सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को ट्रांसजेंडर उम्मीदवारों को स्नातकोत्तर (पीजी) मेडिकल कोर्स में आरक्षण देने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई अगले सप्ताह तक स्थगित कर दी।
मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंग की उस मांग को अस्वीकार कर दिया, जिसमें उन्होंने दो सीटें अखिल भारतीय कोटा और दो सीटें राज्य कोटा में याचिकाकर्ताओं के लिए सुरक्षित रखने का आग्रह किया था। पीठ ने कहा कि पीजी मेडिकल प्रवेश की काउंसलिंग अभी शुरू नहीं हुई है और इस समय कोई तात्कालिक आदेश आवश्यक नहीं है।
“हम हर जगह सीटें रोके नहीं रख सकते। आप कह रहे हैं दो सीटें अखिल भारतीय कोटा में, दो सीटें राज्य कोटा में। काउंसलिंग शुरू ही नहीं हुई है। हम इस मामले को अगले सप्ताह शीर्ष पर सुनवाई के लिए रखेंगे,” सीजेआई ने कहा।

मामला किरण ए.आर. बनाम भारत संघ शीर्षक से दर्ज है। इसमें सुप्रीम कोर्ट के 2014 के ऐतिहासिक NALSA फैसले के अनुरूप ट्रांसजेंडर उम्मीदवारों को आरक्षण का लाभ देने की मांग की गई है। उस फैसले में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों को मान्यता दी गई थी और उन्हें सकारात्मक भेदभाव (affirmative action) का हकदार ठहराया गया था।
सुनवाई के दौरान जयसिंग ने अदालत को सूचित किया कि याचिकाकर्ता किरण ए.आर. अब मामले से हट रहे हैं और केवल याचिकाकर्ता 2 और 3 (क्रमशः ओबीसी और सामान्य वर्ग से) ही इसे आगे बढ़ाएंगे। उन्होंने आग्रह किया कि अदालत फिलहाल “बहुत ही साधारण आदेश” पारित कर दो सीटें सुरक्षित रखने का निर्देश दे।
केंद्र और मेडिकल प्राधिकरणों की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अर्चना पाठक दवे ने कहा कि सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता स्वयं ट्रांसजेंडर आरक्षण के बड़े मुद्दे पर अदालत के समक्ष बहस करना चाहते हैं। राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) के वकील ने भी कहा कि चूंकि काउंसलिंग अभी शुरू नहीं हुई है, इसलिए फिलहाल किसी तात्कालिक राहत की आवश्यकता नहीं है।
इस मामले में एक प्रमुख सवाल यह है कि ट्रांसजेंडर उम्मीदवारों के लिए आरक्षण क्षैतिज कोटा (horizontal quota) के रूप में लागू होगा या नहीं। क्षैतिज कोटे के तहत ट्रांसजेंडर उम्मीदवारों को, चाहे वे एससी, एसटी, ओबीसी या सामान्य वर्ग से हों, तीसरे लिंग की श्रेणी में होने के आधार पर आरक्षण का लाभ मिलेगा।
जयसिंग ने कहा कि दोनों याचिकाकर्ता प्रवेश परीक्षा में शामिल हुए हैं, लेकिन इस बात को लेकर अस्पष्टता बनी हुई है कि ट्रांसजेंडर उम्मीदवारों के लिए यदि आरक्षण लागू होता है तो कट-ऑफ अंक कैसे निर्धारित होंगे। उन्होंने यह भी बताया कि विभिन्न उच्च न्यायालयों ने इस विषय पर परस्पर विरोधी आदेश दिए हैं — कुछ ने अस्थायी आरक्षण दिया है, जबकि कुछ ने राहत देने से इनकार किया है।
सुप्रीम कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 23 सितम्बर के लिए सूचीबद्ध कर दी है और कहा है कि इसे “शीर्ष प्राथमिकता” पर लिया जाएगा।