दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को अभियोजन निदेशक द्वारा जारी उस विज्ञापन पर रोक लगा दी जिसमें केवल सेवानिवृत्त अभियोजकों को सहायक लोक अभियोजक (APP) के 196 पदों पर नियुक्त करने के लिए आमंत्रित किया गया था। अदालत ने कहा कि युवा वकीलों को अवसर से वंचित करना “स्वीकार्य नहीं” और “दुर्भाग्यपूर्ण” है।
न्यायमूर्ति सचिन दत्ता ने वकील विकास वर्मा द्वारा दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव, गृह सचिव, अभियोजन निदेशक और संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) को नोटिस जारी कर दो सप्ताह में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया। अदालत ने कहा कि जब तक गृह सचिव याचिकाकर्ता के प्रतिनिधित्व पर कारणयुक्त आदेश पारित नहीं करते, तब तक विज्ञापन स्थगित रहेगा। मामले की अगली सुनवाई अक्टूबर में होगी।
सुनवाई के दौरान न्यायाधीश ने दिल्ली सरकार के वकील से कहा कि प्रशासन “कम प्रगतिशील” होता जा रहा है। उन्होंने कहा:

“आप युवा अधिवक्ताओं को अवसर से वंचित करना चाहते हैं और सेवानिवृत्त अभियोजकों को नियुक्त करना चाहते हैं। आप अपने मुख्य सचिव से कहें कि इस मुद्दे को सकारात्मक तरीके से हल करें।”
याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मोहित माथुर ने तर्क दिया कि न तो अभियोजन निदेशक और न ही दिल्ली सरकार के पास ऐसा विज्ञापन जारी करने का अधिकार है। नियुक्ति की वैधानिक प्रक्रिया केवल UPSC या अन्य सक्षम प्राधिकारी के माध्यम से हो सकती है।
याचिका में कहा गया कि यह विज्ञापन असंवैधानिक और कानून के स्थापित सिद्धांतों के खिलाफ है क्योंकि—
- पदों को केवल रिटायर्ड अभियोजकों तक सीमित किया गया है।
- आरक्षण व्यवस्था की पूरी तरह अनदेखी की गई है, जिससे हाशिये पर खड़े समुदायों के योग्य उम्मीदवारों को बाहर कर दिया गया।
- भर्ती की स्थापित प्रक्रिया को दरकिनार किया गया।
दिल्ली सरकार की ओर से वकील ने दलील दी कि अभियोजकों की भारी कमी को देखते हुए यह नियुक्तियां केवल अस्थायी उपाय के तौर पर की जा रही हैं। साथ ही कहा कि यह मामला सेवा संबंधी है, इसलिए इसका उचित मंच सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल (CAT) है, न कि हाईकोर्ट।
याचिका में विज्ञापन को निरस्त करने और UPSC की वैधानिक प्रक्रिया के जरिए नियुक्तियां करने का निर्देश देने की मांग की गई है ताकि प्रतियोगिता निष्पक्ष रहे और संवैधानिक प्रावधानों का पालन हो सके।