हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपनी लखनऊ पीठ में एक रिट याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें कथित अवैध अतिक्रमणों को हटाने के आदेशों को चुनौती दी गई थी। मामले, आपराधिक विविध रिट याचिका संख्या 5099/2024 की अध्यक्षता न्यायमूर्ति शमीम अहमद ने की। याचिकाकर्ता माधव राज और एक अन्य व्यक्ति ने अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, न्यायालय संख्या 4/विशेष न्यायाधीश (ई.सी. अधिनियम), जिला-गोंडा और उप मंडल मजिस्ट्रेट, तहसील-कर्नलगंज, जिला-गोंडा द्वारा जारी किए गए 10.05.2024 और 03.10.2022 के आदेशों को रद्द करने की मांग की।
मामले की पृष्ठभूमि:
कानूनी लड़ाई तब शुरू हुई जब प्रतिवादी संख्या 4 से 8 ने सीआरपीसी की धारा 133 के तहत एक आवेदन दायर किया। याचिकाकर्ताओं द्वारा कथित अवैध अतिक्रमण को हटाने की मांग करते हुए उप मंडल मजिस्ट्रेट, कर्नलगंज, जिला-गोंडा के समक्ष याचिका दायर की गई। 03.12.2021 को प्रस्तुत पुलिस स्टेशन-कोतवाली देहात, जिला-गोंडा की पुलिस रिपोर्ट ने सार्वजनिक मार्ग और प्रतिवादियों के मार्ग पर अतिक्रमण के दावों का समर्थन किया। हालांकि, याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि नक्शा नजरी (साइट प्लान) में दूसरी तरफ कच्ची सड़क की उपलब्धता का संकेत दिया गया है, जिससे पता चलता है कि उनकी ओर से कोई अवैध अतिक्रमण नहीं है।
उप मंडल मजिस्ट्रेट के दिनांक 03.10.2022 के आदेश ने पुलिस को अतिक्रमण हटाने का निर्देश दिया। व्यथित होकर, याचिकाकर्ताओं ने एक आपराधिक पुनरीक्षण (आपराधिक पुनरीक्षण संख्या 430/2022) दायर किया, जिसे बाद में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने 10.05.2024 को खारिज कर दिया।
कानूनी मुद्दे:
इस मामले में मुख्य कानूनी मुद्दे इस प्रकार थे:
1. उप मंडल मजिस्ट्रेट और अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश द्वारा जारी आदेशों की वैधता और औचित्य।
2. क्या अतिक्रमण के दावों को रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्यों से पुष्ट किया गया था।
3. यदि याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि उन पर अतिक्रमण का गलत आरोप लगाया गया है, तो उनके पास क्या उचित कानूनी उपाय उपलब्ध हैं।
न्यायालय का निर्णय:
न्यायमूर्ति शमीम अहमद ने पिछले आदेशों को बरकरार रखते हुए याचिका को इस आधार पर खारिज कर दिया कि उप मंडल मजिस्ट्रेट और अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश दोनों ने पुलिस रिपोर्ट और साक्ष्यों पर सावधानीपूर्वक विचार करने के बाद अपने अधिकार क्षेत्र में उचित तरीके से काम किया था।
महत्वपूर्ण टिप्पणियां:
न्यायालय ने सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने के महत्व और अतिक्रमणों को वैध तरीके से हटाने की आवश्यकता पर जोर देते हुए कई महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ कीं। निर्णय से एक उल्लेखनीय टिप्पणी यह थी:
“विद्वान उप मंडल मजिस्ट्रेट, कर्नलगंज, गोंडा द्वारा दिनांक 03.10.2022 को पारित आदेश न्यायसंगत और उचित है क्योंकि इसे पुलिस रिपोर्ट और रिकॉर्ड पर उपलब्ध संपूर्ण साक्ष्यों पर विचार करने के बाद पारित किया गया है।”
निष्कर्ष:
इलाहाबाद हाईकोर्ट का निर्णय इस सिद्धांत को पुष्ट करता है कि सार्वजनिक मार्गों पर अतिक्रमण बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है और मजिस्ट्रेट द्वारा दिए गए ऐसे आदेश, जब पर्याप्त साक्ष्यों द्वारा समर्थित हों, सार्वजनिक व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए बरकरार रखे जाएंगे। न्यायालय का निर्णय संपत्ति विवादों में उचित कानूनी उपायों और वैध प्रक्रियाओं के पालन की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
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शामिल पक्ष:
– याचिकाकर्ता: माधव राज और अन्य
– प्रतिवादी: प्रमुख सचिव, गृह विभाग, लखनऊ और अन्य के माध्यम से उत्तर प्रदेश राज्य
– याचिकाकर्ताओं के वकील: अमितेश प्रताप सिंह, अभिजीत पी. सिंह चौहान, नवीन कुमार सिंह, शेष राम यादव
– प्रतिवादियों के वकील: जनरल एडवोकेट (जी.ए.), पूर्णिमा मयंक