मेंस्ट्रुअल लीव पॉलिसी पर कर्नाटक हाईकोर्ट ने फिलहाल रोक लगाने से किया इनकार, राज्य सरकार ने बताया ‘प्रगतिशील कदम’

बेंगलुरु: कर्नाटक हाईकोर्ट ने बुधवार को स्पष्ट किया कि राज्य सरकार की 20 नवंबर की अधिसूचना पर कोई भी अंतरिम आदेश पारित करने से पहले विस्तृत सुनवाई की आवश्यकता है। यह अधिसूचना राज्य के विभिन्न प्रतिष्ठानों में काम करने वाली महिला कर्मचारियों को हर महीने एक दिन का सवेतन मासिक धर्म अवकाश (Paid Menstrual Leave) पाने का अधिकार देती है।

जस्टिस ज्योति मुलिमानी ने मामले की सुनवाई को 20 जनवरी, 2026 तक के लिए स्थगित कर दिया और पॉलिसी के कार्यान्वयन पर रोक लगाने का कोई भी निर्देश जारी नहीं किया। इसका अर्थ है कि फिलहाल यह ‘मेंस्ट्रुअल लीव’ का आदेश प्रभावी रहेगा।

यह निर्णय मंगलवार को हुए नाटकीय घटनाक्रम के बाद आया है, जब कोर्ट ने सुबह के सत्र में अधिसूचना पर अंतरिम रोक लगा दी थी, लेकिन महाधिवक्ता (एडवोकेट जनरल) के हस्तक्षेप के बाद उसी दिन दोपहर में अपना आदेश वापस (रिकॉल) ले लिया था।

मामले की पृष्ठभूमि

कर्नाटक श्रम विभाग द्वारा जारी अधिसूचना निम्नलिखित कानूनों के तहत पंजीकृत सभी उद्योगों और प्रतिष्ठानों पर लागू होती है:

  • फैक्ट्री एक्ट, 1948
  • कर्नाटक दुकानें और वाणिज्यिक प्रतिष्ठान अधिनियम, 1961
  • बागान श्रम अधिनियम, 1951
  • बीड़ी और सिगार श्रमिक (रोजगार की शर्तें) अधिनियम, 1966
  • मोटर परिवहन श्रमिक अधिनियम, 1961
READ ALSO  दिल्ली हाईकोर्ट ने एनडीएलएस में हुई जानलेवा भगदड़ के बाद रेलवे से भीड़भाड़ पर सवाल पूछे

इस पॉलिसी को बेंगलुरु होटल्स एसोसिएशन और सासमोस एचईटी टेक्नोलॉजीज, अविराता डिफेंस सिस्टम्स लिमिटेड, अविराता एएफएल कनेक्टिविटी सिस्टम्स लिमिटेड और फेसिल एयरोस्पेस टेक्नोलॉजीज लिमिटेड जैसी कई निजी कंपनियों के प्रबंधन द्वारा चुनौती दी गई है।

याचिकाकर्ताओं की दलील: ‘कार्यकारी आदेश’ बनाम ‘विधायी प्रक्रिया’

बुधवार को सुनवाई के दौरान, विभिन्न याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कर रहे एडवोकेट प्रशांत बी.के. ने अपनी चुनौती की प्रकृति को स्पष्ट किया। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता इस मुद्दे पर कानून बनाने की राज्य की शक्ति को चुनौती नहीं दे रहे हैं, बल्कि इस नीति को लागू करने के लिए अपनाई गई प्रक्रिया (Procedure) पर सवाल उठा रहे हैं।

वकील ने तर्क दिया कि राज्य सरकार ने मौजूदा कानूनों में संशोधन करने के बजाय एक ‘कार्यकारी आदेश’ (Executive Order) के माध्यम से यह जनादेश जारी किया है। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि चूंकि छुट्टियों और अवकाश को विनियमित करने के लिए पहले से ही व्यापक कानून मौजूद हैं, इसलिए इन अधिकारों में कोई भी बदलाव या जोड़ केवल विधायी प्रक्रिया (Legislative Process) के माध्यम से किया जाना चाहिए, न कि कार्यकारी आदेश से जो मूल कानूनों (Parent Statutes) के दायरे से बाहर जाता हो।

READ ALSO  सुप्रीम कोर्ट ने पुरुषों और महिलाओं के लिए शादी की एक समान न्यूनतम उम्र की मांग वाली याचिका खारिज की

राज्य का बचाव: एक ‘प्रगतिशील कदम’

राज्य सरकार की ओर से पेश होते हुए, महाधिवक्ता (AG) शशि किरण शेट्टी ने इस नीति का बचाव करते हुए इसे उचित विचार-विमर्श के बाद पेश किया गया एक “प्रगतिशील कदम” बताया। उन्होंने कहा कि काम की मानवीय स्थितियों (Humane Conditions of Work) को सुनिश्चित करने के लिए इस नीति का एक मजबूत संवैधानिक आधार है।

महाधिवक्ता ने जोर देकर कहा कि कर्नाटक विधानमंडल ने हमेशा महिलाओं के लाभ के लिए प्रगतिशील कदम उठाए हैं, जो विश्व स्तर पर मौजूद समान नीतियों के अनुरूप है। उन्होंने कोर्ट को सूचित किया कि यह निर्णय मनमाना नहीं था, बल्कि सरकार ने नीति को अंतिम रूप देने से पहले 72 आपत्तियों पर विचार किया था। राज्य ने स्पष्ट किया कि वह इस नीति को पूर्ण रूप से लागू करने का इरादा रखता है और इसके संचालन पर रोक लगाने का विरोध किया।

READ ALSO  गुजरात हाईकोर्ट ने आपराधिक मामले में डिस्चार्ज पर कानून का सारांश दिया

कोर्ट की टिप्पणी

जब याचिकाकर्ताओं के वकील ने कोर्ट से आग्रह किया कि वह राज्य सरकार को अगली सुनवाई तक मामले को आगे न बढ़ाने (Precipitate) का निर्देश दे, तो जस्टिस ज्योति मुलिमानी ने टिप्पणी की कि ऐसे सार्वजनिक महत्व के मामलों में जल्दबाजी में निर्णय नहीं लिया जाना चाहिए।

कोर्ट ने कहा कि इस मुद्दे पर विस्तृत विचार की आवश्यकता है और इसे प्रथम दृष्टया (First Impression) के आधार पर तय नहीं किया जा सकता। जस्टिस मुलिमानी ने सुझाव दिया कि याचिकाकर्ता आगामी शीतकालीन अवकाश का उपयोग राज्य द्वारा दायर आपत्तियों के बयान (Statement of Objections) का अध्ययन करने और अपना जवाब दाखिल करने के लिए करें। मामले को विस्तृत सुनवाई के लिए 20 जनवरी, 2026 के लिए सूचीबद्ध किया गया है।

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles