सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को फोरम ऑफ़ रिटायर्ड इंडियन पुलिस सर्विस ऑफिसर्स द्वारा दायर याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा है, जिसमें वित्त अधिनियम, 2025 के तहत लाई गई नई पेंशन वैलिडेशन धारा की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है।
जस्टिस के. वी. विश्वनाथन और जस्टिस प्रसन्ना बी. वराले की पीठ ने याचिका पर संज्ञान लेते हुए वित्त, गृह और विधि मंत्रालय के साथ-साथ पेंशन और पेंशनभोगी कल्याण विभाग तथा कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग को नोटिस जारी किया है। इस मामले को अन्य लंबित याचिकाओं के साथ अगले वर्ष जनवरी के लिए सूचीबद्ध किया गया है।
याचिका में फाइनेंस एक्ट 2025 के पार्ट-IV को चुनौती दी गई है, जिसके तहत “वैलिडेशन ऑफ़ द सेंट्रल सिविल सर्विसेज रूल्स एंड प्रिंसिपल्स फ़ॉर एक्सपेंडिचर ऑन पेंशन लाइबिलिटीज फ्रॉम द कंसॉलिडेटेड फ़ंड ऑफ़ इंडिया” पेश किया गया है।
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि इस प्रावधान से समान श्रेणी के पेंशनरों के साथ केवल उनकी सेवानिवृत्ति की तारीख के आधार पर भेदभाव होगा, जबकि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के पूर्व फैसले स्पष्ट रूप से ऐसा भेदभाव असंवैधानिक मान चुके हैं।
न्यायिक फैसलों को निष्प्रभावी करने का आरोप
फोरम का कहना है कि यह संशोधन उन पेंशन प्रावधानों को पुनर्जीवित और वैध बनाने का विधायी प्रयास है जिन्हें न्यायालयों ने पहले ही खारिज कर दिया था।
याचिका में कहा गया है:
“विधानपालिका बाध्यकारी न्यायिक निर्णय को केवल एक प्रतिगामी प्रावधान जोड़कर निरस्त नहीं कर सकती, जो उस दोष को दूर ही नहीं करता जिसे न्यायालय ने पहचाना था। ऐसा विधान जो न्यायालय के निर्णय को निष्प्रभावी कर दे, विधि के शासन और संविधान की शक्तियों के पृथक्करण की योजना के विरुद्ध है।”
याचिकाकर्ताओं ने यह भी बताया कि यह प्रावधान सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल में लंबित वाद तथा दिल्ली उच्च न्यायालय में लंबित अवमानना याचिका पर प्रत्यक्ष प्रभाव डालता है।
याचिका में सुप्रीम कोर्ट से निम्न निर्देश मांगे गए हैं—
• वित्त अधिनियम 2025 में पेश पेंशन वैलिडेशन प्रावधान को असंवैधानिक, अल्ट्रा वायर्स और अवैध घोषित किया जाए।
• दिल्ली हाई कोर्ट के 20 मार्च 2024 के निर्णय (जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 4 अक्टूबर 2024 को बरकरार रखा था) का अनुपालन सुनिश्चित करते हुए 2006 से पेंशन और सभी एरियर का भुगतान कराया जाए।
• देरी से पेंशन भुगतान पर 12% वार्षिक ब्याज दिलाया जाए।
इस मामले पर अब जनवरी 2026 में सुनवाई होगी, जब इससे संबंधित अन्य मामलों के साथ इसे सूचीबद्ध किया जाएगा।




