सोमवार को सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच जिसमें, माननीय न्यायमूर्ति आर.एफ. नरीमन, माननीय न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा और माननीय न्यायमूर्ति के.एम. जोसेफ थे, ने कहा कि डिफ़ॉल्ट जमानत का अधिकार केवल एक वैधानिक अधिकार नहीं है, बल्कि ये अभियुक्त को जमानत देते समय भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया का हिस्सा है।
मामले के संक्षिप्त तथ्य -बिक्रमजीत सिंह बनाम पंजाब राज्य
अपीलार्थी बिक्रमजीत सिंह पर आईपीसी की धारा 302, 307, 452, 427, 341, 34 तथा विस्फोटक पदार्थ अधिनियम की धारा 3, 4, 5, 6 के तहत और गैरकानूनी गतिविधियों (रोकथाम) अधिनियम, 1967 की धारा 13 के तहत आरोप लगाए गए थे।
गवाह के बयान के अनुसार, 18.11.2018 को, दो युवा लड़के मोटरसाइकिल पर आए और सुरक्षा गार्ड (गवाह) को पिस्तौल दिखाकर धमकाया। उनमें से एक लड़का सत्संग भवन के अंदर गया और मंच पर एक हैंड ग्रेनेड फेंक दिया और कुछ लोगों को घायल कर दिया और सत्संग हॉल के अंदर नमाज़ पढ़ रहे कुछ लोगों को मार डाला। वारदात को अंजाम देने के बाद वह वे अदलीवाल गांव की ओर भाग गए।
एफआईआर के आधार पर, पंजाब राज्य पुलिस ने अपीलकर्ता बिक्रमजीत सिंह को 22.11.2018 को गिरफ्तार किया। अनुमंडल मजिस्ट्रेट ने बिक्रमजीत सिंह को पुलिस हिरासत में भेज दिया। 21.02.2019 को अभियुक्त को 90 दिनों की हिरासत समाप्त होने के बाद, अपीलकर्ता ने उप-विभागीय न्यायिक मजिस्ट्रेट, अजनाला को डिफ़ॉल्ट जमानत के लिए एक आवेदन दिया।
अभियुक्तके आवेदन को खारिज कर दिया गया, और खारिज करने का कारण यह था कि दिनांक 13.02.2019 के आदेश से हिरासत 90 से 180 दिनों तक बढ़ाई गई थी, यह आदेश सीआरपीसी की धारा 167 के तहत जारी किया गया था।
इस आदेश को अभियुक्त ने चुनौती दी और अतिरिक्त सत्र न्यायालय के न्यायाधीश की विशेष अदालत ने 25.02.19 को आदेश दिया था कि इल्का मजिस्ट्रेट के पास आदेश पारित करने का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है और केवल विशेष न्यायालय के पास गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम की धारा 45 (डी) के तहत आए आवेदनों में आदेश पारित करने का अधिकार है।
एक दिन बाद 26.03.2019 को विशेष न्यायाधीश के समक्ष आरोप पत्र दायर किया गया। अपीलकर्ताओं पर आईपीसी और विस्फोटक पदार्थ अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत आरोप लगाए गए थे।
तब 25.02.2019 के आदेश के खिलाफ एक संशोधन याचिका दायर की गई थी, जिसे विशेष न्यायाधीश ने 11.04.2019 को खारिज कर दिया था, जिसमे 25.03.2019 के आदेश को अधिसूचित करने के बाद न्यायिक मजिस्ट्रेट के आदेश दिनांक 13.03.2019 के खिलाफ संशोधन याचिका की अनुमति दी।
फिर 11.04.2019 को, डिफ़ॉल्ट जमानत के लिए दिनांक 08.04.2019 को आवेदन को खारिज कर दिया गया।
इससे क्षुब्ध होकर अपीलकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया –
सर्वाेच्च न्यायालय के समक्ष कार्यवाही –
सर्वाेच्च न्यायालय का विशलेषण
सर्वाेच्च न्यायालय ने कहा कि उच्च न्यायालय का यह कहना गलत था कि एक बार अभियोजन पक्ष द्वारा चालान पेश किए जाने के बाद, डिफ़ॉल्ट जमानत के लिए अपीलकर्ताओं को छूट नहीं दी जा सकती।
माननीय उच्चतम न्यायालय ने यह भी देखा कि उच्च न्यायालय ने तारीखों को गलत अंकित किया था। न्यायालय ने पाया कि डिफ़ॉल्ट जमानत के लिए आवेदन 25.02.2019 को किया गया था न कि 26.03.2019 को, जबकि चार्जशीट 26.03.2019 को दायर की गई थी न कि 25.03.2019 को।
आगे सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि डिफ़ॉल्ट जमानत के लिए आवेदन 25.02.2019 को खारिज कर देने मात्र से इस मामले पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
सर्वाेच्च न्यायालय का निर्णय
सर्वाेच्च न्यायालय ने याचिका की अनुमति दी और उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश को निरस्त कर दिया। अपीलकर्ताओं को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया गया है।
Case Details:-
Title: Bikramjit Singh Versus The State Of Punjab
Case No.CRIMINAL APPEAL NO. 667 OF 2020
Date of Order:12.10.2020
Coram: Hon’ble Justice R.F. Nariman, Hon’ble Justice Navin Sinha and Hon’ble Justice K.M. Joseph