सुनवाई के दौरान वकील ने दी आत्महत्या की धमकी: सुप्रीम कोर्ट ने आचरण को अवमाननापूर्ण बताया, लेकिन दिखाई नरमी

सुप्रीम कोर्ट की एक सुनवाई के दौरान एक चौंकाने वाली घटना घटी जब एक युवा वकील, रमेश कुमरन ने यह धमकी दी कि अगर उनके द्वारा दर्ज की गई एफआईआर को रद्द किया गया, तो वह आत्महत्या कर लेंगे। इस पर पीठ ने गंभीर चिंता जताई और वकील के आचरण को अनुचित बताया। हालांकि, कोर्ट ने नरमी दिखाते हुए यह आपराधिक विवाद खत्म करने का निर्णय लिया, जो दो वकीलों के बीच लंबे समय से चला आ रहा था। कोर्ट ने इस फैसले के पीछे कानूनी पेशे की गरिमा बनाए रखने और वास्तविक न्याय सुनिश्चित करने को कारण बताया।

पृष्ठभूमि

यह मामला, क्रिमिनल अपील संख्या 1318 ऑफ 2025, तमिलनाडु के कोडैकनाल में 18 दिसंबर 2017 को हुई एक घटना से संबंधित है। पहले अपीलकर्ता रमेश कुमरन और दूसरे प्रतिवादी—दोनों स्थानीय अदालतों में प्रैक्टिस करने वाले वकील हैं। कुमरन के पिता भी इस मामले में दूसरे अपीलकर्ता हैं।

उसी घटना से जुड़ी दो एफआईआर दर्ज की गईं:

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  • एफआईआर संख्या 499/2017, जो कुमरन ने दर्ज कराई, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया कि दूसरे प्रतिवादी और दो अज्ञात व्यक्तियों ने उन पर हमला किया और उनकी नाक से खून निकल आया।
  • एफआईआर संख्या 500/2017, जो 30 मिनट बाद दूसरे प्रतिवादी ने दर्ज कराई, जिसमें कुमरन और उनके पिता पर गाली-गलौज और आपराधिक धमकी देने का आरोप लगाया गया।
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जब पुलिस ने दूसरी एफआईआर को बंद कर दिया और मजिस्ट्रेट ने एक विरोध याचिका पर संज्ञान लिया, तब कुमरन ने मद्रास हाईकोर्ट में कार्यवाही रद्द कराने की याचिका दायर की, जिसे सितंबर 2023 में खारिज कर दिया गया।

सुप्रीम कोर्ट में कार्यवाही

यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, जहां न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भूयान की पीठ ने दोनों वकीलों के बीच सुलह कराने का प्रयास किया।

3 मार्च 2025 को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से पेश होते हुए रमेश कुमरन ने कोर्ट को चौंका दिया और कहा:

“यदि मेरी एफआईआर को रद्द किया गया तो मैं आत्महत्या कर लूंगा।”

कोर्ट ने इस घटना को अपने आदेश में रिकॉर्ड करते हुए लिखा:

“हम बार के एक सदस्य के इस प्रकार के आचरण को देखकर स्तब्ध हैं।”

पीठ ने इस व्यवहार को “अवमाननापूर्ण और वकील के लिए अशोभनीय” बताया और कहा कि इस प्रकार की धमकियाँ न्याय व्यवस्था में हस्तक्षेप के समान हैं। हालांकि, कुमरन ने 6 मार्च 2025 को एक लिखित माफीनामा और प्रतिज्ञा पत्र दाखिल किया, जिसके बाद कोर्ट ने अवमानना की कार्यवाही शुरू न करने का निर्णय लिया और संयम बरतने का विकल्प चुना।

कोर्ट के अवलोकन

पूरी कार्यवाही के दौरान पीठ ने विवाद के समाधान पर जोर दिया। दूसरे प्रतिवादी ने बिना शर्त माफी मांगी — न केवल कोर्ट से, बल्कि अपीलकर्ता और पूरी विधिक बिरादरी से। अपने हलफनामे में उन्होंने कहा:

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“मैं मानता हूं कि एक वकील होने के नाते हमसे उच्चतम नैतिक मानदंडों का पालन अपेक्षित है… और हमें अपने मतभेदों को सभ्य संवाद से हल करना चाहिए।”

हालांकि कोर्ट और अपीलकर्ता के वकील द्वारा बार-बार समझाने के बावजूद शुरुआत में कुमरन विवाद को सुलझाने को तैयार नहीं थे। तब कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 के अंतर्गत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए कहा:

“अगर पक्षकार खुद यह नहीं समझ पा रहे हैं कि उनके हित में क्या है, तब भी न्यायालय का कर्तव्य है कि वह वास्तविक न्याय प्रदान करे।”

अंतिम निर्णय

27 मार्च 2025 को सुनाए गए फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया:

  • एफआईआर संख्या 500/2017 और उससे संबंधित समस्त कार्यवाहियां पूरी तरह रद्द कर दी जाएं।
  • एफआईआर संख्या 499/2017 को केवल दूसरे प्रतिवादी के विरुद्ध रद्द किया गया; अन्य आरोपियों के विरुद्ध कार्यवाही जारी रह सकती है।
  • दोनों पक्षों की क्षमायाचनाएं और प्रतिज्ञा पत्र रिकॉर्ड पर ले लिए गए।
  • अपील को मंज़ूरी दे दी गई।
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कुमरन को उनके कथन के लिए दंडित न करते हुए, कोर्ट ने उदारता और पेशेवर आचरण की महत्ता पर जोर दिया:

“यदि उदारता दिखानी है, तो वह सर्वोच्च संवैधानिक पद पर बैठे लोगों द्वारा दिखाई जानी चाहिए।”

कोर्ट ने आशा जताई कि “पहले अपीलकर्ता और दूसरे प्रतिवादी के बीच पुरानी दुश्मनी का सुखद अंत होगा” और दोनों वकील अब व्यक्तिगत झगड़ों में न उलझकर विधिक प्रणाली को मजबूत करने में योगदान देंगे।

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