सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) ने भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी.आर. गवई और केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल को पत्र लिखकर न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया को पारदर्शी, न्यायसंगत और मेरिट-आधारित बनाने की मांग की है। एससीबीए ने लंबित मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर (MoP) को शीघ्र अंतिम रूप देने का भी आग्रह किया है।
12 सितंबर को भेजे गए पत्र में एससीबीए अध्यक्ष और वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने वर्तमान कोलेजियम प्रणाली की “संरचनात्मक खामियों” पर चिंता जताते हुए कहा कि सुधार में देरी से न्यायपालिका की साख और जनविश्वास प्रभावित हो रहा है।
उन्होंने लिखा, “कोलेजियम तंत्र, जिसे न्यायिक स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए बनाया गया था, अब गंभीर चुनौतियां पैदा कर रहा है। इसकी संरचनात्मक खामियां तत्काल और व्यापक सुधार की मांग करती हैं।”

सिंह ने आरोप लगाया कि कोलेजियम उच्च न्यायालयों में नियुक्ति के लिए सुप्रीम कोर्ट बार के योग्य अधिवक्ताओं को लगातार नज़रअंदाज़ करता है, जबकि उनके पास राष्ट्रीय न्यायशास्त्र का व्यापक अनुभव होता है। उन्होंने कहा कि इस तरह की अनदेखी न्यायिक प्रतिभा की बर्बादी है और मेरिट-आधारित चयन के सिद्धांत को कमजोर करती है।
उन्होंने न्यायपालिका में महिलाओं के “चिंताजनक” अल्पप्रतिनिधित्व पर भी जोर दिया। सिंह ने आधिकारिक आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया कि फरवरी 2024 तक उच्च न्यायालयों में महिला न्यायाधीशों की हिस्सेदारी केवल 9.5% थी, जबकि सुप्रीम कोर्ट में यह मात्र 2.94% रही। उन्होंने इसे “प्रणालीगत बहिष्कार का स्पष्ट प्रमाण” बताया।
पत्र में ब्रीफिंग वकीलों और जूनियर्स की अनदेखी पर भी चिंता जताई गई। सिंह ने कहा कि इन्हें “विधिक लड़ाइयों के अदृश्य वास्तुकार” माना जाना चाहिए, लेकिन वर्तमान प्रक्रिया में केवल बहस करने वाले वकीलों पर ही ध्यान केंद्रित किया जाता है।
एससीबीए ने MoP में कई सुधार सुझाए हैं, जिनमें शामिल हैं:
- प्रत्येक उच्च न्यायालय और सुप्रीम कोर्ट में स्थायी सचिवालय की स्थापना, ताकि उम्मीदवारों और रिक्तियों का डाटा सुरक्षित रहे और संस्थागत स्मृति बनी रहे।
- न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए पारदर्शी, आवेदन-आधारित प्रक्रिया लागू करना, जिससे हर योग्य उम्मीदवार को निष्पक्ष मौका मिले।
- उम्मीदवारों के मूल्यांकन के लिए आयु, वकालत का अनुभव, प्रकाशित निर्णय और नि:शुल्क (प्रो बोनो) कार्य जैसी वस्तुनिष्ठ मानदंडों को सार्वजनिक करना।
सिंह ने जोर दिया कि सुप्रीम कोर्ट पहले ही MoP में सुधार का खाका पेश कर चुका है और इसे लागू करने में और देरी “अक्षम्य” होगी।
एससीबीए का मानना है कि पारदर्शी और मेरिट-आधारित प्रणाली न केवल न्यायिक नियुक्तियों में प्रतिनिधित्व बढ़ाएगी बल्कि न्यायपालिका में जनता का भरोसा भी मजबूत करेगी।