सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) के उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें पुडुचेरी में प्रस्तावित औरोविले टाउनशिप परियोजना को पर्यावरणीय मंजूरी के बिना आगे बढ़ाने से रोका गया था। सर्वोच्च न्यायालय ने विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता पर जोर देते हुए सतत विकास (Sustainable Development) के सिद्धांत को रेखांकित किया।
न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी और न्यायमूर्ति पी बी वराले की पीठ ने फाउंडेशन की अपील के पक्ष में निर्णय सुनाया, जिसमें NGT के 28 अप्रैल 2022 के आदेश को चुनौती दी गई थी। अदालत ने कहा, “भारतीय पर्यावरण कानून में एहतियाती सिद्धांत (Precautionary Principle) और प्रदूषक भुगतान सिद्धांत (Polluter Pays Principle) महत्वपूर्ण हैं, लेकिन यह भी आवश्यक है कि स्वच्छ पर्यावरण का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत मौलिक अधिकार है। हालांकि, अनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत विकास का अधिकार भी उतना ही महत्वपूर्ण है। इसलिए, पर्यावरण संरक्षण और विकासात्मक आवश्यकताओं के बीच संतुलन बनाए रखने वाला सतत विकास आवश्यक है।”
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि इस मामले में कोई पर्यावरणीय कानूनों का उल्लंघन नहीं हुआ है और NGT द्वारा दिए गए निर्देश “कानूनी रूप से अस्थिर” हैं।

एनजीटी के आदेश की पृष्ठभूमि
एनजीटी का आदेश पर्यावरण कार्यकर्ता नवरोज़ केरसास्प मोदी द्वारा दायर एक याचिका के आधार पर आया था, जिसमें उन्होंने औरोविले फाउंडेशन द्वारा टाउनशिप परियोजना के लिए बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई पर आपत्ति जताई थी। मोदी का तर्क था कि यह भूमि वन क्षेत्र की श्रेणी में आती है और इसे सुप्रीम कोर्ट के टी. एन. गोडावर्मन मामले में दिए गए फैसले के अनुसार संरक्षण मिलना चाहिए। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि फाउंडेशन ने औरोविले के कुछ निवासियों की आपत्तियों को नजरअंदाज किया और मास्टर प्लान को लागू करने से पहले आवश्यक संवाद और परामर्श प्रक्रिया का पालन नहीं किया।
मोदी के अनुसार, औरोविले में 1970 के दशक से वनीकरण अभियान शुरू हुआ था, जिसे अंतरराष्ट्रीय अनुदानों की सहायता से संचालित किया गया। इस दौरान दस लाख से अधिक पेड़ लगाए गए, जिससे यह क्षेत्र एक समृद्ध पारिस्थितिकी तंत्र में बदल गया। इसके परिणामस्वरूप कई पक्षियों और जानवरों की प्रजातियाँ वापस लौटीं, साथ ही दुर्लभ वनस्पतियों का भी विकास हुआ।
औरोविले फाउंडेशन का पक्ष
अरोविले फाउंडेशन ने अपने बचाव में कहा कि औरोविले को हमेशा एक अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक टाउनशिप के रूप में विकसित करने की योजना थी, न कि एक वन क्षेत्र के रूप में। 1988 के औरोविले फाउंडेशन अधिनियम के तहत स्थापित इस संस्था का लक्ष्य 50,000 निवासियों के लिए एक सुव्यवस्थित टाउनशिप विकसित करना है। फाउंडेशन ने बताया कि औरोविले मास्टर प्लान, जिसमें ‘अरोविले यूनिवर्सल टाउनशिप मास्टर प्लान (परिप्रेक्ष्य 2025)’ भी शामिल है, केंद्र सरकार से अनुमोदित है।
हालांकि, एनजीटी ने अपने आदेश में निर्देश दिया था कि जब तक पर्यावरणीय मंजूरी (Environmental Clearance – EC) प्राप्त नहीं हो जाती, तब तक फाउंडेशन कोई भी गतिविधि न करे। इसके अलावा, एनजीटी ने एक समिति का गठन किया, जिसमें जिला कलेक्टर, एक वरिष्ठ वन अधिकारी और अन्य अधिकारी शामिल थे। समिति को यह मूल्यांकन करना था कि क्या टाउनशिप योजना में ऐसे बदलाव किए जा सकते हैं, जिससे पेड़ों की कटाई को न्यूनतम किया जा सके और पर्यावरणीय प्रभाव को कम किया जा सके। एनजीटी ने निर्देश दिया था कि फाउंडेशन को समिति की सिफारिशों की प्रतीक्षा करनी होगी और विशेष रूप से प्रस्तावित सड़क नेटवर्क जैसी निर्माण गतिविधियों को रोकना होगा।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
एनजीटी के आदेश को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने औरोविले फाउंडेशन को अपनी टाउनशिप परियोजना जारी रखने की अनुमति दे दी। हालांकि, अदालत ने सतत विकास की महत्ता को दोहराते हुए यह स्पष्ट किया कि परियोजनाओं को पर्यावरणीय मानकों का पालन करना होगा, लेकिन इसके नाम पर अनावश्यक विकास प्रतिबंध नहीं लगाए जा सकते।