सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को बिहार में चल रहे विशेष गहन पुनरीक्षण (स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन–SIR) को लेकर प्रकाशित एक मीडिया रिपोर्ट के आधार पर चुनाव आयोग (EC) से जवाब तलब करने से इनकार कर दिया। अदालत ने साफ कहा कि केवल समाचार रिपोर्टों के आधार पर किसी पक्ष से स्पष्टीकरण मांगना गलत परंपरा स्थापित करेगा।
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने याचिकाकर्ता गैर-सरकारी संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) से कहा कि यदि आरोपों में दम है तो उन्हें हलफनामे के जरिए रिकॉर्ड पर लाया जाए, तभी चुनाव आयोग से प्रतिक्रिया मांगी जा सकती है।
मामला ADR की उस याचिका से जुड़ा है, जिसमें बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण के लिए 24 जून को जारी चुनाव आयोग की अधिसूचना की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है। संगठन ने एक अखबार की रिपोर्ट का हवाला दिया था, जिसमें दावा किया गया था कि मतदाताओं के नाम हटाने के लिए लाखों पूर्व-भरे नोटिस केंद्रीय स्तर पर जारी किए गए, जबकि ऐसा अधिकार स्थानीय निर्वाचन पंजीकरण अधिकारियों के पास होता है।
ADR की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने अदालत में कहा कि रिपोर्ट में लगाए गए आरोप “गंभीर” और “चिंताजनक” हैं और इससे संकेत मिलता है कि बिहार में SIR के दौरान कानूनी प्रक्रियाओं का पालन नहीं हुआ।
हालांकि, पीठ ने स्पष्ट किया कि जब तक इन आरोपों को विधिवत हलफनामे के जरिए अदालत के रिकॉर्ड पर नहीं लाया जाता, तब तक अदालत मीडिया रिपोर्ट से प्रभावित होकर कोई आदेश पारित नहीं कर सकती।
चुनाव आयोग की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने मीडिया रिपोर्ट पर कड़ी आपत्ति जताते हुए आरोपों को तथ्यात्मक रूप से गलत बताया। उन्होंने कहा कि बिहार में सभी नोटिस जिला निर्वाचन अधिकारियों द्वारा जारी किए गए थे, न कि केंद्रीय स्तर से।
द्विवेदी ने यह भी कहा कि लंबी सुनवाई के बाद केवल समाचार रिपोर्टों के आधार पर आयोग को जवाब देने के लिए बाध्य करना उचित नहीं होगा। यदि याचिकाकर्ता आरोपों पर आगे बढ़ना चाहता है, तो उसे ठोस सामग्री के साथ हलफनामा दाखिल करना चाहिए।
मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत ने कहा कि अदालतें केवल मीडिया रिपोर्टों के आधार पर जवाब दाखिल करने का निर्देश नहीं दे सकतीं, क्योंकि ऐसी रिपोर्टें कई बार स्रोतों पर निर्भर होती हैं और पूरी तरह सही भी हो सकती हैं या आंशिक रूप से।
पीठ ने यह भी नोट किया कि संबंधित रिपोर्ट में “सूत्रों से जानकारी मिली” जैसे शब्दों का प्रयोग किया गया है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि रिपोर्ट की जानकारी प्रत्यक्ष रूप से सत्यापित नहीं थी।
इस दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने टिप्पणी की कि यदि किसी “लोकहितैषी व्यक्ति” को किसी वरिष्ठ राजनीतिक नेता द्वारा ऐसी जानकारी दी जाती है, तो बेहतर होगा कि वह नेता स्वयं अदालत का दरवाजा खटखटाए, न कि किसी और के माध्यम से मामला उठाया जाए। इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि संबंधित व्यक्ति निश्चित रूप से स्वयं आगे आकर याचिका दाखिल करेगा।
मीडिया रिपोर्ट से जुड़े मुद्दे को अलग रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से SIR को लेकर दायर मुख्य याचिकाओं पर अपनी दलीलें जारी रखने को कहा।
इससे पहले, 11 दिसंबर को हुई सुनवाई के दौरान अदालत को बताया गया था कि चुनाव आयोग मतदाताओं को संदेह की दृष्टि से देखते हुए “पड़ोसी या पुलिस” की भूमिका नहीं निभा सकता। याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजू रामचंद्रन ने दलील दी थी कि आयोग का संवैधानिक दायित्व मतदान अधिकारों को सुगम बनाना है, न कि उन्हें बाधित करना, खासकर जब कई राज्यों में SIR की प्रक्रिया चल रही हो।
सुप्रीम कोर्ट फिलहाल इस सवाल पर विचार कर रहा है कि क्या चुनाव आयोग को संदिग्ध मतदाताओं के मामलों में जांचात्मक भूमिका अपनाने का अधिकार है या यह उसकी संवैधानिक सीमाओं से बाहर है।

