सोमवार को एक सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने दो बेटों को जमकर लताड़ लगाई।
कोर्ट ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि ये दोनों बेटे अपने पिता की देखभाल नहीं कर रहे थे और उन्हें आर्थिक मदद भी देना बंद कर दिया था।
साथ ही बेटों ने पुश्तैनी घर से पिता को बाहर भी कर दिया था। इसके कारण पिता को अपना जीवन-यापन करने के लिए स्वंय ही व्यवस्था करने पर मजबूर होना पड़ा।
न्यायमूर्ति ए.एम खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ ने बेटों के वकील से कहा कि बेटे अपने पिता के साथ इस तरह का व्यवहार नहीं कर सकते हैं।
पिता की देखभाल करना कानूनी रूप से उनका कर्तव्य ह। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा, कि दोनों बेटे अपने पिता के लिए कुछ भी नहीं कर रहे हैं।
कोर्ट ने देखा कि दोनों बेटे मल्टीनेशनल कंपनी में काम करते हैं, इसके बावजूद दोनो ही पिता क देखभाल नहीं कर रहे है।
सुप्रीम कोर्ट ने ये कहा कि मत भूलिये कि आज आप जो भी हैं, वो अपने पिता की बदौलत हैं।
कोर्ट को यह भी जानकारी दी गई कि दोनों बेटे पुश्तैनी घर पर कब्जा किए हुए है और उस घर से किराया भी प्राप्त कर रहे है।
यह जानने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा, कि यह प्रॉपर्टी भी आप लोगों को अपने पिता की बदौलत मिली है, तो आप दोनों अकेले कैसे अपने पिता को बिना आर्थिक हिस्सेदारी दिए इसका उपभोग कर सकते हैं?
यह मामला दिल्ली के एक परिवार से जुड़ा हुआ है। यहॉं दोनों बेटे अपने बीवी-बच्चों के साथ करोलबाग में स्थित पुश्तैनी घर में रह रहे थे।दोनों ने अपने पिता को घर छोड़ने को मजबूर कर दिया। जिसके बाद पिता ने ट्रिब्यूनल के समक्ष एक याचिका दी, जिसपर ट्रिब्यूनल ने बेटों को निर्देश दिया था कि वे अपने पिता को 7,000 रुपये प्रतिमाह जीवनयापन के लिए देगें।
परन्तु बेटों ने इस आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की और मेंटिनेंस एंड वेलफेयर पैरेंट्स एंड सीनियर सिटिजन एक्ट 2007 के कुछ प्रावधानों की वैधता को भी चुनौती दी।
हाईकोर्ट ने उनकी याचिका को सुनने के बाद ट्रिब्यूनल के आदेश पर स्थगन लगा दिया। इसके बाद पिता को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष जाने पर मजबूर होना पड़ा।
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने पिता की याचिका को स्वीकार किया और बेटों को एक सभ्य व्यवस्था बनाने के लिए कहा ताकि उनके पिता अच्छी तरह से अपना जीवन यापन कर सकें। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि 7,000 रुपये प्रति माह किसी भी तरह से पर्याप्त नहीं है और बेटों को बेहतर आर्थिक मदद के साथ कोर्ट के सामने आने के लिए कहा है।
सोमवार को बेटों के वकील ने पिता के लिए हर महीने 10,000 रुपये का भुगतान करने का प्रस्ताव रखा, जिसपर कोर्ट ने चिंता व्यक्त की कि जब बेटे पैतृक घर पर भी कब्जा किये हुए है और इससे किराया कमा रहे हैं, तो इतनी कम रकम क्यूं?
न्यायमूर्ति खानविल्कर ने कहा कि पिता को इस पैतृक संपत्ति के लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता है। इसलिए कोर्ट ने बेटों के वकील से पूछा कि-अब आप हमें बताएं कि क्या आप उस घर को अपने हाथों से बेचने के लिए तैयार हैं या हमें एक आयुक्त नियुक्त करना चाहिए जो इसे बेचे और तीनों के बीच पैसे का बंटवारा कर दे।
सुप्रीम कोर्ट ने उक्त पर विचार करने के लिए बेटों को एक हफ्ते का समय दिया है.