लिव-इन में रह रहे जोड़े को जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा का अधिकार, भले ही पुरुष साथी की उम्र शादी योग्य न हो: राजस्थान हाईकोर्ट

राजस्थान हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में स्पष्ट किया है कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार सर्वोच्च है। कोर्ट ने कहा कि बालिग होने के बावजूद यदि पुरुष साथी की उम्र विवाह के लिए निर्धारित कानूनी उम्र (21 वर्ष) से कम है, तब भी लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले जोड़े को सुरक्षा से वंचित नहीं किया जा सकता।

यह आदेश जस्टिस अनूप कुमार ढंड की एकल पीठ ने 1 दिसंबर, 2025 को याचिकाकर्ता बनाम राजस्थान राज्य एवं अन्य (S.B. Criminal Writ Petition No. 1537/2025) मामले की सुनवाई करते हुए दिया। याचिकाकर्ताओं ने महिला साथी के परिजनों से अपनी जान को खतरा बताते हुए पुलिस सुरक्षा की मांग की थी।

मामले की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर पुलिस सुरक्षा प्रदान करने के निर्देश मांगे थे। मामले में महिला याचिकाकर्ता की उम्र 18 वर्ष और पुरुष याचिकाकर्ता की उम्र 19 वर्ष है। दोनों बालिग हैं और उन्होंने तय किया कि पुरुष साथी के विवाह योग्य आयु (21 वर्ष) प्राप्त करने के बाद वे शादी करेंगे। तब तक के लिए उन्होंने साथ रहने का निर्णय लिया और 27 अक्टूबर, 2025 को एक ‘लिव-इन रिलेशनशिप एग्रीमेंट’ निष्पादित किया।

याचिकाकर्ताओं का आरोप था कि महिला के परिजन उनके इस रिश्ते से खुश नहीं हैं और उन्हें जान-माल का नुकसान पहुंचाने की धमकी दे रहे हैं। इस संबंध में उन्होंने 13 और 17 नवंबर, 2025 को पुलिस थाना कुन्हाड़ी, कोटा के एसएचओ (SHO) को सुरक्षा के लिए आवेदन भी दिया था, लेकिन कोई कार्रवाई न होने पर उन्होंने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

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पक्षों की दलीलें

याचिकाकर्ताओं के वकील श्री सत्यम खंडेलवाल ने सुप्रीम कोर्ट के नंदकुमार एवं अन्य बनाम केरल राज्य एवं अन्य (2018) के फैसले का हवाला दिया। उन्होंने तर्क दिया कि शीर्ष अदालत ने यह स्पष्ट किया है कि यदि दूल्हे की उम्र 21 वर्ष से कम है, तो भी शादी ‘अमान्य’ (Void) नहीं बल्कि ‘शून्यकरणीय’ (Voidable) होती है। इसके अलावा, उन्होंने दलील दी कि बालिग जोड़ों को बिना शादी के भी साथ रहने का अधिकार है, क्योंकि लिव-इन रिलेशनशिप को घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 के तहत भी मान्यता प्राप्त है।

इसके विपरीत, लोक अभियोजक श्री विवेक चौधरी ने याचिका का विरोध किया। उन्होंने तर्क दिया कि चूंकि पुरुष याचिकाकर्ता की उम्र 19 वर्ष है, इसलिए उसने विवाह की कानूनी उम्र (21 वर्ष) प्राप्त नहीं की है। राज्य की ओर से कहा गया कि “न तो वह शादी कर सकता है और न ही उसे लिव-इन रिलेशनशिप में रहने की अनुमति दी जा सकती है,” इसलिए याचिका खारिज की जानी चाहिए।

कोर्ट का विश्लेषण

जस्टिस अनूप कुमार ढंड ने कहा कि यद्यपि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 5 के अनुसार दुल्हन की न्यूनतम आयु 18 वर्ष और दूल्हे की 21 वर्ष होनी चाहिए, लेकिन मौजूदा मामले में दोनों याचिकाकर्ता बालिग (Major) हैं और उन्होंने अपनी मर्जी से साथ रहने का फैसला किया है।

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कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के लता सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2006) के फैसले का उल्लेख किया, जिसमें कहा गया था कि दो बालिगों के बीच लिव-इन रिलेशनशिप कोई अपराध नहीं है।

पीठ ने विशेष रूप से राजस्थान हाईकोर्ट की एक अन्य पीठ द्वारा रेखा मेघवंशी एवं अन्य बनाम राजस्थान राज्य (21 अगस्त, 2024 को निर्णित) मामले में दिए गए फैसले पर भरोसा जताया, जिसमें कहा गया था:

“भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार का स्थान बहुत ऊंचा है। संवैधानिक व्यवस्था के तहत पवित्र होने के कारण इसकी रक्षा की जानी चाहिए, चाहे शादी अमान्य हो या पक्षों के बीच कोई शादी ही न हुई हो।”

कोर्ट ने नंदकुमार मामले में सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था को भी उद्धृत किया, जिसके अनुसार 21 वर्ष से कम उम्र के पुरुष द्वारा की गई शादी ‘शून्यकरणीय’ (Voidable) होती है, अमान्य (Void) नहीं। कोर्ट ने माना कि बालिग होने के नाते उन्हें शादी के बंधन के बाहर भी साथ रहने का अधिकार है।

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राज्य सरकार की आपत्ति को खारिज करते हुए कोर्ट ने टिप्पणी की:

“महज इस तथ्य के कारण कि याचिकाकर्ता संख्या-2 (पुरुष) विवाह योग्य आयु का नहीं है, याचिकाकर्ताओं को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत परिकल्पित उनके मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन से वंचित नहीं किया जा सकता।”

कोर्ट ने यह भी जोर देकर कहा कि राजस्थान पुलिस अधिनियम, 2007 की धारा 29 के तहत, प्रत्येक पुलिस अधिकारी नागरिकों के जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करने के लिए बाध्य है।

फैसला

हाईकोर्ट ने याचिका का निपटारा करते हुए नोडल अधिकारी को निर्देश दिया कि वे याचिकाकर्ताओं द्वारा प्रस्तुत अभ्यावेदन (Representation) पर कानून के अनुसार निर्णय लें।

कोर्ट ने आदेश दिया:

“नोडल अधिकारी से यह अपेक्षा की जाती है कि वह उनके द्वारा प्रस्तुत अभ्यावेदन का कानून के अनुसार निस्तारण करें और खतरे की आशंकाओं का विश्लेषण करने के बाद, यदि आवश्यक हो, तो याचिकाकर्ताओं को पर्याप्त सुरक्षा प्रदान करने के लिए आवश्यक आदेश पारित करें।”

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ये टिप्पणियां केवल इस रिट याचिका के निस्तारण के उद्देश्य से हैं और याचिकाकर्ताओं के खिलाफ शुरू की गई किसी भी अन्य दीवानी या आपराधिक कार्यवाही को प्रभावित नहीं करेंगी।

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