नामित नहीं हैं।
न्यायालय की टिप्पणियां
न्यायमूर्ति राजीव सिंह ने प्रस्तुत दस्तावेज़ों, जिसमें एफआईआर और याची के मोबाइल नंबर पर भेजे गए व्हाट्सएप नोटिस की प्रति शामिल थी, का अवलोकन किया। न्यायालय ने कहा:
“यह स्पष्ट है कि उक्त नोटिस में स्पष्ट रूप से दर्शाया गया है कि याची, जो एक महिला है, को 13.06.2025 को रात 21:00 बजे थाना मायापुरी में उपस्थित होने के लिए बुलाया गया है, जबकि याची एफआईआर में नामित नहीं है और आरोपित अपराध मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय है…”
अदालत ने आगे कहा:
“नोटिस जारी करने वाले अधिकारी की कार्रवाई उचित नहीं है, जिसमें एक महिला को रात 09:00 बजे उपस्थित होने हेतु कहा गया है।”
निर्णय
प्रस्तुत तथ्यों और उच्चतम न्यायालय के निर्णय पर भरोसा करते हुए, हाईकोर्ट ने माना कि याची ट्रांजिट एंटीसिपेटरी बेल की हकदार हैं। न्यायालय ने निर्देश दिया:
“यदि याची को विवेचक / विवेचना एजेंसी द्वारा हिरासत में लिया जाता है, तो उसे ₹25,000/- के निजी मुचलके पर अग्रिम जमानत पर तत्काल रिहा किया जाए।”
साथ ही, न्यायालय ने वरिष्ठ रजिस्ट्रार को निर्देश दिया कि इस आदेश की प्रति उचित कार्रवाई हेतु दिल्ली पुलिस आयुक्त को प्रेषित की जाए।