सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्र सरकार को ट्रिब्यूनलों की बदहाल स्थिति को लेकर कड़ी फटकार लगाई और कहा कि बुनियादी सुविधाओं के अभाव के कारण सेवानिवृत्त हाई कोर्ट जज पोस्ट-रिटायरमेंट भूमिकाएँ लेने से हिचकिचा रहे हैं। अदालत ने यहां तक कहा कि यदि सरकार हालात सुधारने में सक्षम नहीं है, तो सभी ट्रिब्यूनल बंद कर दिए जाएँ और मामलों को हाई कोर्ट को भेजा जाए।
जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ ने कहा कि स्टेशनरी से लेकर आवास तक की मूलभूत सुविधाओं के लिए जजों को अनुरोध करना पड़ता है। “वे इंटरव्यू में जाते हैं, चयनित होते हैं, लेकिन जॉइन नहीं करते। वजह यह है कि उन्हें हकीकत पता चलती है कि ट्रिब्यूनल सदस्य होना कैसा है। पूर्व चीफ जस्टिस या सुप्रीम कोर्ट के जज को भी स्टेशनरी मांगनी पड़ती है। आप ट्रिब्यूनलों के साथ कैसा बर्ताव कर रहे हैं?” अदालत ने टिप्पणी की।
पीठ ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल विक्रमजीत बनर्जी से कहा कि संसद ने भले ही ट्रिब्यूनल बनाए हों, लेकिन केंद्र सरकार ने उन्हें जरूरी सहयोग नहीं दिया। “न्यायिक प्रभाव का आकलन नहीं किया गया। कोई खर्च नहीं दिया गया। ट्रिब्यूनल चेयरमैन को आपके विभाग की सबसे खटारा कार दी जाती है। आप पूर्व मुख्य न्यायाधीशों और जजों के साथ कैसा व्यवहार कर रहे हैं?” अदालत ने सवाल किया।

पीठ ने कहा कि नियुक्ति आदेश मिलने के बाद भी पूर्व जजों को आवास और अन्य सुविधाओं की अनिश्चितता बनी रहती है, यही उनकी हिचक का कारण है। “हम जजों को दोष नहीं देते। कृपया पूर्व मुख्य न्यायाधीशों और जजों को गरिमा के साथ ट्रीट करें,” अदालत ने कहा और सुझाव दिया कि डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनेल एंड ट्रेनिंग (DoPT) सहित विभिन्न मंत्रालयों की समिति बनाई जाए, ताकि सभी ट्रिब्यूनलों में सुविधाएँ एक समान उपलब्ध कराई जा सकें।
यह टिप्पणियाँ एनजीटी बार एसोसिएशन, वेस्टर्न ज़ोन की याचिका पर आईं, जिसमें ट्रिब्यूनलों में रिक्तियों का मुद्दा उठाया गया था। केंद्र ने अदालत को बताया कि दो सेवानिवृत्त जजों ने नियुक्ति मिलने के बावजूद कार्यभार ग्रहण करने से इनकार कर दिया, जिससे पूरी प्रक्रिया दोबारा शुरू करनी पड़ेगी।
हालांकि पीठ ने इस रवैये को भी गलत बताया और कहा, “यह भी सही नहीं है कि सेवानिवृत्त हाई कोर्ट जज नियुक्ति स्वीकार नहीं करते। वे यहां-वहां जाना नहीं चाहते।” लेकिन अदालत ने यह भी साफ किया कि असली गलती सरकार की है जो बुनियादी सुविधाएँ नहीं दे रही।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी खारिज कर दिया कि मौजूदा ट्रिब्यूनल सदस्य अपनी रिटायरमेंट के बाद भी तब तक बने रहें जब तक नए सदस्यों की नियुक्ति न हो जाए। अब मामले की अगली सुनवाई 16 दिसंबर को होगी।