किरायेदार मकान मालिक की वैध आवश्यकता पर शर्तें नहीं थोप सकते: पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने बेदखली आदेश को बरकरार रखा

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा कि किरायेदार मकान मालिक की वैध आवश्यकता (बोनाफाइड नीड) पर शर्तें नहीं थोप सकते। न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता द्वारा सीआर नं. 3388/2024 और सीआर नं. 3415/2024 में दिए गए निर्णय में अदालत ने किरायेदारों सतीश कुमार सोनी (उनके कानूनी प्रतिनिधियों के माध्यम से) और सुदर्शन शर्मा द्वारा दाखिल पुनरीक्षण याचिकाओं को खारिज कर दिया। दोनों किरायेदारों ने लुधियाना के किराया नियंत्रक और अपीलीय प्राधिकरण द्वारा पारित बेदखली आदेशों को चुनौती दी थी।

अदालत ने मकान मालकिन डिम्पी मल्होत्रा के पक्ष में दिए गए बेदखली आदेशों को बरकरार रखा, जिससे उन्हें लुधियाना के सिविल लाइन्स स्थित महारानी झांसी रोड, घुमार मंडी पर स्थित दो वाणिज्यिक दुकानों का कब्जा पुनः प्राप्त करने की अनुमति दी गई। ये बेदखली आदेश उनकी वैध आवश्यकता के आधार पर पारित किए गए थे, क्योंकि उन्हें दुकानें एक डिपार्टमेंटल स्टोर खोलने के लिए चाहिए थीं।

मामले की पृष्ठभूमि

मामला लुधियाना की दो आसन्न दुकानों से जुड़ा हुआ था, जिन्हें किरायेदारों को पिछले मालिकों द्वारा किराए पर दिया गया था। मकान मालकिन डिम्पी मल्होत्रा ने अगस्त 1995 में दो बिक्री विलेखों के माध्यम से संपत्ति खरीदी थी। संपत्ति हासिल करने के बाद, मार्च 2010 में मल्होत्रा ने किरायेदारों की बेदखली के लिए याचिका दायर की, जिसमें किराया न देने, संपत्ति के मानव निवास के लिए अनुपयुक्त होने और दुकानों की वैध आवश्यकता जैसे आधार दिए गए थे।

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किराया नियंत्रक और अपीलीय प्राधिकरण दोनों ने मल्होत्रा के पक्ष में निर्णय दिया और उनकी वैध आवश्यकता के आधार पर दुकानों को खाली करने का आदेश दिया। इस निर्णय से असंतुष्ट होकर किरायेदारों ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में पुनरीक्षण याचिका दायर की।

मामले में कानूनी मुद्दे

1. वैध आवश्यकता: इस मामले का मुख्य मुद्दा यह था कि क्या मकान मालकिन की दुकानें खोलने की आवश्यकता वास्तव में वैध थी। किरायेदारों का तर्क था कि मकान मालकिन की यह आवश्यकता केवल एक इच्छा थी और उनके पास पहले से ही अन्य संपत्तियाँ हैं।

2. रेस जुडिकाटा (Res Judicata): किरायेदारों ने दावा किया कि 2001 में दायर की गई पहले की बेदखली याचिका खारिज हो गई थी, और इसलिए वर्तमान याचिकाएं रेस जुडिकाटा के सिद्धांत के तहत अवरोधित होनी चाहिए।

3. अन्य संपत्तियों को छिपाना: किरायेदारों ने आरोप लगाया कि मकान मालकिन ने अपनी अन्य संपत्तियों की जानकारी छिपाई, जिससे उनकी वैध आवश्यकता के दावे को चुनौती दी गई।

अदालत के अवलोकन और निर्णय

न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता ने किरायेदारों द्वारा उठाए गए सभी तर्कों को खारिज कर दिया और बेदखली आदेशों को बरकरार रखा। उन्होंने जोर देकर कहा कि मकान मालिक की वैध आवश्यकता को किरायेदार द्वारा चुनौती नहीं दी जा सकती। उन्होंने कहा कि एक बार जब मकान मालिक अपनी वैध आवश्यकता का दावा करता है, तो यह माना जाना चाहिए कि आवश्यकता वास्तविक है, जब तक कि इसके विपरीत कोई प्रमाणित न हो।

रेस जुडिकाटा के मुद्दे पर अदालत ने स्पष्ट किया कि मकान मालिक की वैध आवश्यकता एक पुनरावृत्ति होने वाली कार्रवाई है। 2001 में पूर्व बेदखली याचिका की अस्वीकृति वर्तमान याचिकाओं को अवरुद्ध नहीं करती है। अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के के.एस. सुंदराजू चेट्टियार बनाम एम.आर. रामचंद्र नायडू के फैसले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि अगर मकान मालिक नई या वास्तविक आवश्यकता स्थापित करता है तो वह नई बेदखली याचिका दायर कर सकता है।

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अन्य संपत्तियों के छिपाव के आरोप पर, अदालत ने पाया कि मकान मालकिन ने पर्याप्त रूप से साबित कर दिया था कि उनके पास लुधियाना नगर निगम की सीमा के भीतर कोई अन्य गैर-आवासीय या वाणिज्यिक संपत्ति नहीं थी। अदालत ने कहा:

“अन्य संपत्तियों का केवल स्वामित्व कोई फर्क नहीं डालता। अधिनियम की धारा 13 में ‘उपयोग और अधिवास’ शब्दों का प्रयोग किया गया है, न कि ‘स्वामित्व’ का। इसलिए, इस आधार पर कोई छिपाव आरोपित नहीं किया जा सकता।”

अदालत ने यह भी दोहराया कि किरायेदार मकान मालिक की भविष्य की योजनाओं पर सवाल नहीं उठा सकते, जैसे कि क्या मकान मालिक खाली की गई संपत्ति में व्यवसाय शुरू करेगा। बलबीर कौर बनाम रूप लाल मामले का हवाला देते हुए अदालत ने कहा कि मकान मालिक की वैध आवश्यकता के दावे को स्वीकार किया जाना चाहिए, और किरायेदार मकान मालिक के प्रस्तावित व्यवसाय की सफलता के बारे में अटकलें नहीं लगा सकते।

अदालत के महत्वपूर्ण अवलोकन

न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता ने इस सिद्धांत पर जोर दिया:

“यह किरायेदार के लिए नहीं है कि वह मकान मालिक की वैध आवश्यकता पर शर्तें लगाए। यदि मकान मालिक दावा करता है कि उसे व्यवसाय का विस्तार करने के लिए किराए की संपत्ति की आवश्यकता है, तो उसकी आवश्यकता को वैध माना जाना चाहिए।”

यह महत्वपूर्ण अवलोकन अदालत द्वारा किरायेदारों की याचिकाओं को खारिज करने का आधार बना।

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अंतिम निर्णय और आदेश

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने दोनों याचिकाओं को खारिज कर दिया और किरायेदारों को 30 नवंबर, 2024 तक दुकानें खाली करने का निर्देश दिया। अदालत ने आगे आदेश दिया कि किरायेदारों को अंतिम सहमति से तय किराए के आधार पर सभी बकाया राशि का भुगतान करना होगा और बेदखली की तिथि तक उपयोग शुल्क का अग्रिम भुगतान करना होगा। यदि किरायेदार 30 नवंबर, 2024 तक दुकानें खाली करने में विफल रहते हैं, तो उन्हें 1 दिसंबर, 2024 से ₹1 लाख प्रति माह मुआवजा देना होगा।

पार्टियां और प्रतिनिधित्व

– याचिकाकर्ता: सतीश कुमार सोनी (उनके कानूनी प्रतिनिधियों के माध्यम से) और सुदर्शन शर्मा।

– प्रतिवादी: डिम्पी मल्होत्रा।

– बेंच: न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता।

– याचिकाकर्ताओं के वकील: सुश्री जिज्ञासा तंवर, श्री एन.सी. किनरा, श्री हर्ष किनरा।

– प्रतिवादियों के वकील: श्री आशीष अग्रवाल (वरिष्ठ अधिवक्ता) के साथ श्री नितीश कौशल, श्री विशाल पुंडीर और सुश्री आशना अग्रवाल।

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