भारत के सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार, 26 सितंबर, 2025 को राजस्थान सरकार द्वारा दायर अपीलों को खारिज कर दिया। इसके साथ ही, 2006 के एक हत्या मामले में तीन व्यक्तियों—भंवर सिंह, हेमलता और नरपत चौधरी—को बरी करने के राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा गया है। जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस जयमाल्य बागची की बेंच ने इस फैसले की पुष्टि करते हुए निष्कर्ष निकाला कि अभियोजन पक्ष का मामला एक “मनगढ़ंत कहानी” पर आधारित था और प्रस्तुत साक्ष्य अपर्याप्त, अस्वीकार्य और अविश्वसनीय थे।
यह मामला जोधपुर के श्री सुरेश शर्मा की हत्या से संबंधित है। अभियुक्तों को अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (फास्ट ट्रैक) संख्या-2, जोधपुर द्वारा हत्या (धारा 302 आईपीसी), आपराधिक साजिश (धारा 120-बी आईपीसी), और सबूत नष्ट करने (धारा 201 आईपीसी) सहित अन्य अपराधों के लिए दोषी ठहराया गया था और आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। हालांकि, बाद में राजस्थान हाईकोर्ट ने “सबूतों की कमी और अभियोजन पक्ष के मामले में स्पष्ट त्रुटियों” का हवाला देते हुए उन्हें बरी कर दिया था।
मामले की पृष्ठभूमि
अभियोजन पक्ष का मामला 23 जनवरी, 2006 को शुरू हुआ, जब मृतक के बेटे नवनीत शर्मा (PW-15) ने अपने पिता श्री सुरेश शर्मा के लिए गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई। रिपोर्ट में उल्लेख किया गया था कि उनके पिता का अन्य व्यक्तियों के साथ जमीन को लेकर विवाद चल रहा था।

उसी दिन बाद में, जाजीवाल गहलोतान और जाजीवाल भाटियान गांवों के बीच एक शव मिला, जिसकी पहचान नवनीत शर्मा ने अपने पिता के रूप में की। मृतक के हाथ लोहे के तार से बंधे थे, पैर कपड़े से जकड़े हुए थे, और पहचान मिटाने के लिए उनका चेहरा कुचला हुआ लग रहा था। डांगियावास पुलिस स्टेशन में भारतीय दंड संहिता की धारा 302 और 201 के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई।
एक मेडिकल बोर्ड द्वारा किए गए पोस्टमार्टम में शरीर पर लगभग 20 चोटों का पता चला और निष्कर्ष निकाला गया कि मौत का कारण “गला घोंटना” था। जांच के बाद, पुलिस ने भंवर सिंह, हेमलता और नरपत चौधरी के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया।
ट्रायल कोर्ट का दोषसिद्धि और अभियोजन के तर्क
ट्रायल कोर्ट ने परिस्थितिजन्य साक्ष्यों की एक श्रृंखला के आधार पर अभियुक्तों को दोषी ठहराया। अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया कि अभियुक्तों ने अलग-अलग उद्देश्यों के कारण श्री सुरेश शर्मा की हत्या की साजिश रची थी।
उत्तरदाताओं हेमलता और उनके पति नरपत चौधरी के लिए, मकसद मृतक का उनके घर पर बार-बार आना बताया गया, जिससे वे परेशान थे। उत्तरदाता भंवर सिंह के लिए, मकसद सायरी देवी (PW-12) के साथ एक भूमि विवाद को बताया गया, जिसमें मृतक ने सायरी देवी का पक्ष लिया था और कथित तौर पर भंवर सिंह को धमकी दी थी।
अभियोजन पक्ष ने दावा किया कि अभियुक्तों ने उत्तर प्रदेश से पेशेवर हत्यारों को काम पर रखा, 22 जनवरी, 2006 की शाम को मृतक को हेमलता के आवास पर बुलाया और गला घोंटकर उसकी हत्या कर दी। फिर उन्होंने कथित तौर पर शव को नरपत चौधरी के मारुति वैन में ले जाकर सड़क किनारे फेंक दिया।
ट्रायल कोर्ट द्वारा भरोसा किए गए प्रमुख सबूतों में शामिल थे:
- मकसद: भूमि विवाद और मृतक का हेमलता के घर आना-जाना।
- लास्ट-सीन थ्योरी: गवाह हुकुम सिंह (PW-8) और धर्मेंद्र सिंह (PW-20) की गवाही, जिन्होंने मृतक को उसकी गुमशुदगी की शाम को हेमलता के घर के पास अपना स्कूटर पार्क करते देखने का दावा किया था।
- बरामदगी: हेमलता के घर से खून से सना एक दुपट्टा (चुन्नी) और कथित खून के धब्बों वाली एक मारुति वैन।
- साजिश: अभियुक्तों के बीच बातचीत दिखाने वाले कॉल डिटेल रिकॉर्ड और नरपत चौधरी द्वारा व्यवस्थित होटलों में किराए के हत्यारों के ठहरने के सबूत।
हाईकोर्ट का बरी करना और सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में सबूतों की “गहन जांच” की और बरी करने के लिए हाईकोर्ट के तर्क को ठोस और उचित पाया। अदालत ने अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत प्रत्येक सबूत को व्यवस्थित रूप से खारिज कर दिया।
‘लास्ट-सीन’ थ्योरी पर: गवाह हुकुम सिंह (PW-8) और धर्मेंद्र सिंह (PW-20) की गवाही को अविश्वसनीय माना गया। अदालत ने हुकुम सिंह के “अत्यंत संदिग्ध” आचरण पर ध्यान दिया, जिसने 23 जनवरी, 2006 को inquest memo पर हस्ताक्षर किए, लेकिन 28 फरवरी, 2006 तक, यानी एक महीने से अधिक समय तक, मृतक को हेमलता के घर के पास देखने की महत्वपूर्ण जानकारी का खुलासा नहीं किया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह इस “दृढ़ मत में है कि हाईकोर्ट ने हुकुम सिंह (PW-8) और धर्मेंद्र सिंह (PW-20) की गवाही को खारिज करने में बिल्कुल सही था, क्योंकि उनका आचरण संदिग्ध था।”
बरामदगी पर: अदालत ने बरामदगी को महत्वहीन पाया। घटना के पांच दिन बाद बरामद की गई खून से सनी चुन्नी को अपराध से नहीं जोड़ा जा सका क्योंकि फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला ने खून का ग्रुप निर्धारित नहीं किया था। अदालत ने कहा, “जब तक यह नहीं दिखाया जाता कि चुन्नी पर मिला खून का ग्रुप मृतक श्री सुरेश के खून के ग्रुप जैसा ही था, तब तक मानव मूल के खून के धब्बों के साथ भी इसकी बरामदगी महत्वहीन होगी।” अदालत ने हाईकोर्ट के इस निष्कर्ष पर अपनी “पूरी मुहर” लगा दी कि “चुन्नी की बरामदगी मनगढ़ंत और प्लांटेड थी।” इसी तरह, बरामद मारुति वैन में खून के धब्बों का सीरोलॉजिकल जांच के माध्यम से मिलान नहीं किया जा सका, जिससे वह सबूत भी महत्वहीन हो गया।
कॉल डिटेल रिकॉर्ड्स और साजिश पर: अदालत ने कॉल डिटेल रिकॉर्ड को अस्वीकार्य पाया। अभियोजन पक्ष भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 65-बी के तहत एक प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने में विफल रहा, जो इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को साबित करने के लिए अनिवार्य है। इसके अलावा, विवरण एक “हस्तलिखित नोट” में प्रस्तुत किए गए थे, और इसके लेखक से कभी भी अदालत में पूछताछ नहीं की गई। अदालत ने माना कि इससे यह “अपरिहार्य निष्कर्ष निकलेगा कि कॉल विवरण कानून के अनुसार साबित नहीं हुए थे।”
मकसद पर: मकसद के सिद्धांतों को निराधार पाया गया। मृतक के बेटे और पत्नी ने हेमलता के साथ अच्छे संबंध होने की गवाही दी। भंवर सिंह से मिली धमकी के संबंध में सायरी देवी (PW-12) की गवाही को उनके शुरुआती पुलिस बयान से “घोर अतिशयोक्ति और सुधार” से भरा पाया गया और हाईकोर्ट ने इसे सही रूप से अविश्वसनीय माना। सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की, “नुकसान पहुंचाने की मात्र धमकी एक आपराधिक परिस्थिति हो सकती है, लेकिन अकेले यह परिस्थिति हत्या की साजिश को साबित करने के लिए पूरी तरह से अपर्याप्त होगी।”
अंतिम निर्णय
अपने विश्लेषण का समापन करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने माना कि “मामले के रिकॉर्ड पर ऐसा कोई सबूत नहीं था जिसके आधार पर उत्तरदाताओं-हेमलता और नरपत चौधरी को मृतक-श्री सुरेश की हत्या से जोड़ा जा सके।”
बेंच ने बाबू साहेबगौड़ा रुद्रगौड़ा बनाम कर्नाटक राज्य का हवाला देते हुए बरी करने के खिलाफ अपील को नियंत्रित करने वाले सिद्धांतों को दोहराया, जिसमें कहा गया है कि हस्तक्षेप केवल तभी उचित है जब फैसले में “स्पष्ट विकृति” हो या यह “महत्वपूर्ण सबूतों को गलत पढ़ने/विचार करने में चूक” पर आधारित हो।
ऐसे कोई आधार न पाते हुए, अदालत ने फैसला सुनाया, “हमारा दृढ़ मत है कि अभियुक्त-उत्तरदाताओं को बरी करने में हाईकोर्ट द्वारा लिया गया दृष्टिकोण सबूतों की उचित सराहना और मूल्यांकन पर आधारित है और इसलिए इस बरी करने के खिलाफ अपील में हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।” राजस्थान सरकार द्वारा दायर की गई अपीलें तदनुसार खारिज कर दी गईं।