फेडरेशन ऑफ इंडियन एयरलाइंस (FIA) ने हवाई अड्डा संचालकों के लिए एरोनॉटिकल टैरिफ निर्धारण के सिद्धांतों से जुड़े टेलीकॉम विवाद निपटान एवं अपीलीय न्यायाधिकरण (TDSAT) के 1 जुलाई के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है।
FIA ने अपनी याचिका में कहा है कि न्यायाधिकरण ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए सीमित रिमांड के दायरे से कहीं आगे जाकर निर्णय दिया और ऐसे मुद्दों को दोबारा खोल दिया, जो पहले ही अंतिम रूप ले चुके थे। FIA ने दिल्ली और मुंबई हवाई अड्डों के संचालकों — दिल्ली इंटरनेशनल एयरपोर्ट लिमिटेड (DIAL) और मुंबई इंटरनेशनल एयरपोर्ट लिमिटेड (MIAL) — द्वारा TDSAT के आदेश को चुनौती देने वाले लंबित मामलों में हस्तक्षेप याचिका दायर की है।
FIA का कहना है कि TDSAT ने हाइपोथेटिकल रेगुलेटरी एसेट बेस (HRAB) की गणना से जुड़े मुद्दे को अनुचित रूप से फिर से तय किया, जबकि सुप्रीम कोर्ट अपने 11 जुलाई 2022 के फैसले में कॉरपोरेट टैक्स के सीमित प्रश्न को छोड़कर इस मुद्दे को पहले ही अंतिम रूप दे चुका था।
याचिका में कहा गया,
“विवादित निर्णय न केवल कानूनी त्रुटियों से ग्रस्त है, बल्कि इसके गंभीर वित्तीय परिणाम भी हैं। HRAB को बढ़ाकर 4,848 करोड़ रुपये करने से DIAL को अनुचित लाभ मिलता है, जिससे बिना समुचित निवेश के निरंतर वसूली संभव हो जाती है।”
FIA ने चेतावनी दी कि इस बढ़े हुए टैरिफ बेस का बोझ अंततः एयरलाइंस और यात्रियों पर पड़ेगा। इससे लैंडिंग चार्ज, पार्किंग चार्ज और यूजर डेवलपमेंट फीस जैसे शुल्क बढ़ेंगे, जिसका व्यापक प्रभाव उपभोक्ता हितों के खिलाफ होगा और नागरिक उड्डयन क्षेत्र की वृद्धि के लिए भी नुकसानदेह साबित होगा।
इस मामले की सुनवाई 16 दिसंबर को न्यायमूर्ति अरविंद कुमार और न्यायमूर्ति एन. वी. अंजारिया की पीठ के समक्ष होनी है, जो पहले से ही इस विवाद की सुनवाई कर रही है।
पृष्ठभूमि बताते हुए FIA ने कहा कि यह विवाद एयरपोर्ट्स इकोनॉमिक रेगुलेटरी अथॉरिटी (AERA) द्वारा DIAL और MIAL के लिए पहले कंट्रोल पीरियड में जारी किए गए टैरिफ आदेशों से उत्पन्न हुआ था। इन आदेशों में AERA ने स्टेट सपोर्ट एग्रीमेंट और अपनी टैरिफ गाइडलाइंस के अनुरूप एरोनॉटिकल राजस्व, एरोनॉटिकल व्यय और कॉरपोरेट टैक्स के आधार पर MIAL के लिए HRAB 966 करोड़ रुपये तय किया था।
इन टैरिफ आदेशों को DIAL और MIAL ने TDSAT में चुनौती दी थी, लेकिन जनवरी 2019 में न्यायाधिकरण ने उनकी अपीलें खारिज कर दी थीं। इसके बाद दायर सिविल अपीलों पर सुप्रीम कोर्ट ने 11 जुलाई 2022 को फैसला देते हुए, कॉरपोरेट टैक्स के सीमित मुद्दे को छोड़कर, AERA के टैरिफ निर्धारण की पुष्टि की थी।
FIA के अनुसार, इसके बाद DIAL ने नागरिक उड्डयन मंत्रालय (MoCA) के 24 मई 2011 के एक पत्र का सहारा लेकर मामले को दोबारा खोलने की कोशिश की और दावा किया कि यह पत्र HRAB गणना की वैकल्पिक पद्धति का समर्थन करता है। FIA ने कहा कि यह तर्क पहली बार 2023 में उठाया गया, जबकि तब तक मामला पूरी तरह अंतिम हो चुका था।
4 दिसंबर 2023 के आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने DIAL की मुख्य दलील को खारिज कर दिया था, लेकिन TDSAT को सीमित उद्देश्य के लिए मामला वापस भेजा था — ताकि वह MoCA के पत्र के HRAB गणना पर प्रभाव, यदि कोई हो, की जांच कर सके और यह स्वतंत्र रूप से विचार कर सके कि क्या “सिंगल टिल” पद्धति लागू होनी चाहिए।
हालांकि, FIA का आरोप है कि TDSAT ने 1 जुलाई 2025 के अपने आदेश में इस सीमित दायरे का उल्लंघन किया। याचिका के अनुसार, न्यायाधिकरण ने MoCA के पत्र को AERA पर बाध्यकारी निर्देश मान लिया, जबकि वह केवल एक आंतरिक पत्राचार था और उसमें स्वयं यह उल्लेख था कि HRAB गणना की कोई तय पद्धति रिकॉर्ड पर मौजूद नहीं है।
FIA ने यह भी कहा कि TDSAT ने AERA द्वारा तय किए गए 966 करोड़ रुपये के HRAB को हटाकर 4,848 करोड़ रुपये की अत्यधिक बढ़ी हुई राशि निर्धारित कर दी, जिससे टैरिफ बेस में लगभग पांच गुना वृद्धि हो गई।
याचिका में कहा गया है कि यह मामला कई महत्वपूर्ण कानूनी प्रश्न उठाता है, जिनमें आंतरिक सरकारी पत्राचार की बाध्यकारी प्रकृति, टैरिफ निर्धारण में संविदात्मक प्रावधानों की पवित्रता, रिमांड अधिकार क्षेत्र की सीमाएं और नियामक विशेषज्ञता एवं पहले से तय निर्णयों में न्यायिक या अर्ध-न्यायिक हस्तक्षेप की सीमा शामिल है।
FIA ने सुप्रीम कोर्ट से हस्तक्षेप की मांग करते हुए कहा है कि नियामक निश्चितता को बहाल किया जाए, पूर्व निर्णयों की अंतिमता की पुनः पुष्टि की जाए और TDSAT द्वारा निर्देशित HRAB की “अस्थिर और असंवहनीय” बढ़ी हुई गणना को रद्द किया जाए।
AERA और दिल्ली एवं मुंबई हवाई अड्डों के संचालकों के बीच चल रहा यह दीर्घकालिक विवाद उपयोगकर्ता शुल्कों को प्रभावित कर सकता है, जिसके परिणामस्वरूप देश के दो सबसे बड़े हवाई अड्डों पर हवाई किराए बढ़ने की आशंका है।

