आईपीसी की धारा 498 ए के तहत एक शिकायत के अनुसार अपने वैवाहिक घर में एक महिला के साथ क्रूरता ने उसके वकील पति के चयन को जिला न्यायाधीश के रूप में रद्द करा दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने अपना निर्णय अनिल भारद्वाज बनाम मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के मामले मे दिया है।
न्यायिक अधिकारियों के चयन के लिए दोषी साबित होने तक निर्दाेष के सिद्धांत को सीमित करते हुए जस्टिस अशोक भूषण और एमआर शाह की पीठ ने कहा कि अपीलार्थी को अनुपयुक्त रखने के लिए परीक्षा तथा चयन/नियुक्ति समिति का निर्णय सही था।
अपीलकर्ता के खिलाफ धारा 498 ए / 406/34 आईपीसी के तहत एक आपराधिक मामला लंबित था, जो अपीलकर्ता की पत्नी द्वारा दर्ज की गई शिकायत पर दर्ज किया गया था।
बाद में मामले में ट्रायल कोर्ट द्वारा अधिवक्ता को बरी कर दिया गया। परन्तु यह भी उनके बचाव में नहीं आया क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चयन के प्रासंगिक समय पर और नियुक्ति से पहले, चयनित उम्मीदवार के खिलाफ मामला लंबित था। अदालत ने कहा कि घड़ी को वापस नहीं किया जा सकता है।
न्यायमूर्ति भूषण ने फैसला सुनाते हुए कहा कि समिति का ऐसा निर्णय समिति के अधिकार क्षेत्र और शक्ति के भीतर था और इसे अनिश्चित नहीं कहा जा सकता।एक वर्ष से अधिक समय के बाद, जिस व्यक्ति की उम्मीदवारी को रद्द कर दिया गया है, उसे बरी करने पर उसे पुनः नियुक्ति नहीं दी जा सकती।
अधिवक्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता आर वेंकटरमणि ने तर्क दिया कि चयन सूची से अपीलार्थी का नाम हटाए जाने के कारण, उस पर कलंक लगा हुआ था, और इस को कलंक हटाने के लिए हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर अपील का स्वीकार करना चाहिए।
उन्होंने यह भी कहा कि अधिवक्ता को जिला न्यायाधीश बनने से वंचित नहीं रखना चाहिए क्योंकि उन्होंने नियुक्ति समिति के समक्ष अपनी पत्नी द्वारा उनके खिलाफ दर्ज की गई एफआईआर की पेंडेंसी के बारे में खुलासा किया था, जिसमें उन्हें बाद में बरी कर दिया गया था।
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि 18 सितंबर, 2019 के फैसले से पहले ही अपीलार्थी को बरी कर दिया गया है, आपराधिक मामले का कलंक पहले ही समाप्त हो चुका है और आपराधिक मामले मंेे बरी होने के बाद अपीलकर्ता के नाम पर कोई कलंक नहीं लगा है।
अपीलकर्ता के वकील की आशंका कि अपीलकर्ता के नाम के साथ एक कलंक जारी रहेगा, गलत है।
Case Details:
Title: Anil Bharadwaj vs High Court of M.P.
Case No.: Civil Appeal No(S).3419 Of 2020
Coram:Hon’ble Justice Ashok Bhushan and Hon’ble Justice MR Shah
Date of Judgment: 13.10.2020