गिरफ्तारी के लिखित आधार न दिए जाने मात्र से गिरफ्तारी अवैध नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने हत्या के एक मामले में गिरफ्तारी की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि केवल गिरफ्तारी के लिखित आधार (written grounds of arrest) न दिए जाने से हिरासत अवैध नहीं हो जाती, जब तक कि आरोपी यह साबित न कर दे कि इससे उसे कोई वास्तविक पूर्वाग्रह (prejudice) या नुकसान हुआ है।

न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा ने साद बनाम राज्य सरकार (एनसीटी दिल्ली) और अन्य (CRL.M.C. 7600/2025) के मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि यदि आरोपी को गिरफ्तारी के कारणों की पर्याप्त जानकारी थी और उसे वकील का प्रतिनिधित्व प्राप्त था, तो लिखित आधार प्रस्तुत करने में हुई प्रक्रियात्मक चूक एक सुधार योग्य त्रुटि (curable defect) मात्र है।

याचिकाकर्ता साद, जो जाफराबाद पुलिस स्टेशन में दर्ज एक हत्या के मामले में आरोपी है, ने अपनी गिरफ्तारी को अवैध घोषित करने की मांग की थी। उसने तर्क दिया था कि उसे गिरफ्तारी के लिखित आधार नहीं दिए गए और पुलिस ने उसकी गिरफ्तारी के समय में हेरफेर किया।

हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले स्टेट ऑफ कर्नाटक बनाम श्री दर्शन (2025) का हवाला देते हुए याचिका को खारिज कर दिया। कोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ता यह दिखाने में विफल रहा कि उसे इस प्रक्रियात्मक चूक से कोई ठोस नुकसान हुआ है।

मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला एफआईआर संख्या 192/2024 से संबंधित है, जो भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 302 (हत्या), 201 (साक्ष्य मिटाना), 120बी (आपराधिक साजिश) और 34 के तहत दर्ज किया गया था।

अभियोजन पक्ष के अनुसार, 21 मई 2024 को पुलिस को एक पीसीआर कॉल के बाद शाहबाज नामक व्यक्ति का शव मिला। जांच में सामने आया कि मृतक और उसकी पत्नी आयशा के बीच घरेलू कलह चल रही थी। आरोप है कि आयशा के भाइयों, सलमान और जीशान, ने शादी से नाखुश होकर शाहबाज की हत्या की साजिश रची।

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सह-आरोपियों, सलमान और जीशान, ने कथित तौर पर खुलासा किया कि जीशान ने मृतक को लोहे के चाकू से कई बार वार किया, जबकि सलमान ने उसे पकड़े रखा। अभियोजन का दावा है कि याचिकाकर्ता साद भी इस साजिश का हिस्सा था। आरोप है कि साद ने हत्या में इस्तेमाल किया गया चाकू मुहैया कराया और अपने मोबाइल फोन पर इस कृत्य का वीडियो रिकॉर्ड किया। पुलिस ने साद के पास से मोबाइल बरामद कर उसे फॉरेंसिक जांच के लिए भेजा है।

साद को 22 मई 2024 को गिरफ्तार किया गया और अगले दिन न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। इससे पहले 9 अक्टूबर 2025 को निचली अदालत ने उसकी जमानत याचिका खारिज कर दी थी।

पक्षों की दलीलें

याचिकाकर्ता के तर्क: याचिकाकर्ता के वकील, श्री चेतन ने मुख्य रूप से दो आधारों पर गिरफ्तारी को चुनौती दी:

  1. लिखित आधार न देना: उन्होंने तर्क दिया कि गिरफ्तारी के समय या उसके बाद याचिकाकर्ता को गिरफ्तारी के कोई लिखित आधार नहीं दिए गए, जो संविधान के अनुच्छेद 22 का स्पष्ट उल्लंघन है।
  2. गिरफ्तारी के समय पर विवाद: वकील ने आरोप लगाया कि पुलिस ने साद को 22 मई 2024 को सुबह 6:30 बजे हिरासत में लिया था, लेकिन गिरफ्तारी का समय शाम 6:30 बजे दर्ज किया गया। इस प्रकार, मजिस्ट्रेट के समक्ष पेशी करीब 35 घंटे बाद हुई, जो कानूनी सीमा से अधिक है।
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प्रतिवादी (राज्य) के तर्क: राज्य की ओर से अतिरिक्त लोक अभियोजक (APP) श्री मनोज पंत ने याचिका का विरोध करते हुए कहा:

  1. गिरफ्तारी 22 मई 2024 को शाम 6:30 बजे दर्ज की गई थी और याचिकाकर्ता को 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया गया था।
  2. याचिकाकर्ता को गिरफ्तारी के आधारों की जानकारी दी गई थी।
  3. राज्य ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता को कोई वास्तविक पूर्वाग्रह (prejudice) नहीं हुआ है।

कोर्ट का विश्लेषण

हाईकोर्ट ने 23 मई 2024 के रिमांड आदेश की जांच की, जिसमें यह दर्ज था कि याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कानूनी सहायता वकील द्वारा किया गया था और मजिस्ट्रेट गिरफ्तारी के पर्याप्त आधारों से संतुष्ट थे।

जस्टिस शर्मा ने कहा कि गिरफ्तारी के आधार “स्पष्ट और निश्चित” थे, विशेष रूप से यह कि सह-आरोपियों ने हत्या में हथियार मुहैया कराने और वीडियो रिकॉर्ड करने में साद की संलिप्तता का खुलासा किया था। कोर्ट ने कहा कि चूंकि रिमांड के कारणों पर आरोपी और उसके वकील की उपस्थिति में चर्चा हुई थी, इसलिए यह मानना मुश्किल है कि वह कारणों से अनजान था।

लिखित आधारों पर: कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले स्टेट ऑफ कर्नाटक बनाम श्री दर्शन: 2025 SCC OnLine SC 1702 पर विशेष जोर दिया। हाईकोर्ट ने शीर्ष अदालत की इस टिप्पणी को उद्धृत किया कि यदि आरोपी के पास कानूनी प्रतिनिधित्व है और वह आरोपों से अवगत है, तो लिखित आधारों की अनुपस्थिति केवल एक सुधार योग्य त्रुटि है।

निर्णय में कहा गया:

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“पूर्वाग्रह के अभाव में, ऐसी अनियमितता केवल एक सुधार योग्य दोष है और अपने आप में जमानत पर रिहाई का आधार नहीं बन सकती… गिरफ्तारी के आधार प्रस्तुत करने में प्रक्रियात्मक चूक, पूर्वाग्रह की अनुपस्थिति में, हिरासत को अवैध नहीं बनाती है।”

इस सिद्धांत को लागू करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता यह स्थापित करने में असमर्थ रहा है कि लिखित आधार न मिलने से उसे क्या नुकसान हुआ। रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री यह दर्शाती है कि उसे शुरू से ही अपनी गिरफ्तारी के कारणों की जानकारी थी।

गिरफ्तारी के समय पर: गिरफ्तारी के समय में विसंगति के आरोप पर, कोर्ट ने याचिकाकर्ता के इस दावे को खारिज कर दिया कि उसे सुबह 6:30 बजे हिरासत में लिया गया था। कोर्ट ने इस स्पष्टीकरण को स्वीकार किया कि याचिकाकर्ता को सुबह पूछताछ के लिए बुलाया गया था और पर्याप्त सबूत मिलने के बाद शाम 6:30 बजे औपचारिक रूप से गिरफ्तार किया गया।

जस्टिस शर्मा ने कहा कि गिरफ्तारी मेमो में किसी भी कथित विसंगति या ओवरराइटिंग की जांच केवल ट्रायल के दौरान सबूतों के आधार पर की जा सकती है, इस चरण पर नहीं।

निर्णय

गिरफ्तारी की अवैधता और गिरफ्तारी मेमो में समय को लेकर दी गई दलीलों में कोई दम न पाते हुए, हाईकोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।

जस्टिस शर्मा ने स्पष्ट किया कि, “ऊपर व्यक्त की गई किसी भी बात को मामले के गुणों-दोषों (merits) पर राय नहीं माना जाएगा।”

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