आज सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की एक बेंच ने इलाहाबाद हाईकोर्ट लखनऊ द्वसास गायत्री प्रजापति को अंतरिम जमानत देने के आदेश को निरस्त कर दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि लखनऊ स्थित इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने गायत्री प्रजापति की मेडिकल रिपोर्ट पर विचार नहीं किया था।
उत्तर प्रदेश राज्य बनाम गायत्री प्रजापति के संक्षिप्त तथ्य इस प्रकार हैः-
यूपी के पूर्व कैबिनेट मंत्री गायत्री प्रजापती के खिलाफ एक एफआईआर दर्ज की गई थी। गायत्री प्रजापति के खिलाफ धारा 376 (डी) / 376/511 / 504/506 आईपीसी तथा पोस्को अधिनियम की धारा 3/4 के तहल मामला दायर किया गया।
यह एफआईआर सुप्रीम कोर्ट के आदेश दिनांक 17.02.2017 के अनुपालन में दर्ज की गयी थी। तत्पश्चात गायत्री प्रजापति को अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश, लखनऊ की अदालत से जमानत मिल गई।
लेकिन इससे पहले कि वह रिहा हो पाता जमानत को इलाहाबाद उच्च न्यायालय लखनऊ ने रद्द कर दिया। इसके बाद एक और जमानत याचिका दायर की गई, जिसे इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने पुनः खारिज कर दिया।
गायत्री प्रजापति ने छह महीने की अवधि के लिए चिकित्सा आधार पर अंतरिम जमानत की मांग करते हुए एक और जमानत याचिका दायर की। दिनांक 03.05.2019 से 17.01.2020 तक गायत्री प्रजापी लखनऊ स्थित केजीएमयू में इलाज करात रहे।
उक्त याचिका पर लखनऊ स्थित इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अंतरिम बेल दे दी। इस आदेश से क्षुब्ध होकर राज्य सरकान ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपील दायर की।
सुप्रीम कोर्ट में क्या कहा गया था?
राज्य सरकार ने कहा कि गायत्री प्रजापति को केजीएमयू में उचित उपचार दिया गया है। साथ ही लखनऊ स्थित सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल एसजीपीजीआई में भी इलाजा कराया गया है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने बेल देते वक्त मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट पर विचार नहीं किया।
डॉ राजीव धवन ने गायत्री प्रजापति की ओर राज्य द्वारा दायर अपील का विरोध किया। उन्होंने कहा कि जब कोई व्यक्ति बीमार होता है और वह जेल में होता है, तो उसे मानवीय उपचार की आवश्यकता होती है। गायत्री प्रजापति को एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल में ले जाया जा रहा था, जो उनकी अपनी पसंद से नहीं था।
सुप्रीम कोर्ट ने नहीं दी राहत
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य के उस हलफनामे का उल्लेख किया जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया था कि पीजीआई लखनऊ नायाब चिकित्सा विशेषज्ञता प्रदान करता है और दूर-दूर के स्थानों से मरीज विशेष चिकित्सा उपचार के लिए यहॉ आते हैं।
कोर्ट ने कहा कि यद्यपि लखनऊ में इलाहाबाद उच्च न्यायालय का आदेश 23 पृष्ठों का है, लेकिन तर्क केवल पैरा 27 में दिया गया है। लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मेडिकल बोर्ड की दिनांक 10.06.2020 की रिपोर्ट को नहीं माना है।
माननीय न्यायाधीशों ने कहा कि हम यह देखने में विफल हैं कि प्रतिवादी को दी जाने वाली चिकित्सा उपचार में क्या कमियां थीं, जो कि मेडिकल ग्राउंड पर अंतरिम जमानत देने का आधार हो सकती थीं।
अंततः सर्वाेच्च न्यायालय ने पाया कि लखनऊ में इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्णय गलत था।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
उक्त के आधार पर राज्य की अपील की अनुमति दी गई और अंतरिम जमानत देने वाले इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश को निरस्त कर दिया गया।
Case Details:
Title:- State of U.P. vs Gayatri Prajapati
Case No.- Criminal Appeal 686 of 2020
Coram- Hon’ble Justice Ashok Bhushan, Hon’ble Justice R. Subhash Reddy, and Hon’ble Justice M.R. Shah
Date of Judgment:15.10.2020