इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जिला जज के प्रति असम्मानजनक संबोधन पर अधिकारियों को फटकार लगाई

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रिट – बी नंबर 247/2025 में प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा एक न्यायिक अधिकारी के प्रति अनुचित भाषा के प्रयोग पर कड़ी आपत्ति जताई है। यह मामला गिरीश चंद बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य के रूप में दर्ज किया गया था, जिसकी सुनवाई जस्टिस जे. जे. मुनिर की पीठ ने की। अदालत ने विशेष रूप से इस बात पर नाराजगी व्यक्त की कि गाजीपुर के सिविल जज (सीनियर डिवीजन) का उल्लेख आधिकारिक रिपोर्ट में बिना औपचारिक सम्मानसूचक शब्दों के किया गया।

मामले की पृष्ठभूमि

यह याचिका गिरीश चंद द्वारा उत्तर प्रदेश सरकार और अन्य प्रशासनिक अधिकारियों के खिलाफ दाखिल की गई थी। मामला गाजीपुर जिले के प्लॉट नंबर 709 और 711 से संबंधित भूमि विवाद से जुड़ा था। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता भोले राम ने पक्ष रखा, जबकि राज्य सरकार की ओर से मुख्य स्थायी अधिवक्ता भूपेंद्र कुमार त्रिपाठी ने बहस की।

विवाद तब शुरू हुआ जब गाजीपुर के जिलाधिकारी, पुलिस अधीक्षक, बंदोबस्त अधिकारी (संलयन), और रांपुर मांझा थाना प्रभारी ने एक संयुक्त रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें भूमि के उपयोग और निर्माण से संबंधित विवरण था। हाईकोर्ट ने पहले ही सिविल जज (सीनियर डिवीजन), गाजीपुर द्वारा तैयार की गई एक रिपोर्ट पर आपत्तियां दर्ज कराने के निर्देश दिए थे।

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मामले के प्रमुख कानूनी बिंदु

  1. भूमि स्वामित्व और निर्माण अधिकार – क्या प्रशासन को प्लॉट नंबर 709 पर निर्माण करने का अधिकार है, जिसे याचिकाकर्ता अपनी संपत्ति मानता है, जबकि प्लॉट नंबर 711 पर निर्माण की अनुमति दी गई है?
  2. न्यायिक सम्मान का उल्लंघन – क्या प्रशासनिक अधिकारियों ने सिविल जज (सीनियर डिवीजन), गाजीपुर को अनुचित रूप से संबोधित कर न्यायिक मर्यादा का उल्लंघन किया है?

अदालत की टिप्पणियां और आदेश

जस्टिस जे. जे. मुनिर ने प्रशासन द्वारा सिविल जज (सीनियर डिवीजन), गाजीपुर, के प्रति प्रयोग की गई भाषा को अनुचित ठहराया और कहा:

“यह न्यायिक शिष्टाचार का गंभीर उल्लंघन है। ऐसा प्रतीत होता है कि प्रशासनिक अधिकारी जिला न्यायालय के न्यायाधीशों को सम्मान की दृष्टि से नहीं देखते और उनके प्रति अनुचित भाषा का प्रयोग करते हैं।”

अदालत ने यह भी कहा कि “Ms.” या “सुश्री” जैसे सम्मानसूचक शब्दों का प्रयोग न करना न्यायपालिका के प्रति असम्मान को दर्शाता है। इस पर सख्त रुख अपनाते हुए, हाईकोर्ट ने गाजीपुर के जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक को निर्देश दिया कि वे एक सप्ताह के भीतर व्यक्तिगत हलफनामा दायर कर अपनी सफाई दें।

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भूमि विवाद पर आदेश

  • प्लॉट नंबर 711 पर निर्माण की अनुमति दी गई, क्योंकि यह याचिकाकर्ता की संपत्ति नहीं है।
  • प्लॉट नंबर 709 पर सभी प्रकार के निर्माण कार्यों पर रोक लगा दी गई।
  • यदि प्लॉट नंबर 709 पर पहले से कोई निर्माण सामग्री रखी गई है, तो उसे हटाने की अनुमति दी गई है।

अदालत ने स्पष्ट किया:

“प्रतिवादीगण को प्लॉट नंबर 711 पर पुलिस स्टेशन निर्माण की अनुमति दी जाती है, लेकिन प्लॉट नंबर 709 पर कोई भी निर्माण कार्य नहीं होगा।”

इस मामले की अगली सुनवाई 11 मार्च 2025 को सुबह 10:00 बजे अतिरिक्त कारण सूची में की जाएगी। अदालत ने रजिस्ट्रार (अनुपालन) को निर्देश दिया कि इस आदेश को मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी, गाजीपुर के माध्यम से संबंधित अधिकारियों को 24 घंटे के भीतर सूचित किया जाए।

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मामले का विवरण

  • मामला: गिरीश चंद बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य
  • मामला संख्या: रिट – बी नंबर 247/2025
  • पीठ: जस्टिस जे. जे. मुनिर
  • याचिकाकर्ता के अधिवक्ता: भोले राम
  • प्रतिवादी के अधिवक्ता: भूपेंद्र कुमार त्रिपाठी (मुख्य स्थायी अधिवक्ता)

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