सोमवार को, किरण गुप्ता बनाम राज्य चुनाव आयोग में, पटना उच्च न्यायालय ने फैसला दिया कि एक विदेशी नागरिक बाद में शादी करने पर स्वचालित रूप से भारतीय नागरिक नहीं बन जाता है।
हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि मतदाता पहचान पत्र, पैन या आधार कार्ड के साथ नागरिकता साबित नहीं की जा सकती है।
यह निर्णय मुख्य न्यायाधीश संजय करोल और न्यायमूर्ति एस कुमार की खंडपीठ द्वारा दिया गया है, जिसमें उन्होंने पैन कार्ड; मतदाता पहचान पत्र; या आधार कार्ड को भारतीय नागरिकता के प्रमाण के रूप में नहीं माना है।
हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि मात्र नेपाल की नागरिकता का त्याग कर देने से भारतीय नागरिकता नहीं प्राप्त हो जाती।
मामले के तथ्य
अपीलकर्ता किरण गुप्ता नेपाल में जन्मी और पली-बढ़ी थी। 2003 में एक अशोक प्रसाद गुप्ता से शादी के बाद, वह स्थायी रूप से भारत में उनकी पत्नी के रूप में उनके साथ रहने लगीं।
भारत में बसने के बाद, उन्होने बिहार विधानसभा के चुनाव के लिए वर्ष 2008 में तैयार मतदाता सूची में अपना नाम दर्ज कराया; इसके बाद उन्होने निम्न कार्य भी किये-
- भारत में बैंक में खाता खुवाया
- आयकर विभाग द्वारा पैन कार्ड जारी कराया
- आधार कार्ड बनवाया
- अपने बच्चों के नाम भारत में बर्थ एंड डेथ्स एक्ट, 1969 के तहत पंजीकृत कराया
- भारत में एक अचल संपत्ति खरीदी गई,
- 24 फरवरी 2016 को अपनी नेपाली नागरिकता वापस कर दी।
समस्या तब खड़ी हुई जब उन्होनंे ग्राम पंचायक के मुखिया का चुनाव लड़ा और जीत गयी। उनके चुनाव को उनके विरोधियो द्वारा चुनौती दी गयी। जिसे निर्वाचन आयोग ने अपने आदेश दिनांक 09.08.2019 से निरस्त कर दिया।
चुनाव आयोग के इस आदेश के खिलाफ, पटना उच्च न्यायालय में वाद दायर किया गया। याची का तर्क था कि उन्होने नेपाल की नागरिकता वापस कर दी है और भारत के नागरिक से विवाह किया है।
एकल न्यायाधीश की खंडपीठ ने हालांकि, उनकी रिट याचिका को खारिज कर दिया और कहा कि वह भारत की नागरिक नहीं हैं और इस तरह पंचायत अधिनियम के तहत अयोग्य है।
उक्त आदेश से क्षुब्ध होकर याची ने दो जजों की पीठ में अपील दायर की।
पटना हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने नागरिकता अधिनियम के प्रावधानों और नागरिकता के मामले में शीर्ष न्यायालय के विभिन्न प्रावधानों का उल्लेख किया है और कहा है कि मूल नागरिकता का मात्र त्याग भारतीय नागरिकता प्राप्त करने के इरादे के रूप में नहीं माना जा सकता है।
हाईकोर्ट ने कहा कि मात्र विदेशी नागरिक अधिनियम के तहत भारतीय नागरिक के साथ विवाह करने पर कोई भारतीय नागरिक नहीं बनता है। विवाह के बाद, विदेशी नागरिक के पास भारतीय नागरिक के रूप में पंजीकृत होने का विकल्प होता है। फिर भी, व्यक्ति को उनके समक्ष निवास की आवश्यकता को पूरा करना होगा।
होईकोर्ट ने कहा कि मूल नागरिकता को त्यागने पर स्वचालित रूप से भारत का नागरिक नहीं मिल जाती है। इस प्रकार, भारत में निरंतर और निर्बाध प्रवास नागरिकता अधिनियम के तहत नागरिकता प्राप्त करने के लिए चयन करने वाले व्यक्ति की प्रत्याशा में, एक निर्धारण करने वाला कारक नहीं हो सकता है।
क्या वोटर आईडी, पैन कार्ड, आधार कार्ड नागरिकता का पर्याप्त प्रमाण हैं?
याची का तर्क था कि उनके पास वोटर आईडी, आधार और पैन कार्ड जैसे कई दस्तावेज हैं। इस पर, पीठ ने कहा कि मतदाता सूची में किसी व्यक्ति के नाम का पंजीकरण, वास्तव में, नागरिकता प्रदान नहीं करता है।
पैन कार्ड का उद्देश्य भारतीय नागरिकों को करों के भुगतान की सुविधा प्रदान करना। आधार कार्ड प्राप्त करने के लिए पात्रता मानदंड भारत में 182 दिनों या उससे अधिक की अवधि के लिए निवास है, न कि नागरिकता प्राप्त करने के लिए।
आधार अधिनियम, 2016 की धारा 9 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि आधार, आधार नंबर धारक की नागरिकता या अधिवास का प्रमाण नहीं प्रदान करता है।
भारत में बैंक खाता रखने के लिए कोई मानदंड नहीं है। मतदाता पहचान पत्र भारतीय नागरिकता के अभेद्य प्रमाण नहीं हैं- मतदाता पहचान पत्र जारी करने से जुड़ी अनुमानों को रद्द किया जा सकता है।
उक्त के आलोक में पटना हाईकोर्ट की खण्डपीठन ने अपीलकर्ता/याची की अपील निरस्त कर दी।
Case Detail:-
Title: Kiran Gupta vs State Election Commission & Ors
Case No. Letters Patent Appeal No.139 of 2020
Date of Order: 12.10.2020
Coram; Hon’ble Chief Justice Sanjay Karol and Hon’ble Justice S. Kumar